Wednesday, November 18, 2020

दुनिया रंग बिरंगी

 *एक फोटोग्राफ़र ने दुकान के बाहर बोर्ड लगा रखा था।*

*20 रु. में - आप जैसे हैं, वैसा ही फोटो खिंचवाएँ।*

*30 रु.में - आप जैसा सोचते हैं, वैसा फोटो खिंचवाएँ।*

*50 रु. में - आप जैसा लोगों को दिखाना चाहें,  वैसा फोटो खिंचवाएँ।*


*बाद में उस फोटोग्राफर ने  अपने संस्मरण में लिखा,*

 

*मैंने जीवनभर फोटो खींचे, लेकिन किसी ने भी 20 रु.वाला फोटो नहीं खिंचवाया, सभी ने 50 रु. वाले ही खिंचवाए....*


*दोस्तो, बस कुछ ऐसी ही हक़ीक़त है- ज़िंदगी की...*


*हम  हमेशा दिखावे के लिए ही जीते रहे है, हमने कभी अपनी वो 20 रुपये वाली जिंदगी जी ही नही!!!*


दोस्तों, ये दुनिया भी कितनी निराली है!


*जिसकी आँखों में नींद है ….

उसके पास अच्छा बिस्तर नहीं …

जिसके पास अच्छा बिस्तर है …….

उसकी आँखों में नींद नहीं …*


*जिसके मन में दया है ….

उसके पास किसी को देने के लिए धन नहीं* ….

*और जिसके पास धन है उसके मन में दया नहीं …*


*जिन्हे कद्र है रिश्तों की …

उन से कोई रिश्ता रखना नही चाहता....*

*जिनसे रिश्ता रखना चाहते हैं ….

उन्हें  रिश्तों की कद्र नहीं* 


*जिसको भूख है उसके पास खाने के लिए भोजन नहीं….

* और जिसके पास खाने के लिए भोजन है ………

उसको भूख नहीं…*


*कोई अपनों के लिए….

रोटी छोड़ देता है…तो कोई रोटी के लिए…..

अपनों को….*


*है ना ये दुनिया निराली !!*


         

Monday, November 9, 2020

सबसे बड़ी समस्या


बहुत समय पहले की बात है एक महाज्ञानी पंडित हिमालय की पहाड़ियों में कहीं रहते थे . लोगों के बीच रह कर वह थक चुके थे और अब ईश्वर भक्ति करते हुए एक सादा जीवन व्यतीत करना चाहते थे . लेकिन उनकी प्रसिद्धि इतनी थी की


लोग दुर्गम  पहाड़ियों , सकरे रास्तों , नदी-झरनो को पार कर के भी उससे मिलना चाहते थे , उनका मानना था कि यह विद्वान उनकी हर समस्या का समाधान कर सकता है .


इस बार भी कुछ लोग ढूंढते हुए उसकी कुटिया तक आ पहुंचे . पंडित जी ने उन्हें इंतज़ार करने के लिए कहा .


तीन दिन बीत गए , अब और भी कई लोग वहां पहुँच गए , जब लोगों के लिए जगह कम पड़ने लगी तब पंडित जी बोले ,” आज मैं आप सभी के प्रश्नो का उत्तर दूंगा , पर आपको वचन देना होगा कि यहाँ से जाने के बाद आप किसी और से इस स्थान के  बारे में  नहीं बताएँगे , ताकि आज के बाद मैं एकांत में रह कर अपनी साधना कर सकूँ …..चलिए अपनी -अपनी समस्याएं बताइये “

यह सुनते ही किसी ने अपनी परेशानी बतानी शुरू की , लेकिन वह अभी कुछ शब्द ही बोल पाया था कि बीच में किसी और ने अपनी  बात कहनी शुरू कर दी . सभी जानते थे कि आज के बाद उन्हें कभी पंडित जी से बात करने का मौका नहीं मिलेगा ; इसलिए वे सब जल्दी से जल्दी अपनी बात रखना चाहते थे . कुछ ही देर में वहां का दृश्य मछली -बाज़ार जैसा हो गया और अंततः पंडित जी को चीख कर बोलना पड़ा ,” कृपया शांत हो जाइये ! अपनी -अपनी समस्या एक पर्चे पे लिखकर मुझे दीजिये . “


सभी ने अपनी -अपनी समस्याएं लिखकर आगे बढ़ा दी . पंडित जी ने सारे पर्चे लिए और उन्हें एक टोकरी में डाल कर मिला दिया और बोले , ” इस टोकरी को एक-दूसरे को पास कीजिये , हर व्यक्ति एक पर्ची उठाएगा और उसे पढ़ेगा . उसके बाद उसे निर्णय लेना होगा कि क्या वो अपनी समस्या को इस समस्या से बदलना चाहता है ?”


हर व्यक्ति एक पर्चा उठाता , उसे पढता और सहम सा जाता . एक -एक कर के सभी ने पर्चियां देख ली पर कोई भी अपनी समस्या के बदले किसी और की समस्या लेने को तैयार नहीं हुआ; सबका यही सोचना था कि उनकी अपनी समस्या चाहे कितनी ही बड़ी क्यों न हो बाकी लोगों की समस्या जितनी गंभीर नहीं है . दो घंटे बाद सभी अपनी-अपनी पर्ची हाथ में लिए लौटने लगे , वे खुश थे कि उनकी समस्या उतनी बड़ी भी नहीं है जितना कि वे सोचते थे .


मित्रों, ऐसा कौन होगा जिसके जीवन में एक भी समस्या न हो ? हम सभी के जीवन में समस्याएं हैं , कोई अपनी तबियत से परेशान है तो कोई दूसरों को मिल रही सुख संपत्ति से …हमें इस बात को स्वीकार करना चाहिए कि जीवन है तो छोटी -बड़ी समस्याएं आती ही रहेंगी , ऐसे में दुखी हो कर उसी के बारे में सोचने से अच्छा है कि हम अपना ध्यान उसके निवारण में लगाएं … और अगर उसका कोई समाधान ही न हो तो अन्य उत्पादित चीजों पर प्रकाश डालें… हमें लगता है कि सबसे बड़ी समस्या हमारी ही है पर विश्वास जानिए इस दुनिया में लोगों के पास इतनी बड़ी -बड़ी समस्याएं हैं कि हमारी तो उनके सामने कुछ भी नहीं … इसलिए ईश्वर ने जो भी दिया है उसके लिए ईश्वर के सदैव आभारी रहिये और एक खुशहाल जीवन जीने का प्रयास करिये .


