ध्यान का समय, स्थान और वस्तु निश्चित हो तो अधिक अच्छा। ध्यान करते समय अन्य विचारों को मन में न आने दें। बार-बार विचार आएंगे, परंतु प्रयत्न के द्वारा इन विचारों को दूर कर ध्यान किया जा सकता है।
नियमित ध्यान करने से बुद्धि की कुशाग्रता में वृद्धि, याद शक्ति (स्मरण शक्ति) का बढ़ना, आत्मविश्वास का बढ़ना, विपरीत परिस्थितियों में मन का संतुलन न खोना आदि परिणाम आप अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में आसानी से देख सकते हैं।
ध्यान करने के अलावा सुबह उठने पर, भोजन के पूर्व एवं सोने के पहले प्रार्थना करना चाहिए। उसमें धर्मानुसार अपने ईष्ट भगवान की प्रार्थना मनःपूर्वक करने से भी मन में विश्वास, समर्पण की भावना जागृत होगी, जिससे धीरे-धीरे परिणामों की चिंता दूर होती जाएगी।
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परीक्षा के दिनों में बालक का मानसिक तनाव बढ़ जाता है। विद्यालय की अपेक्षाएं, माता-पिता एवं शिक्षकों की अपेक्षाएं एवं स्पर्धात्मक शिक्षा की इस दौड़ में वह अपने आपको झोंक देता है, ऐसे समय उसे मानसिक तनाव से मुक्त रखने के लिए निम्नलिखित बातों का पालन करना चाहिए।
- अच्छे संगीत को सुनना, पसंदीदा भजन सुनना, श्लोक, आरती आदि को पढ़ाई के बीच-बीच सुनने से तनाव दूर होता है।
- इसके साथ ही महापुरुषों, भारतीय संस्कृति या मानवीय मूल्यों पर आधारित छोटी-छोटी कहानियां सुनाना या पढ़ना चाहिए।
- घर के बड़ों-बुजुर्गों के साथ कुछ देर के लिए गृहकार्य में हाथ बंटाना अच्छी बात होती है।
- प्रार्थना एवं ध्यान एकाग्रता को बढ़ाने के कारगर उपाय है।
* दिन भर में कम से कम एक से दो घंटे तक योगा, शारीरिक व्यायाम एवं पसंदीदा खेल अवश्य करना चाहिए।
आजकल की शिक्षा पद्धति न तो बालक को शारीरिक दृष्टि से सक्षम बनाती है, न ही मानसिक संतुलन बनाए रखती है, न ही उसे समाज का एक सुसभ्य, सच्चरित्र, निष्ठावान, उत्तरदायी व्यक्ति बनाती है। आध्यात्मिक दृष्टि से तो वह पूर्णतया अनभिज्ञ है।
आज के इस विज्ञान युग में किडनी, हृदय प्रत्यर्पण जैसे जटिल ऑपरेशन आसान हो गए हैं। चंद्र, मंगल आदि ग्रहों पर बस्ती बसाने का विचार भी इंसान कर रहा है, परंतु इतना सब होते हुए भी मनुष्य कहीं गुम हो गया है। मानवता अपना अस्तित्व खोज रही है और बालक अपना बाल्यकाल खो चुका है।
भौतिक सुखों की प्राप्ति की इस आपाधापी में बचपन जैसे नदारद हो गया है। वह जल्दी प्रौढ़ हो रहा है एवं कई तरह के मानसिक तनावों से ग्रस्त होता जा रहा है।
मनोचिकित्सक से जानें तो बच्चों में अवसाद, अपराधी प्रवृत्तियां और व्यवहार में आने वाले परिवर्तन बढ़ते जा रहे हैं।
इस सबसे बचने के लिए आवश्यक है उसे बचपन को जीने दें, परंतु आगे जाकर इन परिस्थितियों का सामना करने के लिए उसे शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक रूप से परिपूर्ण बनाना होगा और यही दैनंदिन जीवन में साधना का महत्व परिलक्षित होता है।
आज के इस विज्ञान युग में किडनी, हृदय प्रत्यर्पण जैसे जटिल ऑपरेशन आसान हो गए हैं। चंद्र, मंगल आदि ग्रहों पर बस्ती बसाने का विचार भी इंसान कर रहा है, परंतु इतना सब होते हुए भी मनुष्य कहीं गुम हो गया है। मानवता अपना अस्तित्व खोज रही है और बालक अपना बाल्यकाल खो चुका है।
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मनोचिकित्सक से जानें तो बच्चों में अवसाद, अपराधी प्रवृत्तियां और व्यवहार में आने वाले परिवर्तन बढ़ते जा रहे हैं।
इस सबसे बचने के लिए आवश्यक है उसे बचपन को जीने दें, परंतु आगे जाकर इन परिस्थितियों का सामना करने के लिए उसे शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक रूप से परिपूर्ण बनाना होगा और यही दैनंदिन जीवन में साधना का महत्व परिलक्षित होता है।
साधना की शुरुआत हम आज अभी से कर सकते हैं। उसके लिए किसी मुहूर्त या समय की आवश्यकता नहीं है। कम उम्र में साधना की आदत होने पर बालक बड़ा होकर आत्मविश्वास, आत्मतृप्ति, आत्मसंयम एवं आत्मत्याग जैसे गुणों से परिपूर्ण होगा। साधना के कई सोपान हैं।
अपने बच्चे के शारीरिक विकास में आवश्यक खान-पान, खेलकूद का ध्यान हर माता-पिता को रखना चाहिए। तथा मानसिक स्वास्थ्य का एवं आध्यात्मिक साधना की ओर भी ध्यान देना चाहिए।
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