Saturday, March 7, 2020

शनि प्रदोष व्रत, जानें महत्व और पूजा विधि

शनि की साढ़े साती और ढैया है तो ज़रूर करें ये छोटा सा उपाय

प्रदोष व्रत भगवान शंकर और माता पार्वती से जुड़ा एक बेहद ही शुभ व्रत होता है। इस व्रत के बारे में लोगों के बीच ऐसी मान्यता है कि जो कोई भी इंसान पूरी श्रद्धा से इस व्रत को करता है और पूरे विधि-विधान से भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करता है उसपर भगवान शिव का आशीर्वाद हमेशा बना रहता है। हर महीने की कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को ये व्रत रखा जाता है ।

जानकारी के लिए बता दें कि अगर शनि प्रदोष व्रत पुष्य नक्षत्र में पड़ता है तो ज्योतिषीय दृष्टि से इसका धार्मिक महत्व कई गुना बढ़ जाता है। 

इसके पीछे का तर्क यह है कि नक्षत्र के स्वामी का दर्जा शनिदेव को दिया गया है। ऐसे में इस संयोग को बेहद दुर्लभ माना जा रहा है। वैसे तो प्रदोष और पुष्य नक्षत्र दोनों ही प्रत्येक महीने में आते हैं, लेकिन शनिवार को प्रदोष व्रत का पड़ना और इसी दिन पुष्य नक्षत्र और सौभाग्य योग का संयोग पड़ना सालों-साल में एक बार बनने वाला योग है जो इस वर्ष 7 मार्च 2020, को पड़ रहा है। 

प्रदोष व्रत महत्व और पूजन विधि 

स्कंदपुराण में इस व्रत के बारे में ज़िक्र करते हुए लिखा गया है कि इस व्रत को किसी भी उम्र का कोई इंसान रख सकता है और इस व्रत को दो तरह से रखे जाने का प्रावधान है। कुछ लोग इस व्रत को सूर्योदय के साथ ही सुबह  से शुरू कर के सूर्यास्त तक रखते हैं और शाम को भगवान शिव की पूजा के बाद शाम को अपना व्रत खोल लेते हैं, तो वहीं कुछ लोग इस दिन 24 घंटे व्रत को रखते हैं और रात में जगराता करके भगवान शिव की पूजा करते हैं और अगले दिन ही व्रत खोलते हैं। 

इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान कर लेना चाहिए।
इसके बाद पूरी एकाग्रता से भगवान शिव और माता पार्वती का पूजन करना चाहिए और व्रत का संकल्प लेना चाहिए।

इस दिन का व्रत निर्जला रखा जाता है।

इस दिन पूजा में बेलपत्र, गंगाजल, अक्षत, धूप इत्यादि ज़रूर शामिल करना चाहिए।

शाम के समय स्नानादि करके भगवान शिव का पूजन करें।

इस दिन दशरथकृत शनि स्त्रोत का पाठ भी किये जाने का विशेष महत्व बताया गया है।

इसके अलावा इस दिन शनि चालीसा और शिव चालीसा का पाठ भी करना चाहिए। शाम की पूजा के बाद अन्न-जल ग्रहण किया जा सकता है।

प्रदोष व्रत से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातें 

पौराणिक कथाओं के अनुसार त्रयोदशी के दिन महादेव और माता पार्वती अपने भक्तों की सभी मनोकामना को अवश्य पूरा करते हैं। इस व्रत को बेहद कल्याणकारी माना गया है, साथ ही इस व्रत के प्रभाव से मिलने वाले फल को भी बेहद ख़ास माना जाता है। जानिए इस व्रत से जुड़ी कुछ और बेहद ही ख़ास बातें,

जब प्रदोष व्रत सोमवार को पड़ता है तब उसे सोम प्रदोषम या चंद्र प्रदोषम कहते हैं। किसी भी तरह की मनोकामना पूरी करवानी हो या निरोगी रहने की अभिलाषा हो तो सोमवार का प्रदोष व्रत रखना चाहिए।