   🌹🙏🏻🚩 *जय सियाराम* 🚩🙏🏻🌹

Friday, October 9, 2020

ग्रहों की शांति के लिए लाभकारी हैं ये पौधे

 


1    ग्रहों की शांति के लिए लाभकारी हैं ये पौधे


आपने कभी सोचा है क‍ि घर के बड़े-बुजुर्ग घर की चारों द‍िशाओं में कोई न कोई पौधा क्‍यों लगाते थे। आपको जानकर हैरानी होगी क‍ि इन पौधों में ग्रह दशाओं को ठीक करने की क्षमता होती है। इसल‍िए बड़े-बुजुर्ग घर की चारों द‍िशाओं में अलग-अलग पौधे लगाते थे। इस आर्टिकल में हम आपको ग्रहों की शांति के लिए घर में लगाए जाने वाले इन पौधों के बारे में जानकारी दे रहे हैं। तो आइए इस व‍िषय पर ऐस्‍ट्रॉलजर प्रमोद पांडेय से व‍िस्‍तार से जानते हैं…


2    बृहस्‍पत‍ि का दोष

अगर कुंडली में बृहस्‍पत‍ि दोष हो तो घर के पिछले हिस्से में केले का पेड़ लगाएं। यह पौधा बृहस्पति देवता का स्वरुप होता है। इसल‍िए केले का पौधा लगाने से कुंडली में व्‍याप्‍त बृहस्‍पत‍ि का दोष भी समाप्‍त हो जाता है। साथ ही धन संबंधी परेशानियों से भी राहत मिलती है।


3    चंद्र दोष


अगर कुंडली में चंद्र दोष हो तो घर के बीचों-बीच आंगन में हरसिंगार का पौधा लगाना चाह‍िए। इस पौधे को घर के बीचों-बीच या पिछले हिस्से में लगाने से आर्थिक संपन्नता प्राप्त होती है। लेक‍िन इसकी देखभाल में लापरवाही न बरतें क्‍योंक‍ि इस पौधे के सूख जाने से मन-मस्तिष्‍क पर नकारात्‍मक प्रभाव पड़ता है।


4.       शुक्र ग्रह दोष


अगर कुंडली में शुक्र दोष हो तो घर के आंगन में तुलसी का पौधा लगाएं। ऐसा करने से घर से नकारात्मक उर्जा दूर हो जाती है और सकारात्‍मक ऊर्जा का संचार होता है। साथ ही घर-पर‍िवार के सभी सदस्‍यों के जीवन में सुख-समृद्धि का वास होता है। ध्‍यान रखें जिनका शुक्र ग्रह कमजोर है उन्हें न‍ियम‍ित रूप से शाम को तुलसी के आगे दीप प्रज्वलित करना चाहिए।


5.          राहु-केतु दोष


अगर कुंडली में राहु-केतु का दोष हो तो घर में अनार का पौधा लगाना चाह‍िए। इससे राहु-केतु के नकारात्मक प्रभाव को कम होता है। वास्तुशास्‍त्र के अनुसार घर के सामने अनार का पेड़ लगाना शुभता लेकर आता है। इसके अलावा अगर न‍ियम‍ित रूप से प्रत्‍येक सोमवार को अनार के फूल को शहद में डुबोकर भगवान शिव को समर्पित क‍िया जाए तो इससे बड़ी से बड़ी मुश्किल आसानी से दूर हो जाती है।


6    शनि दोष


अगर कुंडली में शनि दोष हो तो घर में शमी का पेड़ लगाना चाह‍िए। मान्यता है कि शमी में सभी देवताओं का वास होता है और इस पेड़ का संबंध शनि महाराज से भी है। इसल‍िए वास्‍तुशास्‍त्र के अनुसार शमी के पौधे को घर के मुख्य द्वार के बायीं ओर लगाना चाह‍िए। साथ ही नियमित रूप से शमी के नीचे सरसों के तेल का दीपक जलाएं। इससे शनिदेव की कृपा बनी रहेगी और ब‍िगड़ते कार्य भी बनने लगते हैं।


7.       बुध, शनि एवम बृहस्पति ग्रहों का दोष


अगर कुंडली में बुध, शनि और बृहस्पति ग्रह का दोष हो तो पीपल लगाना चाह‍िए। मान्‍यता है क‍ि पीपल की नियमित पूजा करने, जल चढ़ाने और परिक्रमा करने से संतान दोष नष्ट होता है और बीमारियों से निजात मिलता है। लेक‍िन ध्‍यान रखें क‍ि पीपल का बोनसाई पेड़ घर के पिछले हिस्से में लगाएं तो यह उन्नति एवं लोगों के स्वास्थ्य को बेहतर बनाए रखने में सहायक होता है।


8    सूर्य और मंगल का दोष


अगर कुंडली में सूर्य और मंगल का दोष हो तो घर में गुड़हल का पौधा लगाना चाह‍िए। यह पौधा सूर्य और मंगल ग्रह से जुड़ा हुआ है। मान्‍यता है क‍ि मंगल ग्रह को प्रसन्न करने के लिए पवनसुत को गुड़हल का फूल अर्पित करें। साथ ही सूर्यदेव को जल अर्पित करते समय उसमें गुड़हल का फूल डालकर अर्घ्‍य दें। ऐसा करने से जातक को अत्‍यंत लाभ होता है और वास्‍तुदोष भी दूर होता है। गुड़हल का पौधा घर में कहीं भी लगा सकते हैं। यह अत्‍यंत लाभकारी होता है।


नवभारतटाइम्स.कॉम अक्टूबर 09, 2020

Saturday, October 3, 2020

त्याग का रहस्य: अखंड ज्योति फरवरी 1943

 एक बार महर्षि नारद ज्ञान का प्रचार करते हुए किसी सघन बन में जा पहुँचे। वहाँ उन्होंने एक बहुत बड़ा घनी छाया वाला सेमर का वृक्ष देखा और उसकी छाया में विश्राम करने के लिए ठहर गये।


नारदजी को उसकी शीतल छाया में आराम करके बड़ा आनन्द हुआ, वे उसके वैभव की भूरि भूरि प्रशंसा करने लगे। 


उन्होंने उससे पूछा कि.. “वृक्ष राज तुम्हारा इतना बड़ा वैभव किस प्रकार सुस्थिर रहता है ? पवन तुम्हें गिराती क्यों नहीं?” 


सेमर के वृक्ष ने हंसते हुए ऋषि के प्रश्न का उत्तर दिया कि- “भगवान् ! बेचारे पवन की कोई सामर्थ्य नहीं कि वह मेरा बाल भी बाँका कर सके। वह मुझे किसी प्रकार गिरा नहीं सकता।” 


नारदजी को लगा कि सेमर का वृक्ष अभिमान के नशे में ऐसे वचन बोल रहा है। उन्हें यह उचित प्रतीत न हुआ और झुँझलाते हुए सुरलोक को चले गये।


सुरपुर में जाकर नारदजी ने पवन से कहा, ‘अमुक वृक्ष अभिमान पूर्वक दर्प वचन बोलता हुआ आपकी निन्दा करता है, सो उसका अभिमान दूर करना चाहिए।‘ 


पवन को अपनी निन्दा करने वाले पर बहुत क्रोध आया और वह उस वृक्ष को उखाड़ फेंकने के लिए बड़े प्रबल प्रवाह के साथ आँधी तूफान की तरह चल दिया।


सेमर का वृक्ष बड़ा तपस्वी परोपकारी और ज्ञानी था, उसे भावी संकट की पूर्व सूचना मिल गई। वृक्ष ने अपने बचने का उपाय तुरन्त ही कर लिया। उसने अपने सारे पत्ते झाड़ डाले और ठूंठ की तरह खड़ा हो गया। पवन आया उसने बहुत प्रयत्न किया पर ढूँठ का कुछ भी बिगाड़ न सका। अन्ततः उसे निराश होकर लौट जाना पड़ा।


कुछ दिन पश्चात् नारदजी उस वृक्ष का परिणाम देखने के लिए उसी बन में फिर पहुँचे । पर वहाँ उन्होंने देखा कि वृक्ष ज्यों का त्यों हरा भरा खड़ा है। नारदजी को इस पर बड़ा आश्चर्य हुआ। 


उन्होंने सेमर से पूछा- “पवन ने सारी शक्ति के साथ तुम्हें उखाड़ने की चेष्टा की थी पर तुम तो अभी तक ज्यों के त्यों खड़े हुए हो, इसका क्या रहस्य है?”


