Monday, May 16, 2011

'मन को स्थिर रखना ही सबसे बड़ी साधना है।


नगर सेठ का पुत्र था मेघ । बुद्ध के प्रवचनों से प्रभावित होकर उसने भी प्रवज्या ग्रहण करने का फैसला किया। बुद्ध ने उसे अपने निर्णय पर ठीक से सोच लेने को कहा, लेकिन वह अपने फैसले पर दृढ़ रहा। वह बौद्ध विहार में रहने लगा। वह अपने साथ सुख-सुविधाओं की चीजंे लेता आया था। बुद्ध ने एक दिन विहार के वरिष्ठ भिक्षु को मेघ की सुख- सुविधाएं कम करने को कहा। मेघ को अब मोटा भोजन और मोटा बिस्तर दिया जाने लगा। उसे सेवा के कड़े काम भी दिए गए। धीरे-धीरे मेघ की प्रसन्नता को ग्रहण लगने लगा। वह खिन्न सा रहने लगा। 

उसने इससे पहले कभी रूखा-सूखा अन्न नहीं खाया था। वह हमेशा आरामदेह बिस्तर पर सोता था। जब से वह इन सुविधाओं से वंचित हुआ, उसका उत्साह कम होने लगा। उसे लगा कि उसकी शांति छिन गई है। उसके मन में विचार उठना लगा कि कहीं मैंने गलत मार्ग का चुनाव तो नहीं कर लिया। ऐसा तो नहीं कि बाद में मुझे पछताना पड़ेगा। उसने बुद्ध के पास जाकर कहा, 'भगवन, मेरे मन में भौतिक इच्छाएं फिर से पैदा हो रही हैं, आप मुझे विशेष साधना बताएं।' इस पर बुद्ध ने कहा, 'मन को स्थिर रखना ही सबसे बड़ी साधना है। बेहतर यही है कि तुम अपने चित्त को वश में करने का प्रयत्न करो। यह स्थिरता आराम की स्थिति में उपलब्ध होने वाली जड़ता नहीं है। इसमें जीवन का प्रवाह है। हर परिस्थिति के साथ सामंजस्य बनाने की क्षमता है।' बुद्ध की बात सुनकर मेघ उनके समक्ष नतमस्तक हो गया। 

संकलन: लखविन्दर सिंह  

No comments:

Post a Comment