Friday, October 9, 2020

ग्रहों की शांति के लिए लाभकारी हैं ये पौधे

 


1    ग्रहों की शांति के लिए लाभकारी हैं ये पौधे


आपने कभी सोचा है क‍ि घर के बड़े-बुजुर्ग घर की चारों द‍िशाओं में कोई न कोई पौधा क्‍यों लगाते थे। आपको जानकर हैरानी होगी क‍ि इन पौधों में ग्रह दशाओं को ठीक करने की क्षमता होती है। इसल‍िए बड़े-बुजुर्ग घर की चारों द‍िशाओं में अलग-अलग पौधे लगाते थे। इस आर्टिकल में हम आपको ग्रहों की शांति के लिए घर में लगाए जाने वाले इन पौधों के बारे में जानकारी दे रहे हैं। तो आइए इस व‍िषय पर ऐस्‍ट्रॉलजर प्रमोद पांडेय से व‍िस्‍तार से जानते हैं…


2    बृहस्‍पत‍ि का दोष

अगर कुंडली में बृहस्‍पत‍ि दोष हो तो घर के पिछले हिस्से में केले का पेड़ लगाएं। यह पौधा बृहस्पति देवता का स्वरुप होता है। इसल‍िए केले का पौधा लगाने से कुंडली में व्‍याप्‍त बृहस्‍पत‍ि का दोष भी समाप्‍त हो जाता है। साथ ही धन संबंधी परेशानियों से भी राहत मिलती है।


3    चंद्र दोष


अगर कुंडली में चंद्र दोष हो तो घर के बीचों-बीच आंगन में हरसिंगार का पौधा लगाना चाह‍िए। इस पौधे को घर के बीचों-बीच या पिछले हिस्से में लगाने से आर्थिक संपन्नता प्राप्त होती है। लेक‍िन इसकी देखभाल में लापरवाही न बरतें क्‍योंक‍ि इस पौधे के सूख जाने से मन-मस्तिष्‍क पर नकारात्‍मक प्रभाव पड़ता है।


4.       शुक्र ग्रह दोष


अगर कुंडली में शुक्र दोष हो तो घर के आंगन में तुलसी का पौधा लगाएं। ऐसा करने से घर से नकारात्मक उर्जा दूर हो जाती है और सकारात्‍मक ऊर्जा का संचार होता है। साथ ही घर-पर‍िवार के सभी सदस्‍यों के जीवन में सुख-समृद्धि का वास होता है। ध्‍यान रखें जिनका शुक्र ग्रह कमजोर है उन्हें न‍ियम‍ित रूप से शाम को तुलसी के आगे दीप प्रज्वलित करना चाहिए।


5.          राहु-केतु दोष


अगर कुंडली में राहु-केतु का दोष हो तो घर में अनार का पौधा लगाना चाह‍िए। इससे राहु-केतु के नकारात्मक प्रभाव को कम होता है। वास्तुशास्‍त्र के अनुसार घर के सामने अनार का पेड़ लगाना शुभता लेकर आता है। इसके अलावा अगर न‍ियम‍ित रूप से प्रत्‍येक सोमवार को अनार के फूल को शहद में डुबोकर भगवान शिव को समर्पित क‍िया जाए तो इससे बड़ी से बड़ी मुश्किल आसानी से दूर हो जाती है।


6    शनि दोष


अगर कुंडली में शनि दोष हो तो घर में शमी का पेड़ लगाना चाह‍िए। मान्यता है कि शमी में सभी देवताओं का वास होता है और इस पेड़ का संबंध शनि महाराज से भी है। इसल‍िए वास्‍तुशास्‍त्र के अनुसार शमी के पौधे को घर के मुख्य द्वार के बायीं ओर लगाना चाह‍िए। साथ ही नियमित रूप से शमी के नीचे सरसों के तेल का दीपक जलाएं। इससे शनिदेव की कृपा बनी रहेगी और ब‍िगड़ते कार्य भी बनने लगते हैं।


7.       बुध, शनि एवम बृहस्पति ग्रहों का दोष


अगर कुंडली में बुध, शनि और बृहस्पति ग्रह का दोष हो तो पीपल लगाना चाह‍िए। मान्‍यता है क‍ि पीपल की नियमित पूजा करने, जल चढ़ाने और परिक्रमा करने से संतान दोष नष्ट होता है और बीमारियों से निजात मिलता है। लेक‍िन ध्‍यान रखें क‍ि पीपल का बोनसाई पेड़ घर के पिछले हिस्से में लगाएं तो यह उन्नति एवं लोगों के स्वास्थ्य को बेहतर बनाए रखने में सहायक होता है।