वृक्ष ने नारदजी को प्रणाम किया और नम्रता पूर्वक निवेदन किया- “ऋषिराज ! मेरे पास इतना वैभव है पर मैं इसके मोह में बँधा हुआ नहीं हूँ। संसार की सेवा के लिए इतने पत्तों को धारण किये हुए हूँ, परन्तु जब जरूरत समझता हूँ इस सारे वैभव को बिना किसी हिचकिचाहट के त्याग देता हूँ और ठूँठ बन जाता हूँ। मुझे वैभव का गर्व नहीं था वरन् अपने ठूँठ होने का अभिमान था इसीलिए मैंने पवन की अपेक्षा अपनी सामर्थ्य को अधिक बताया था। आप देख रहे हैं कि उसी निर्लिप्त कर्मयोग के कारण मैं पवन की प्रचंड टक्कर सहता हुआ भी यथा पूर्व खड़ा हुआ हूँ।“


नारदजी समझ गये कि संसार में वैभव रखना, धनवान होना कोई बुरी बात नहीं है। इससे तो बहुत से शुभ कार्य हो सकते हैं। बुराई तो धन के अभिमान में डूब जाने और उससे मोह करने में है। यदि कोई व्यक्ति धनी होते हुए भी मन से पवित्र रहे तो वह एक प्रकार का साधु ही है। ऐसे जल में कमल की तरह निर्लिप्त रहने वाले कर्मयोगी साधु के लिए घर ही तपोभूमि है।


‘अखण्ड ज्योति, फरवरी-1943’

Saturday, September 12, 2020

प्राणों के नाम, स्थान और कार्य

हमारा शरीर जिस तत्व के कारण जीवित है, उसका नाम ‘प्राण’ है। शरीर में हाथ-पाँव आदि कर्मेन्द्रियां, नेत्र-श्रोत्र आदि ज्ञानेंद्रियाँ तथा अन्य सब अवयव-अंग इस प्राण से ही शक्ति पाकर समस्त कार्यों को करते है। प्राण से ही भोजन का पाचन, रस, रक्त, माँस, मेद, अस्थि, मज्जा, वीर्य, रज, ओज आदि सभी धातुओं का निर्माण होता है तथा व्यर्थ पदार्थों का शरीर से बाहर निकलना, उठना, बैठना, चलना, बोलना, चिंतन-मनन-स्मरण-ध्यान आदि समस्त स्थूल व सूक्ष्म क्रियाएँ होती है। प्राण की न्यूनता-निर्बलता होने पर शरीर के अवयव शिथिल व मृतप्राय हो जाते है। प्राण के बलवान होने पर समस्त शरीर के अवयवों में बल, पराक्रम आते है और पुरुषार्थ, साहस, उत्साह, धैर्य, आशा, प्रसन्नता, तप, क्षमा, आदि की प्रवृत्ति होती है।

शरीर के बलवान व निरोग होने पर ही भौतिक व आध्यात्मिक (spiritual) लक्ष्यों की प्राप्ति की जा सकती है। इसलिए हमें प्राणों की रक्षा करनी चाहिए अर्थात शुद्ध आहार, प्रगाढ़ निद्रा, ब्रह्मचर्य, प्राणायाम (pranayama) आदि के माध्यम से शरीर को प्राणवान बनाना चाहिए। ईश्वर (omnipresent god) इस प्राण को जीवात्मा (soul) के उपयोग के लिए प्रदान करता है। जैसे ही जीवात्मा किसी शरीर में प्रवेश करता है प्राण भी उसके साथ शरीर में प्रवेश करता है और जीवात्मा के शरीर में से निकलते ही शरीर से प्राण भी निकाल जाता है।

मुख्यत: प्राण 5 बताए गए हैं- 

प्राण, 

अपान, 

समान, 

उदान और 

व्यान। 

                        मुख्य प्राण


१. प्राण – इसका स्थान नासिका से हृदय(heart) तक है। नेत्र, श्रोत्र, मुख आदि अवयव इसी के सहयोग से कार्य करते है। यह सभी प्राणों का राजा है। जैसे राजा अपने अधिकारियों को विभिन्न स्थानों पर विभिन्न कार्यों के लिए नियुक्त करता है, वैसे ही यह भी अन्य प्राणों को विभिन्न स्थानों पर विभिन्न कार्यों के लिए नियुक्त करता है।


२. अपान – इसका स्थान नाभि से पाँव तक है। यह गुदा इंद्रिय द्वारा मल व वायु तथा मूत्रेन्द्रिय द्वारा मूत्र व वीर्य को तथा योनि द्वारा रज व गर्भ को शरीर से बाहर निकालने का कार्य करता है।


३. समान – इसका स्थान हृदय से नाभि तक है। यह खाए हुए अन्न को पचाने तथा पचे हुए अन्न से रस, रक्त आदि धातुओं को बनाने का कार्य करता है।


४. उदान – यह कण्ठ से शिर (मस्तिष्क) तक के अवयवों में रहता है। शब्दों का उच्चारण, वमन आदि के अतिरिक्त यह अच्छे कर्म करने वाली जीवात्मा को उत्तम योनि में व बुरे कर्म करने वाली जीवात्मा को बुरे लोक (सूअर, कुत्ते आदि की योनि) में तथा जिस मनुष्य के पाप-पुण्य बराबर हो, उसे मनुष्य लोक(मनुष्य योनि) में ले जाता है।


५. व्यान – यह सम्पूर्ण शरीर में रहता है। हृदय से मुख्य १०१ नाड़ियाँ निकलती हैं, प्रत्येक नाड़ी की १००-१०० शाखाएँ है तथा प्रत्येक शाखा की भी ७२००० उपशाखाएँ है। इस प्रकार कुल ७२७२१०२०१ नाड़ी शाखा-उपशाखाओं में यह रहता है। समस्त शरीर में रक्त संचार, प्राण-संचार का कार्य यही करता है तथा अन्य प्राणों को उनके कार्यों में सहयोग भी देता है।


उपप्राण

उपप्राण भी 5 ही बताए हैं-

 नाग,

 कूर्म, 

कृकल, 

देवदत्त और 

धनंजय।


१. नाग – यह कण्ठ से मुख तक रहता है। डकार, हिचकी आदि कर्म इसी के द्वारा होते है।


२. कूर्म – इसका स्थान मुख्य रूप से नेत्र गोलक है। यह नेत्र गोलकों में रहता हुआ उन्हें दाएँ-बाएँ, ऊपर-नीचे घुमाने की तथा पलकों को खोलने बंद करने की क्रिया करता है। आँसू भी इसी के सहयोग से निकलते है।


३. कृकल – यह मुख से हृदय तक के स्थान में रहता है तथा जंभाई, भूख, प्यास आदि को उत्पन्न करने का कार्य करता है।


४. देवदत्त – यह नासिका से कण्ठ तक के स्थान में रहता है। इसका कार्य छींक, आलस्य, तन्द्रा, निद्रा आदि को लाने का है।


५. धनंजय – यह सम्पूर्ण शरीर में व्यापक है। इसका कार्य शरीर के अवयवों को खींचे रखना, माँसपेशियों (muscles) को सुंदर बनाना आदि है। शरीर में से जीवात्मा के निकल जाने पर यह भी निकल जाता है, फलत: इस प्राण के अभाव में शरीर फूल जाता है।

Friday, September 4, 2020

मन्दिर दर्शन एवं परम्परा

हम मंदिर जाते हैं भगवान के रूप का दर्शन करने के लिए । लेकिन वहां जाकर आँखें बन्द करके याद करते हैं कि भगवान से क्या क्या मांगा जाए ? कुछ लोग वहां आंखें बंद करके खड़े रहते हैं। आंखें बंद क्यों करना, हम तो दर्शन करने आए हैं। 


मंदिर में भगवान का दर्शन सदैव खुली आंखों से करना चाहिए, निहारना चाहिए। भगवान के स्वरूप का, श्री चरणों का, मुखारविंद का, श्रृंगार का संपूर्ण आनंद लें, आंखों में भर ले निज-स्वरूप को।

दर्शन के बाद जब बाहर आकर बैठें, तब नेत्र बंद करके जो दर्शन किया हैं उस स्वरूप का ध्यान करें। मंदिर से बाहर आने के बाद, पैड़ी पर बैठ कर स्वयं की आत्मा का ध्यान करें तब नेत्र बंद करें और अगर निज आत्मस्वरूप ध्यान में भगवान नहीं आए तो दोबारा मंदिर में जाएं और पुन: दर्शन करें।

प्रश्न~ मंदिर में दर्शन के बाद बाहर सीढ़ी पर थोड़ी देर क्यों बैठा जाता है ?