जब प्रदोष व्रत मंगलवार को पड़ता है तब उसे भौम प्रदोष कहते हैं। अगर कोई इंसान लंबे समय से बीमार चल रहा हो और उसे इस परेशानी से छुटकारा चाहिए हो तो उन्हें मंगलवार के दिन त्रयोदशी का प्रदोष व्रत रखने की सलाह दी जाती है।

जब प्रदोष व्रत बुधवार को पड़ता है तब उसे बुध प्रदोष या सौम्यवारा प्रदोष कहते हैं। इच्छा पूर्ति के लिए बुधवार को पड़ने वाला प्रदोष व्रत रखने की सलाह दी जाती है।


जब प्रदोष व्रत गुरुवार/बृहस्पतिवार को पड़ता है तब उसे गुरु प्रदोषम कहते हैं। शत्रुओं से मुक्ति पाने के लिए और जीवन की कोई भी बाधा दूर करने के लिए गुरुवार का प्रदोष व्रत रखना बेहद उपयुक्त माना जाता है। 

जब प्रदोष व्रत शुक्रवार को पड़ता है तब उसे शुक्र प्रदोषम कहते हैं। सुहागनों के लिए शुक्रवार को पड़ने वाले प्रदोष व्रत को रखने की सलाह दी जाती है। मान्यता है कि इस दिन व्रत और पूजा करने से उन्हें सौभाग्य की प्राप्ति होती है और उनका दांपत्य जीवन हमेशा ख़ुशियों से भरा रहता है।

जब प्रदोष व्रत शनिवार को पड़ता है तब उसे शनि प्रदोषम कहते हैं। जिन्हें संतान प्राप्ति की कामना होती है उनके लिए शनिवार के प्रदोष व्रत का सुझाव दिया जाता है। इस दिन व्रत-उपवास रखने से भगवान आपकी मनोकामना अवश्य सुनते हैं।

इसलिए भी बेहद ख़ास माना जाता है शनि प्रदोष व्रत 
भगवान शिव को शनिदेव के गुरु का दर्ज़ा प्राप्त है। ऐसे में शनि से संबंधी कोई भी दोष के निवारण के लिए शनि प्रदोष का व्रत बेहद उपयुक्त माना गया है। इस व्रत के बारे में लोगों की ऐसी मान्यता भी है कि ये व्रत इंसान के जीवन पर शनि के प्रकोप, शनि की ढैया, शनि की साढ़ेसाती का भी प्रकोप काफी कम कर देता है। 

इसके अलावा शनिवार को पड़ने वाला प्रदोष व्रत संपूर्ण धन-धान्य दिलाने वाला और समस्त दुखों से छुटकारा देने वाला होता है। इस दिन व्रत और विधि विधान से पूजा करने पर जीवन में शनि से होने वाले दुष्प्रभावों से बचा जा सकता है। 

प्रदोष व्रत मुख्यतः भगवान शिव के लिए रखा जाता है लेकिन शनिवार के दिन पड़ने की वजह से इस दिन शनिदेव की भी पूजा का प्रावधान है। शनिवार के दिन पड़ने की वजह से इसे शनि प्रदोष व्रत भी कहा जाता है। 

इस व्रत को बेहद ख़ास माना जाता है और कहा जाता है कि जो भी इंसान पूरी श्रद्धा से इस दिन व्रत और पूजा करता है उसपर भगवान शिव और शनिदेव की कृपा अवश्य प्राप्त होती है। शनि प्रदोष का व्रत उन्हें भी रखने की सलाह दी जाती है जिनकी शादी में कोई दिक्कत आ रही हो या जिन्हें संतान सुख की इच्छा हो।

जब प्रदोष व्रत रविवार को पड़ता है तब उसे भानु प्रदोष या रवि प्रदोषम कहते हैं। अगर अच्छे स्वास्थ्य और लंबी आयु की कामना है तो आपको रविवार का प्रदोष व्रत रखना चाहिए। 

आयुषी चतुर्वेदी