8    सूर्य और मंगल का दोष


अगर कुंडली में सूर्य और मंगल का दोष हो तो घर में गुड़हल का पौधा लगाना चाह‍िए। यह पौधा सूर्य और मंगल ग्रह से जुड़ा हुआ है। मान्‍यता है क‍ि मंगल ग्रह को प्रसन्न करने के लिए पवनसुत को गुड़हल का फूल अर्पित करें। साथ ही सूर्यदेव को जल अर्पित करते समय उसमें गुड़हल का फूल डालकर अर्घ्‍य दें। ऐसा करने से जातक को अत्‍यंत लाभ होता है और वास्‍तुदोष भी दूर होता है। गुड़हल का पौधा घर में कहीं भी लगा सकते हैं। यह अत्‍यंत लाभकारी होता है।


नवभारतटाइम्स.कॉम अक्टूबर 09, 2020

Saturday, October 3, 2020

त्याग का रहस्य: अखंड ज्योति फरवरी 1943

 एक बार महर्षि नारद ज्ञान का प्रचार करते हुए किसी सघन बन में जा पहुँचे। वहाँ उन्होंने एक बहुत बड़ा घनी छाया वाला सेमर का वृक्ष देखा और उसकी छाया में विश्राम करने के लिए ठहर गये।


नारदजी को उसकी शीतल छाया में आराम करके बड़ा आनन्द हुआ, वे उसके वैभव की भूरि भूरि प्रशंसा करने लगे। 


उन्होंने उससे पूछा कि.. “वृक्ष राज तुम्हारा इतना बड़ा वैभव किस प्रकार सुस्थिर रहता है ? पवन तुम्हें गिराती क्यों नहीं?” 


सेमर के वृक्ष ने हंसते हुए ऋषि के प्रश्न का उत्तर दिया कि- “भगवान् ! बेचारे पवन की कोई सामर्थ्य नहीं कि वह मेरा बाल भी बाँका कर सके। वह मुझे किसी प्रकार गिरा नहीं सकता।” 


नारदजी को लगा कि सेमर का वृक्ष अभिमान के नशे में ऐसे वचन बोल रहा है। उन्हें यह उचित प्रतीत न हुआ और झुँझलाते हुए सुरलोक को चले गये।


सुरपुर में जाकर नारदजी ने पवन से कहा, ‘अमुक वृक्ष अभिमान पूर्वक दर्प वचन बोलता हुआ आपकी निन्दा करता है, सो उसका अभिमान दूर करना चाहिए।‘ 


पवन को अपनी निन्दा करने वाले पर बहुत क्रोध आया और वह उस वृक्ष को उखाड़ फेंकने के लिए बड़े प्रबल प्रवाह के साथ आँधी तूफान की तरह चल दिया।


सेमर का वृक्ष बड़ा तपस्वी परोपकारी और ज्ञानी था, उसे भावी संकट की पूर्व सूचना मिल गई। वृक्ष ने अपने बचने का उपाय तुरन्त ही कर लिया। उसने अपने सारे पत्ते झाड़ डाले और ठूंठ की तरह खड़ा हो गया। पवन आया उसने बहुत प्रयत्न किया पर ढूँठ का कुछ भी बिगाड़ न सका। अन्ततः उसे निराश होकर लौट जाना पड़ा।


कुछ दिन पश्चात् नारदजी उस वृक्ष का परिणाम देखने के लिए उसी बन में फिर पहुँचे । पर वहाँ उन्होंने देखा कि वृक्ष ज्यों का त्यों हरा भरा खड़ा है। नारदजी को इस पर बड़ा आश्चर्य हुआ। 


उन्होंने सेमर से पूछा- “पवन ने सारी शक्ति के साथ तुम्हें उखाड़ने की चेष्टा की थी पर तुम तो अभी तक ज्यों के त्यों खड़े हुए हो, इसका क्या रहस्य है?”


वृक्ष ने नारदजी को प्रणाम किया और नम्रता पूर्वक निवेदन किया- “ऋषिराज ! मेरे पास इतना वैभव है पर मैं इसके मोह में बँधा हुआ नहीं हूँ। संसार की सेवा के लिए इतने पत्तों को धारण किये हुए हूँ, परन्तु जब जरूरत समझता हूँ इस सारे वैभव को बिना किसी हिचकिचाहट के त्याग देता हूँ और ठूँठ बन जाता हूँ। मुझे वैभव का गर्व नहीं था वरन् अपने ठूँठ होने का अभिमान था इसीलिए मैंने पवन की अपेक्षा अपनी सामर्थ्य को अधिक बताया था। आप देख रहे हैं कि उसी निर्लिप्त कर्मयोग के कारण मैं पवन की प्रचंड टक्कर सहता हुआ भी यथा पूर्व खड़ा हुआ हूँ।“


नारदजी समझ गये कि संसार में वैभव रखना, धनवान होना कोई बुरी बात नहीं है। इससे तो बहुत से शुभ कार्य हो सकते हैं। बुराई तो धन के अभिमान में डूब जाने और उससे मोह करने में है। यदि कोई व्यक्ति धनी होते हुए भी मन से पवित्र रहे तो वह एक प्रकार का साधु ही है। ऐसे जल में कमल की तरह निर्लिप्त रहने वाले कर्मयोगी साधु के लिए घर ही तपोभूमि है।


‘अखण्ड ज्योति, फरवरी-1943’