उत्तर ~ यह प्राचीन परंपरा एक विशेष उद्देश्य के लिए बनाई गई है। वास्तव में मंदिर की पैड़ी पर बैठ कर एक श्लोक बोलना चाहिए। यह श्लोक आजकल के लोग भूल गए हैं। इस श्लोक को मनन करें और आने वाली पीढ़ी को भी बताएं।
श्लोक इस प्रकार है ~
         
   *अनायासेन मरणम् ,*
            *बिना देन्येन जीवनम्।*
            *देहान्त तव सानिध्यम् ,*
            *देहि मे परमेश्वरम्॥*

    इस श्लोक का अर्थ है ~
  *अनायासेन मरणम्* अर्थात् बिना तकलीफ के हमारी मृत्यु हो और कभी भी बीमार होकर बिस्तर पर न पड़ें, कष्ट उठाकर मृत्यु को प्राप्त ना हों चलते फिरते ही हमारे प्राण निकल जाएं।

 *बिना देन्येन जीवनम्* अर्थात् परवशता का जीवन ना हो। कभी किसी के सहारे ना रहाना पड़े। जैसे कि लकवा हो जाने पर व्यक्ति दूसरे पर आश्रित हो जाता है वैसे परवश या बेबस ना हों। 

 *देहांते तव सानिध्यम* अर्थात् जब भी मृत्यु हो तब भगवान के सम्मुख हो। जैसे भीष्म पितामह की मृत्यु के समय स्वयं  (कृष्ण जी) उनके सम्मुख जाकर खड़े हो गए। उनके दर्शन करते हुए प्राण निकले।

 *देहि में परमेशवरम्* हे परमेश्वर ऐसा वरदान हमें देना।

    भगवान से प्रार्थना करते हुऐ उपरोक्त श्र्लोक का पाठ करें। गाड़ी, लड़का, लड़की, पति, पत्नी, घर, धन इत्यादि (अर्थात् संसार) नहीं मांगना है, यह तो भगवान आप की पात्रता के हिसाब से खुद आपको देते हैं। इसीलिए दर्शन करने के बाद बैठकर यह प्रार्थना अवश्य करनी चाहिए। यह प्रार्थना है, याचना नहीं है। याचना सांसारिक पदार्थों के लिए होती है। जैसे कि घर, व्यापार,नौकरी, पुत्र, पुत्री, सांसारिक सुख, धन या अन्य बातों के लिए जो मांग की जाती है वह याचना है ।

     *'प्रार्थना' शब्द के 'प्र' का अर्थ होता है 'विशेष' अर्थात् विशिष्ट, श्रेष्ठ और 'अर्थना' अर्थात् निवेदन। प्रार्थना का अर्थ हुआ विशेष निवेदन।*

*॥ सत्यम परम् धीमहि ॥* 

पंं विष्णु शास्त्री

Sunday, August 30, 2020

प्रार्थना

असली प्रार्थना वह है जो तुम्हें बदलती है। प्रार्थना करने में तुम बदलते हो। तुम्हारी प्रार्थना ही अगर तुम्हारे हृदय तक पहुंच जाए, सुन लो तुम तो रूपांतरण हो जाता है….

प्रार्थना का प्रयोजन ही प्रभु तक पहुंचने में नहीं है। प्रार्थना तुम्हारे हृदय का भाव है। फूल खिले सुगंध किसी के नासापुटों तक पहुंचती है, यह बात प्रयोजन की नहीं है। प्रार्थना तुम्हारी फूल की गंध की तरह होनी चाहिए। तुमने निवेदन कर दिया, तुम्हारा आनंद निवेदन करने में ही होना चाहिए। इससे ज्यादा का मतलब है कि कुछ मांग छिपी हुई है भीतर। तुम कुछ मांग रहे हो। जब तुमने मांगा, प्रार्थना को मार डाला, गला घोंट दिया, प्रार्थना तो प्रार्थना ही तभी है, जब उसमें कोई वासना नहीं है। वासना से मुक्त होने के कारण ही प्रार्थना है। वही तो उसकी पावनता है। तुमने अगर प्रार्थना में कुछ वासना रखी, कुछ भी परमात्मा को पाने की ही सही तो तुम्हारा अहंकार बोल रहा है। अहंकार की बोली प्रार्थना नहीं है। अंहकार के तो बोल ही नहीं। प्रार्थना आनंद है। कोयल ने कुहू-कुहू का गीत गाया, मोर नाचा, नदी का कलकल नाद है,फूलों की गंध है, सूरज की किरणें हैं, कहीं कोई प्रयोजन नहीं है,आनंद की अभिव्यक्ति है,ऐसी तुम्हारी प्रार्थना हो। तुम्हें इतना दिया है परमात्मा ने, प्रार्थना तुम्हारा धन्यवाद होना चाहिए-तुम्हारी कृतज्ञता। लेकिन प्रार्थना तुम्हारी मांग होती है। तुम यह नहीं कहने जाते मंदिर कि हे प्रभु , इतना तूने दिया, धन्यवाद! कि मैं अपात्र, और मुझे इतना भर दिया! मेरी कोई योग्यता नहीं, और तू औघड़दानी और तूने इतना दिया। मैंने कुछ भी अर्जित नहीं किया, और तू दिए चला जाता है, तेरे दान का अंत नहीं है। धन्यवाद देने जब तुम मंदिर जाते हो तब प्रार्थना। पहुंची या नहीं पहुंची यह सवाल नहीं है। तुमने कुछ मांगा, तो उसका अर्थ हुआ कि तुम परमात्मा को बदलने गए। उसका इरादा मेरे अनुसार चलना चाहिए। यह प्रार्थना हुई? तुम परमात्मा को अपने से ज्यादा समझदार समझ रहे हो? तुम सलाह दे रहे हो? यह अपमान हुआ। यह नास्तिकता है, आस्तिकता नहीं है। आस्तिक तो कहता है तेरी मर्जी ही ठीक है। मेरी मर्जी सुनना ही मत। क्योंकि मेरी सुनी तो भूल हो जाएगी। तू जो करे वो ठीक है। ठीक की और कोई परिभाषा नहीं है। प्रार्थना तुम्हारा सहज आनंदभाव । प्रार्थना साधन नहीं ,साध्य। प्रार्थना अपने में पर्याप्त,अपने में पूरी, परिपूर्ण। नाचो, गाओ, आह्लाद प्रकट करो, उत्सव मनाओ। बस वही आनंद है। वही आनंद तुम्हें रूपांतरित करेगा। वही आनंद रसायन है। उसी आनंद में लिप्त होते-होते तुम पाओगे-अरे परमात्मा तक पहुंचे या नहीं, इससे क्या प्रयोजन है? मैं बदल गया! मैं नया हो आया! प्रार्थना स्नान है आत्मा का। उससे तुम शुद्ध होओगे, तुम निखरोगे। और एक दिन तुम पाओगे कि प्रार्थना निखरती गई, एक दिन अचानक चौंक कर पाओगे कि तुम ही परमात्मा हो। जब तक यह जान न लिया जाए कि मैं परमात्मा हूं तब तक कुछ भी नहीं जाना-या जो जाना सब आसार है।

