Monday, April 23, 2012

जो बदला नहीं जा सकता, उसको स्वीकार करें

जीवन सुख-दुःख का चक्र है। यही जीवन का सत्य है। अनुकूल समय में हमें इस पर विचार करने की आवश्यकता नहीं होती। जब कभी हमारे समक्ष विपरीत परिस्थितियाँ आती हैं तो हम किंकर्तव्य विमूढ़ हो जाते हैं। ऐसे में स्वजन और मित्रगण संबल बनते हैं, समाधान खोजने में सहायता करते हैं तो राहत मिलती है और मार्गदर्शक पुस्तकें तूफान में दीप-स्तंभ-सी मालूम होती हैं।

दुःख के प्रमुख कारण बाहरी परिस्थितियाँ, आसपास के व्यक्तियों का व्यवहार, महत्वाकांक्षाएँ एवं कामनाएँ हैं। जीवन में आई प्रतिकूल परिस्थितियों एवं समस्याओं के लिए कोई दूसरा व्यक्ति या भाग्य दोषी नहीं है। उसके लिए हम स्वयं ही जिम्मेदार हैं, हमारे कर्मों और व्यवहार की वजह से ही परिस्थितियाँ निर्मित होती हैं। हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि सामने वाले व्यक्ति का व्यवहार हमारे व्यवहार को प्रभावित न करें। हम अपने स्वभाव के अनुकूल क्रिया करें। 

'मैं', 'मेरा', 'मेरे लिए' शब्दों का कम से कम प्रयोग होना चाहिए। 
अभी कुछ कमी है और कुछ चाहिए, यह सोचकर दुःख बढ़ता है। 
अपने काम और अपने कर्तव्यों का ठीक से निर्वहन ही चिंता का विषय हो, परिणाम नहीं। 
ऊर्जा का उपयोग काम में हो, परिणाम में नहीं। 
स्वयं को श्रेष्ठ सिद्ध करने में मन की शांति नहीं खोना चाहिए।
परिस्थितियाँ, लोगों का व्यवहार, हम नहीं चुन सकते, पर कामनाओं पर नियंत्रण रख सकते हैं। 
दीर्घकालीन तनाव शरीर और मन के लिए घातक है। 
जो बदला नहीं जा सकता, उसको स्वीकार करें, यही उपाय है। 

ND
दूसरों को बदलना कठिन है, स्वयं को बदलने का प्रयास करें।
यथासंभव दूसरों की सहायता करें। सब मेरे ही हैं, यह सोचें।
दोषों की उपेक्षा करें।
भूतकाल से शिक्षा लें, वर्तमान में जिएँ व भविष्य की दुश्चिंता न करें।
व्यायाम, योग, प्राणायाम, ध्यान इनका अवश्य लाभ लें। गहरी श्वास लेने से मन शांत होगा। 

प्रातः एवं रात्रि प्रार्थना अवश्य करें।
ईश्वर को धन्यवाद दें।
व्यर्थ विवाद एवं नकारात्मक विचार टाले जाएँ तो बेहतर है। 
भोजन प्रसाद समझकर ग्रहण करें। 
आहार की मात्रा उचित हो। 
भरपेट से थोड़ा कम खाने का अभ्यास करें। 
कम से कम बोलना एवं अधिक सुनना समस्याएँ कम करने में सहायक सिद्ध होगा। 
तभी बोलें जब उससे सुनने वाले का हित हो। अपशब्द ग्रहण न करें।
दूसरों से कम अपेक्षाएँ रखें।  

पदार्थ हमें आनंद नहीं दे सकते, आनंद तो मन की अवस्था है। 
स्वयं को सदा सकारात्मक सुझाव देते रहें। 
मन पर अशांति के बादल न छाने पाएँ। 
आप शांत हैं तो अपना काम कुशलतापूर्वक कर पाएँगे।
मैं शरीर नहीं, यह मेरा निवास मात्र है, यही विचार शांति देगा।

दुःख को शिक्षक समझें। उससे सीख लें।
तनाव एवं समस्याएँ ही हमारे मन को जागृत रखते हैं।
समाधान खोजते समय अनजाने हमारा व्यक्तित्व निखरता है।
जैसे सोने में खोट मिलाए बिना आभूषण नहीं बनते, ऐसे ही समस्या सुलझाने से आत्मविश्वास बढ़ता है।

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