Monday, January 7, 2019

उच्चतम अवस्था की प्राप्ति

यदि दूसरों के विचार आपके विचारों से मुक्त हों तो उनसे लड़ाई-झगड़ा न करो। अनेक प्रकार के मन होते हैं। विचारने की शैली अनेक प्रकार की हुआ करती है। विचारने के भिन्न-भिन्न दृष्टिकोण हुआ करते हैं। अतएव सभी दृष्टिकोण निर्दोष हो सकते हैं। लोगों के मत के अनुकूल बनो। उनके मत को भी ध्यान तथा सहानुभूतिपूर्वक देखो और उनका आदर करो। अपने अहंकार चक्र के क्षुद्र केंद्र से बाहर निकलो और अपनी दृष्टि को विस्तृत करो। अपना मन सर्वग्राही और उदार बनाकर सबके मत के लिए स्थान रखो, तभी आपका जीवन विस्तृत और हृदय उदार होगा।
आपको धीरे-धीरे, मधुर और नम्र होकर बातचीत करनी चाहिए। मितभाषी बनो। अवांछनीय विचारों और संवेदनाओं को निकाल दो। अभिमान या चिड़चिड़ेपन को लेशमात्र भी बाकी नहीं रहने दो। अपने आप को बिलकुल भुला दो। अपने व्यक्तित्व का एक भी अंश या भाव न रहने पावे। सेवा-कार्य के लिए पूर्ण आत्मसमर्पण की आवश्यकता है।
यदि आप में उपर्युक्त सद्गुण मौजूद हैं तो आप संसार के लिए पथप्रदर्शक और अमूल्य प्रसाद रूप हो। आप एक अलौकिक सुगंधित पुष्प हो जिसकी सुगंध देश-भर में व्याप्त हो जाएगी। यदि आपने ऐसा कर लिया तो समझ लो आपने बुद्धत्व की उच्चतम अवस्था को प्राप्त कर लिया।
✍🏻 पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 आत्मज्ञान और आत्मकल्याण पृष्ठ 5

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