Monday, August 17, 2020

असली खुशी पाने में नहीं देने में है

व्हाट्सएप पर प्राप्त किसी महिला का संस्मरण:
सच्ची घटना पर आधारित यह बात कुछ दिनों पुरानी है जब स्कूल बस की हड़ताल चल रही थी। मेरे मिस्टर अपने व्यवसाय की एक आवश्यक मीटिंग में बिजी थे इसलिए मेरे 5 साल के बेटे को स्कूल से लाने के लिए मुझे टू-व्हीलर पर जाना पड़ा। 
जब मैं टू व्हीलर से घर की ओर वापस आ रही थी, तब अचानक रास्ते में मेरा बैलेंस बिगड़ा और मैं एवं मेरा बेटा हम दोनों गाड़ी सहित नीचे गिर गए। मेरे शरीर पर कई खरोंच आए लेकिन प्रभु की कृपा से मेरे बेटे को कहीं खरोच तक नहीं आई ।
हमें नीचे गिरा देखकर आसपास के कुछ लोग इकट्ठे हो गए और उन्होंने हमारी मदद करना चाही। तभी मेरी कामवाली बाई राधा ने मुझे दूर से ही देख लिया और वह दौड़ी चली आई ।उसने मुझे सहारा देकर खड़ा किया, और अपने एक परिचित से मेरी गाड़ी एक दुकान पर खड़ी करवा दी।
वह मुझे कंधे का सहारा देकर अपने घर ले गई जो पास में ही था। जैसे ही हम घर पहुंचे वैसे ही राधा के दोनों बच्चे हमारे पास आ गए। राधा ने अपने पल्लू से बंधा हुआ 50 का नोट निकाला और अपने बेटे राजू को दूध ,बैंडेज एवं एंटीसेप्टिक क्रीम लेने के लिए भेजा तथा अपनी बेटी रानी को पानी गर्म करने का बोला। उसने मुझे कुर्सी पर बिठाया तथा मटके का ठंडा जल पिलाया। इतने मे पानी गर्म हो गया था। वह मुझे लेकर बाथरूम में गई और वहां पर उसने मेरे सारे जख्मों को गर्म पानी से अच्छी तरह से धोकर साफ किए और बाद में वह उठकर बाहर गई वहां से वह एक नया टावेल और एक नया गाउन मेरे लिए लेकर आई। उसने टावेल से मेरा पूरा बदन पोंछ तथा जहां आवश्यक था वहां बैंडेज लगाई। साथ ही जहां मामूली चोट पर एंटीसेप्टिक क्रीम लगाया।
अब मुझे कुछ राहत महसूस हो रही थी।
उसने मुझे पहनने के लिए नया गाउन दिया वह बोली "यह गाउन मैंने कुछ दिन पहले ही खरीदा था लेकिन आज तक नहीं पहना मैडम आप यही पहन लीजिए तथा थोड़ी देर आप रेस्ट कर लीजिए। "
"आपके कपड़े बहुत गंदे हो रहे हैं हम इन्हें धो कर सुखा देंगे फिर आप अपने कपड़े बदल लेना।" मेरे पास कोई चॉइस नहीं थी मैं गाउन पहनकर बाथरुम से बाहर आई। उसने झटपट अलमारी में से एक नया चद्दर निकाल और पलंग पर बिछाकर बोली आप थोड़ी देर यहीं आराम कीजिए।
इतने मैं बिटिया ने दूध भी गर्म कर दिया था।
राधा ने दूध में दो चम्मच हल्दी मिलाई और मुझे पीने को दिया और बड़े विश्वास से कहा मैडम आप यह दूध पी लीजिए आपके सारे जख्म भर जाएंगे।
लेकिन अब मेरा ध्यान तन पर था ही नहीं बल्कि मेरे अपने मन पर था। मेरे मन के सारे जख्म एक एक कर के हरे हो रहे थे।।मैं सोच रही थी "कहां मैं और कहां यह राधा?" जिस राधा को मैं फटे पुराने कपड़े देती थी, उसने आज मुझे नया टावेल दिया, नया गाउन दिया और मेरे लिए नई बेडशीट लगाई। धन्य है यह राधा।
एक तरफ मेरे दिमाग में यह सब चल चल रहा था तब दूसरी तरफ राधा गरम गरम चपाती और भिंडी की सब्जी बना रही थी। थोड़ी देर मे वह थाली लगाकर ले आई। वह बोली "आप और बेटा दोनों खाना खा लीजिए।" राधा को मालूम था कि मेरा बेटा भिंडी की सब्जी ही पसंद करता है और उसे गरम गरम रोटी चाहिए।
इसलिए उसने रानी से तैयार करवा दी थी।
रानी बड़े प्यार से मेरे बेटे को भिंडी की सब्जी और रोटी खिला रही थी और मैं इधर प्रायश्चित की आग में जल रही थी, सोच रही थी कि जब भी इसका बेटा राजू मेरे घर आता था मैं उसे एक तरफ बिठा देती थी, उसको नफरत से देखती थी और इन लोगों के मन में हमारे प्रति कितना प्रेम है ।
यह सब सोच सोच कर मैं आत्मग्लानि से भरी जा रही थी। मेरा मन दुख और पश्चाताप से भर गया था।
तभी मेरी नज़र राजू के पैरों पर गई जो लंगड़ा कर चल रहा था मैंने राधा से पूछा "राधा इसके पैर को क्या हो गया तुमने इलाज नहीं करवाया ?" राधा ने बड़े दुख भरे शब्दों में कहा मैडम इसके पैर का ऑपरेशन करवाना है जिसका खर्च करीबन ₹ 10000 रुपए है। मैंने और राजू के पापा ने रात दिन मेहनत कर के ₹5000 तो जोड़ लिए हैं ₹5000 की और आवश्यकता है। हमने बहुत कोशिश की लेकिन कहीं से मिल नहीं सके, ठीक है भगवान का भरोसा है जब आएंगे तब इलाज हो जाएगा। फिर हम लोग कर ही क्या सकते हैं? तभी मुझे ख्याल आया कि राधा ने एक बार मुझसे ₹5000 अग्रिम मांगे थे और मैंने बहाना बनाकर मना कर दिया था।
आज वही राधा अपने पल्लू में बंधे सारे रुपए हम पर खर्च कर के खुश थी और हम उसको, पैसे होते हुए भी मुकर गए थे और सोच रहे थे कि बला टली।
आज मुझे पता चला कि उस वक्त इन लोगों को पैसों की कितनी सख्त आवश्यकता थी।
मैं अपनी ही नजरों में गिरती ही चली जा रही थी। अब मुझे अपने शारीरिक जख्मों की चिंता बिल्कुल नहीं थी बल्कि उन जख्मों की चिंता थी जो मेरी आत्मा को मैंने ही लगाए थे। मैंने दृढ़ निश्चय किया कि जो हुआ सो हुआ लेकिन आगे जो होगा वह सर्वश्रेष्ठ ही होगा।
मैंने उसी वक्त राधा के घर में जिन जिन चीजों का अभाव था उसकी एक लिस्ट अपने दिमाग में तैयार की। थोड़ी देर में मैं लगभग ठीक हो गई। मैंने अपने कपड़े चेंज किए। लेकिन वह गाउन मैंने अपने पास ही रखा और राधा को बोला "यह गाऊन अब तुम्हें कभी भी नहीं दूंगी यह गाऊन मेरी जिंदगी का सबसे अमूल्य तोहफा है।"
राधा बोली मैडम यह तो बहुत हल्की रेंज का है। राधा की बात का मेरे पास कोई जवाब नहीं था। मैं घर आ गई लेकिन रात भर सो नहीं पाई मैंने अपनी सहेली के मिस्टर, जो की हड्डी रोग विशेषज्ञ थे, उनसे राजू के लिए अगले दिन का अपॉइंटमेंट लिया। दूसरे दिन मेरी किटी पार्टी भी थी । लेकिन मैंने वह पार्टी कैंसिल कर दी और राधा की जरूरत का सारा सामान खरीदा। 
और वह सामान लेकर में राधा के घर पहुंच गई।
राधा समझ ही नहीं पा रही थी कि इतना सारा सामान एक साथ में उसके घर मै क्यों लेकर गई। मैंने धीरे से उसको पास में बिठाया और बोला मुझे मैडम मत कहो मुझे अपनी बहन ही समझो यह सारा सामान मैं तुम्हारे लिए नहीं लाई हूं मेरे इन दोनों प्यारे बच्चों के लिए लाई हूं और हां मैंने राजू के लिए एक अच्छे डॉक्टर से अपॉइंटमेंट ले लिया है अपन को शाम 7:00 बजे उसको दिखाने चलना है उसका ऑपरेशन जल्द से जल्द करवा लेंगे और तब राजू भी अच्छी तरह से दोड़ने लग जाएगा। राधा यह बात सुनकर खुशी के मारे रो पड़ी लेकिन यह भी कहती रही कि "मैडम यह सब आप क्यों कर रहे हो?" हम बहुत छोटे लोग हैं हमारे यहां तो यह सब चलता ही रहता है। वह मेरे पैरों में गिरने लगी। यह सब सुनकर और देखकर मेरा मन भी द्रवित हो उठा और मेरी आंखों से भी आंसू के झरने फूट पड़े। मैंने उसको दोनों हाथों से ऊपर उठाया और गले लगा लिया मैंने बोला बहन रोने की जरूरत नहीं है अब इस घर की सारी जवाबदारी मेरी है। मैंने मन ही मन कहा राधा तुम क्या जानती हो कि मैं कितनी छोटी हूं और तुम कितने बड़ी हो आज तुम लोगों के कारण मेरी आंखे खुल सकीं। मेरे पास इतना सब कुछ होते हुए भी मैं भगवान से और अधिक की भीख मांगती रही मैंने कभी संतोष का अनुभव नहीं किया।
लेकिन आज मैंने जाना के असली खुशी पाने में नहीं देने में है ।
मैं परमपिता परमेश्वर को बार-बार धन्यवाद दे रही थी, कि आज उन्होंने मेरी आंखें खोल दी। मेरे पास जो कुछ था वह बहुत अधिक था उसके लिए मैंने परमात्मा को बार-बार अपने ऊपर उपकार माना तथा उस धन को जरूरतमंद लोगों के बीच खर्च करने का पक्का निर्णय किया।
  1. ( यह कहानी व्हाट्सएप पर किसी के व्यक्तिगत अनुभव पर आधारित है लेकिन दिल को छू लेने वाली है )

