Tuesday, August 25, 2015

व्यक्ति और उसका जीवन ही शक्ति का स्रोत है

* वीरता से आगे बढो़। एक दिन या एक साल में सिद्धि की आशा न रखो। उच्चतम आदर्श पर दृढ़ एवं स्थिर रहो। स्वार्थपरता और ईर्ष्या से बचो। आज्ञा पालन करो। सत्य, मनुष्य जाति और अपने देश के पक्ष पर सदा के लिए अटल रहो और तुम संसार को हिला दोगे। याद रखो- व्यक्ति और उसका जीवन ही शक्ति का स्रोत है, इसके सिवाय अन्य कुछ भी नहीं।

* सभी मरेंगे ही, यही संसार का नियम है। साधु हो या असाधु, धनी हो या दरिद्र सभी मरेंगे। चिरकाल तक किसी का शरीर नहीं रहेगा। अतएव उठो, जागो और संपूर्ण रूप से निष्कपट हो जाओ। भारत में घोर कपट समा गया है। चाहिए चरित्र, चाहिए दृढ़ता और चरित्र का बल, जिससे मनुष्य आजीवन दृढ़व्रत बन सके।

* मन और मुंह को एक करके भावों को जीवन में कार्यान्वित करना होगा। इसी को श्रीरामकृष्ण कहा करते थे- भाव के घर में किसी प्रकार की चोरी न होने पाए। सब विषयों में व्यावहारिक बनना होगा। लोगों या समाज की बातों पर ध्यान न देकर वे एकाग्र मन से अपना कार्य करते रहेंगे। क्या तुमने नहीं सुने हैं कबीरदास के दोहे- 'हाथी चले बाजार में, कुत्ता भौंके हजार साधुन को दुर्भाव नहिं, जो निंदे संसार' ऐसे ही हमें भी निरंतर चलना है। दुनिया के लोगों की बातों पर ध्यान नहीं देना होगा। उनकी भली-बुरी बातों को सुनने से जीवन भर कोई किसी प्रकार का महत् कार्य नहीं कर सकता।

* प्रत्येक कार्य में अपनी समस्त शक्ति का प्रयोग करो। पहले स्वयं संपूर्ण मुक्तावस्था प्राप्त कर लो, उसके बाद इच्छा करने पर फिर अपने को सीमाबद्ध कर सकते हो।

* मैं चाहता हूं कि मेरे सब बच्चे, मैं जितना उन्नत बन सकता था, उससे सौगुना उन्नत बनें। तुम लोगों में से प्रत्येक को महान शक्तिशाली बनना होगा। मैं कहता हूं- अवश्य बनना होगा। आज्ञा-पालन, ध्येय के प्रति अनुराग तथा ध्येय को कार्यरूप में परिणत करने के लिए सदा प्रस्तुत रहना। इन तीनों के रहने पर कोई भी तुम्हे अपने मार्ग से विचलित नहीं कर सकता।

* जो पवित्र तथा साहसी है, वही जगत् में सब कुछ कर सकता है। माया-मोह से प्रभु सदा तुम्हारी रक्षा करें। मैं तुम्हारे साथ काम करने के लिए सदैव प्रस्तुत हूं एवं हम लोग यदि स्वयं अपने मित्र रहें तो प्रभु भी हमारे लिए सैकड़ों मित्र भेजेंगे।

* आओ हम नाम, यश और दूसरों पर शासन करने की इच्छा से रहित होकर काम करें। काम, क्रोध एंव लोभ इस त्रिविध बंधन से हम मुक्त हो जाएं और फिर सत्य हमारे साथ रहेगा।

* न टालो, न ढूंढों! भगवान अपनी इच्छानुसार जो कुछ भेजें, उसके लिए प्रतिक्षा करते रहो, यही मेरा मूलमंत्र है।

* बिना पाखंडी और कायर बने सबको प्रसन्न रखो। पवित्रता और शक्ति के साथ अपने आदर्श पर दृढ रहो और फिर तुम्हारे सामने कैसी भी बाधाएं क्यों न हों, कुछ समय बाद संसार तुमको मानेगा ही।

* धीरज रखो और मृत्युपर्यंत विश्वासपात्र रहो। आपस में न लडो! रुपए-पैसे के व्यवहार में शुध्द भाव रखो। हम अभी महान कार्य करेंगे। जब तक तुममें ईमानदारी, भक्ति और विश्वास है, तब तक प्रत्येक कार्य में तुम्हे सफलता मिलेगी।

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