Saturday, March 7, 2020

शनि प्रदोष व्रत, जानें महत्व और पूजा विधि

शनि की साढ़े साती और ढैया है तो ज़रूर करें ये छोटा सा उपाय

प्रदोष व्रत भगवान शंकर और माता पार्वती से जुड़ा एक बेहद ही शुभ व्रत होता है। इस व्रत के बारे में लोगों के बीच ऐसी मान्यता है कि जो कोई भी इंसान पूरी श्रद्धा से इस व्रत को करता है और पूरे विधि-विधान से भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करता है उसपर भगवान शिव का आशीर्वाद हमेशा बना रहता है। हर महीने की कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को ये व्रत रखा जाता है ।

जानकारी के लिए बता दें कि अगर शनि प्रदोष व्रत पुष्य नक्षत्र में पड़ता है तो ज्योतिषीय दृष्टि से इसका धार्मिक महत्व कई गुना बढ़ जाता है। 

इसके पीछे का तर्क यह है कि नक्षत्र के स्वामी का दर्जा शनिदेव को दिया गया है। ऐसे में इस संयोग को बेहद दुर्लभ माना जा रहा है। वैसे तो प्रदोष और पुष्य नक्षत्र दोनों ही प्रत्येक महीने में आते हैं, लेकिन शनिवार को प्रदोष व्रत का पड़ना और इसी दिन पुष्य नक्षत्र और सौभाग्य योग का संयोग पड़ना सालों-साल में एक बार बनने वाला योग है जो इस वर्ष 7 मार्च 2020, को पड़ रहा है। 

प्रदोष व्रत महत्व और पूजन विधि 

स्कंदपुराण में इस व्रत के बारे में ज़िक्र करते हुए लिखा गया है कि इस व्रत को किसी भी उम्र का कोई इंसान रख सकता है और इस व्रत को दो तरह से रखे जाने का प्रावधान है। कुछ लोग इस व्रत को सूर्योदय के साथ ही सुबह  से शुरू कर के सूर्यास्त तक रखते हैं और शाम को भगवान शिव की पूजा के बाद शाम को अपना व्रत खोल लेते हैं, तो वहीं कुछ लोग इस दिन 24 घंटे व्रत को रखते हैं और रात में जगराता करके भगवान शिव की पूजा करते हैं और अगले दिन ही व्रत खोलते हैं। 

इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान कर लेना चाहिए।
इसके बाद पूरी एकाग्रता से भगवान शिव और माता पार्वती का पूजन करना चाहिए और व्रत का संकल्प लेना चाहिए।

इस दिन का व्रत निर्जला रखा जाता है।

इस दिन पूजा में बेलपत्र, गंगाजल, अक्षत, धूप इत्यादि ज़रूर शामिल करना चाहिए।

शाम के समय स्नानादि करके भगवान शिव का पूजन करें।

इस दिन दशरथकृत शनि स्त्रोत का पाठ भी किये जाने का विशेष महत्व बताया गया है।

इसके अलावा इस दिन शनि चालीसा और शिव चालीसा का पाठ भी करना चाहिए। शाम की पूजा के बाद अन्न-जल ग्रहण किया जा सकता है।

प्रदोष व्रत से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातें 

पौराणिक कथाओं के अनुसार त्रयोदशी के दिन महादेव और माता पार्वती अपने भक्तों की सभी मनोकामना को अवश्य पूरा करते हैं। इस व्रत को बेहद कल्याणकारी माना गया है, साथ ही इस व्रत के प्रभाव से मिलने वाले फल को भी बेहद ख़ास माना जाता है। जानिए इस व्रत से जुड़ी कुछ और बेहद ही ख़ास बातें,

जब प्रदोष व्रत सोमवार को पड़ता है तब उसे सोम प्रदोषम या चंद्र प्रदोषम कहते हैं। किसी भी तरह की मनोकामना पूरी करवानी हो या निरोगी रहने की अभिलाषा हो तो सोमवार का प्रदोष व्रत रखना चाहिए।

जब प्रदोष व्रत मंगलवार को पड़ता है तब उसे भौम प्रदोष कहते हैं। अगर कोई इंसान लंबे समय से बीमार चल रहा हो और उसे इस परेशानी से छुटकारा चाहिए हो तो उन्हें मंगलवार के दिन त्रयोदशी का प्रदोष व्रत रखने की सलाह दी जाती है।

जब प्रदोष व्रत बुधवार को पड़ता है तब उसे बुध प्रदोष या सौम्यवारा प्रदोष कहते हैं। इच्छा पूर्ति के लिए बुधवार को पड़ने वाला प्रदोष व्रत रखने की सलाह दी जाती है।


जब प्रदोष व्रत गुरुवार/बृहस्पतिवार को पड़ता है तब उसे गुरु प्रदोषम कहते हैं। शत्रुओं से मुक्ति पाने के लिए और जीवन की कोई भी बाधा दूर करने के लिए गुरुवार का प्रदोष व्रत रखना बेहद उपयुक्त माना जाता है। 

जब प्रदोष व्रत शुक्रवार को पड़ता है तब उसे शुक्र प्रदोषम कहते हैं। सुहागनों के लिए शुक्रवार को पड़ने वाले प्रदोष व्रत को रखने की सलाह दी जाती है। मान्यता है कि इस दिन व्रत और पूजा करने से उन्हें सौभाग्य की प्राप्ति होती है और उनका दांपत्य जीवन हमेशा ख़ुशियों से भरा रहता है।

जब प्रदोष व्रत शनिवार को पड़ता है तब उसे शनि प्रदोषम कहते हैं। जिन्हें संतान प्राप्ति की कामना होती है उनके लिए शनिवार के प्रदोष व्रत का सुझाव दिया जाता है। इस दिन व्रत-उपवास रखने से भगवान आपकी मनोकामना अवश्य सुनते हैं।

इसलिए भी बेहद ख़ास माना जाता है शनि प्रदोष व्रत 
भगवान शिव को शनिदेव के गुरु का दर्ज़ा प्राप्त है। ऐसे में शनि से संबंधी कोई भी दोष के निवारण के लिए शनि प्रदोष का व्रत बेहद उपयुक्त माना गया है। इस व्रत के बारे में लोगों की ऐसी मान्यता भी है कि ये व्रत इंसान के जीवन पर शनि के प्रकोप, शनि की ढैया, शनि की साढ़ेसाती का भी प्रकोप काफी कम कर देता है। 

इसके अलावा शनिवार को पड़ने वाला प्रदोष व्रत संपूर्ण धन-धान्य दिलाने वाला और समस्त दुखों से छुटकारा देने वाला होता है। इस दिन व्रत और विधि विधान से पूजा करने पर जीवन में शनि से होने वाले दुष्प्रभावों से बचा जा सकता है। 

प्रदोष व्रत मुख्यतः भगवान शिव के लिए रखा जाता है लेकिन शनिवार के दिन पड़ने की वजह से इस दिन शनिदेव की भी पूजा का प्रावधान है। शनिवार के दिन पड़ने की वजह से इसे शनि प्रदोष व्रत भी कहा जाता है। 

इस व्रत को बेहद ख़ास माना जाता है और कहा जाता है कि जो भी इंसान पूरी श्रद्धा से इस दिन व्रत और पूजा करता है उसपर भगवान शिव और शनिदेव की कृपा अवश्य प्राप्त होती है। शनि प्रदोष का व्रत उन्हें भी रखने की सलाह दी जाती है जिनकी शादी में कोई दिक्कत आ रही हो या जिन्हें संतान सुख की इच्छा हो।

जब प्रदोष व्रत रविवार को पड़ता है तब उसे भानु प्रदोष या रवि प्रदोषम कहते हैं। अगर अच्छे स्वास्थ्य और लंबी आयु की कामना है तो आपको रविवार का प्रदोष व्रत रखना चाहिए। 

आयुषी चतुर्वेदी

Tuesday, February 11, 2020

मधुमक्खी या मक्खी

मधुमक्खी से उम्मीद करो कि वह पुष्प पर बैठेगी और उसका चयन करेगी। लेकिन मक्खी से से उम्मीद मत करो कि कचड़ा छोड़कर वह पुष्प चुनेगी, वह तो कचड़े पर ही बैठेगी। गाय व घोड़े साफ स्थान पर चारा चरेंगे व बैठेंगे। सुअर और भैंस से उम्मीद मत करो कि वह कीचड़ में नहीं लौटेंगे

तुम्हारे भाषण व ज्ञान देने से मक्खी, सुअर व भैस कचड़ा व कीचड़ नहीं छोड़ेंगे। जैसे भगवान कृष्ण के ज्ञान देने से दुर्योधन ने अधर्म नहीं छोड़ा।

अतः इसीप्रकार अपने मक्खी, सुअर, भैंस की प्रवृत्ति के पड़ोसी, रिश्तेदार से यह उम्मीद मत करो कि वह तुम्हारी निंदा, चुगली नहीं करेंगे और तुम पर अपशब्दों व तानों के कीचड़ नहीं फेंकेंगे। अतः उन्हें इग्नोर करें और अपने लक्ष्य की ओर बढ़े।

साथ ही स्वयं पर भी चेकलिस्ट लगाएं कि हम स्वयं मख्खी है या मधुमक्खी? निंदा-चुगली का कचड़ा पसन्द है? या ध्यान-स्वाध्याय-भजन-सत्संग का पुष्प?

मक्खी रोग उत्तपन्न करती है और मधुमक्खी मीठा शहद उतपन्न करती है। स्वयं के व्यवहार व स्वभाव की चेकलिस्ट चेक कीजिये कि आपका शहद से मीठा व्यवहार है या कड़वा, दुःख-विषाद व रोग उतपन्न करने वाला मक्खी-मच्छर सा व्यवहार है?

यदि परिवर्तन चाहते तो परिवर्तन का हिस्सा बनो...स्वयं का सुधार संसार की सबसे बड़ी सेवा है...
Posted by awgpblogs.blogspot.com at फ़रवरी 11, 2020

Tuesday, January 21, 2020

मनुष्य शरीर के चक्र

योग के विभूतिपाद में अ‍ष्टसिद्धि के अलावा अन्य अनेक प्रकार की सिद्धियों का वर्णन मिलता है। सभी सिद्धियों को प्राप्त करने के लिए चक्रों को जाग्रत करना चाहिए। मनुष्य शरीर स्थित कुंडलिनी शक्ति में जो चक्र स्थित होते हैं उनकी संख्या कहीं छ: तो कहीं सात बताई गई है।

समय-समय पर चक्रों वाले स्थान पर ध्यान दिया जाए तो मानसिक स्वास्थ्य और सुदृढ़ता के साथ ही सिद्धियां प्राप्त की जा सकती हैं तो जानते है चक्रों को जाग्रत करने की विधि और किस चक्र से प्राप्त होती है कौन सी सिद्धि...

1. मूलाधार चक्र : यह शरीर का पहला चक्र है। गुदा और लिंग के बीच चार पंखुरियों वाला यह 'आधार चक्र' है। 99.9 लोगों की चेतना इसी चक्र पर अटकी रहती है और वे इसी चक्र में रहकर मर जाते हैं। जिनके जीवन में भोग, संभोग और निद्रा की प्रधानता है उनकी ऊर्जा इसी चक्र के आसपास एकत्रित रहती है।

मंत्र : लं

चक्र जगाने की विधि : मनुष्य तब तक पशुवत है, जब तक कि वह इस चक्र में जी रहा है इसीलिए भोग, निद्रा और संभोग पर संयम रखते हुए इस चक्र पर लगातार ध्‍यान लगाने से यह चक्र जाग्रत होने लगता है। इसको जाग्रत करने का दूसरा नियम है यम और नियम का पालन करते हुए साक्षी भाव में रहना।

प्रभाव : इस चक्र के जाग्रत होने पर व्यक्ति के भीतर वीरता, निर्भीकता और आनंद का भाव जाग्रत हो जाता है। सिद्धियां प्राप्त करने के लिए वीरता, निर्भीकता और जागरूकता का होना जरूरी है।

2. स्वाधिष्ठान चक्र- यह वह चक्र है, जो लिंग मूल से चार अंगुल ऊपर स्थित है जिसकी छ: पंखुरियां हैं। अगर आपकी ऊर्जा इस चक्र पर ही एकत्रित है तो आपके जीवन में आमोद-प्रमोद, मनोरंजन, घूमना-फिरना और मौज-मस्ती करने की प्रधानता रहेगी। यह सब करते हुए ही आपका जीवन कब व्यतीत हो जाएगा आपको पता भी नहीं चलेगा और हाथ फिर भी खाली रह जाएंगे।

मंत्र : वं

कैसे जाग्रत करें : जीवन में मनोरंजन जरूरी है, लेकिन मनोरंजन की आदत नहीं। मनोरंजन भी व्यक्ति की चेतना को बेहोशी में धकेलता है। फिल्म सच्ची नहीं होती लेकिन उससे जुड़कर आप जो अनुभव करते हैं वह आपके बेहोश जीवन जीने का प्रमाण है। नाटक और मनोरंजन सच नहीं होते।

प्रभाव : इसके जाग्रत होने पर क्रूरता, गर्व, आलस्य, प्रमाद, अवज्ञा, अविश्वास आदि दुर्गणों का नाश होता है। सिद्धियां प्राप्त करने के लिए जरूरी है कि उक्त सारे दुर्गुण समाप्त हो तभी सिद्धियां आपका द्वार खटखटाएंगी।

3. मणिपुर चक्र : नाभि के मूल में स्थित रक्त वर्ण का यह चक्र शरीर के अंतर्गत मणिपुर नामक तीसरा चक्र है, जो दस दल कमल पंखुरियों से युक्त है। जिस व्यक्ति की चेतना या ऊर्जा यहां एकत्रित है उसे काम करने की धुन-सी रहती है। ऐसे लोगों को कर्मयोगी कहते हैं। ये लोग दुनिया का हर कार्य करने के लिए तैयार रहते हैं।

मंत्र : रं

कैसे जाग्रत करें : आपके कार्य को सकारात्मक आयाम देने के लिए इस चक्र पर ध्यान लगाएंगे। पेट से श्वास लें।

प्रभाव : इसके सक्रिय होने से तृष्णा, ईर्ष्या, चुगली, लज्जा, भय, घृणा, मोह आदि कषाय-कल्मष दूर हो जाते हैं। यह चक्र मूल रूप से आत्मशक्ति प्रदान करता है। सिद्धियां प्राप्त करने के लिए आत्मवान होना जरूरी है। आत्मवान होने के लिए यह अनुभव करना जरूरी है कि आप शरीर नहीं, आत्मा हैं। आत्मशक्ति, आत्मबल और आत्मसम्मान के साथ जीवन का कोई भी लक्ष्य दुर्लभ नहीं।

4. अनाहत चक्र- हृदय स्थल में स्थित स्वर्णिम वर्ण का द्वादश दल कमल की पंखुड़ियों से युक्त द्वादश स्वर्णाक्षरों से सुशोभित चक्र ही अनाहत चक्र है। अगर आपकी ऊर्जा अनाहत में सक्रिय है, तो आप एक सृजनशील व्यक्ति होंगे। हर क्षण आप कुछ न कुछ नया रचने की सोचते हैं। आप चित्रकार, कवि, कहानीकार, इंजीनियर आदि हो सकते हैं।

मंत्र : यं

कैसे जाग्रत करें : हृदय पर संयम करने और ध्यान लगाने से यह चक्र जाग्रत होने लगता है। खासकर रात्रि को सोने से पूर्व इस चक्र पर ध्यान लगाने से यह अभ्यास से जाग्रत होने लगता है और सुषुम्ना इस चक्र को भेदकर ऊपर गमन करने लगती है।

प्रभाव : इसके सक्रिय होने पर लिप्सा, कपट, हिंसा, कुतर्क, चिंता, मोह, दंभ, अविवेक और अहंकार समाप्त हो जाते हैं। इस चक्र के जाग्रत होने से व्यक्ति के भीतर प्रेम और संवेदना का जागरण होता है। इसके जाग्रत होने पर व्यक्ति के समय ज्ञान स्वत: ही प्रकट होने लगता है।

व्यक्ति अत्यंत आत्मविश्वस्त, सुरक्षित, चारित्रिक रूप से जिम्मेदार एवं भावनात्मक रूप से संतुलित व्यक्तित्व बन जाता हैं। ऐसा व्यक्ति अत्यंत हितैषी एवं बिना किसी स्वार्थ के मानवता प्रेमी एवं सर्वप्रिय बन जाता है।

5. विशुद्ध चक्र- कंठ में सरस्वती का स्थान है, जहां विशुद्ध चक्र है और जो सोलह पंखुरियों वाला है। सामान्यतौर पर यदि आपकी ऊर्जा इस चक्र के आसपास एकत्रित है तो आप अति शक्तिशाली होंगे।

मंत्र : हं

कैसे जाग्रत करें : कंठ में संयम करने और ध्यान लगाने से यह चक्र जाग्रत होने लगता है।

प्रभाव : इसके जाग्रत होने कर सोलह कलाओं और सोलह विभूतियों का ज्ञान हो जाता है। इसके जाग्रत होने से जहां भूख और प्यास को रोका जा सकता है वहीं मौसम के प्रभाव को भी रोका जा सकता है।

6. आज्ञाचक्र : भ्रूमध्य (दोनों आंखों के बीच भृकुटी में) में आज्ञा चक्र है। सामान्यतौर पर जिस व्यक्ति की ऊर्जा यहां ज्यादा सक्रिय है तो ऐसा व्यक्ति बौद्धिक रूप से संपन्न, संवेदनशील और तेज दिमाग का बन जाता है लेकिन वह सब कुछ जानने के बावजूद मौन रहता है। इस बौद्धिक सिद्धि कहते हैं।

मंत्र : ऊं

कैसे जाग्रत करें : भृकुटी के मध्य ध्यान लगाते हुए साक्षी भाव में रहने से यह चक्र जाग्रत होने लगता है।

प्रभाव : यहां अपार शक्तियां और सिद्धियां निवास करती हैं। इस आज्ञा चक्र का जागरण होने से ये सभी शक्तियां जाग पड़ती हैं और व्यक्ति एक सिद्धपुरुष बन जाता है।

7. सहस्रार चक्र : सहस्रार की स्थिति मस्तिष्क के मध्य भाग में है अर्थात जहां चोटी रखते हैं। यदि व्यक्ति यम, नियम का पालन करते हुए यहां तक पहुंच गया है तो वह आनंदमय शरीर में स्थित हो गया है। ऐसे व्यक्ति को संसार, संन्यास और सिद्धियों से कोई मतलब नहीं रहता है।

कैसे जाग्रत करें : मूलाधार से होते हुए ही सहस्रार तक पहुंचा जा सकता है। लगातार ध्यान करते रहने से यह चक्र जाग्रत हो जाता है और व्यक्ति परमहंस के पद को प्राप्त कर लेता है।

प्रभाव : शरीर संरचना में इस स्थान पर अनेक महत्वपूर्ण विद्युतीय और जैवीय विद्युत का संग्रह है। यही मोक्ष का द्वार है।