Saturday, January 5, 2019

स्थायी सुख

हम बहुधा शारीरिक सुख तथा मानसिक सुख को ढूँढ़ते फिरते हैं, पर जो सबसे उत्तम सुख है, उस आध्यात्मिक सुख की हमें खबर ही नहीं है। हमारे जितने भी कार्य हैं, उनमें सुख पाने की एक इच्छा छिपी रहती है। हम स्थूलदर्शी मनुष्य बाहरी वस्तुओं से ही सुख पाने की इच्छा रखते हैं। क्या बाहरी वस्तु किसी को सुख दे सकती है?

इस जगत् में हमारे सुख के सामान बाहर नहीं, भीतर हैं, अर्थात् सुख माने के लिए बाहर ढूंढ़ना वृथा है। हिंदू-शास्त्र भी इस बात का प्रमाण देती है कि बिना मन का तत्त्व-निर्णय किए, बाह्य जगत् के सुखों की कोई आशा नहीं। इसलिए मन का तत्त्व जानना और उस पर पूरा अधिकार जमा लेना अत्यंत आवश्यक है। मन को जीत लेने से ही हम संसार को जीत लेंगे।

मनुष्य के लिए सुख की, आनंद की खान भीतर ही है। उसकी झलक बाहर भी दिखाई देती है, पर वह केवल झलक ही है। शास्त्र का कथन ठीक ही है कि यदि सत्य वस्तु, ब्रह्म या परमात्मा का रूप जानना हो, तो हमें अपने चित्त को क्षण भर के लिए स्थिर बनाना पड़ेगा। इसे साधना-धर्म का अंग कहते हैं। इसलिए स्थायी सुख-प्राप्ति के लिए हमें धर्म का आश्रय लेना पड़ेगा। धर्म ही हमें वर्तमान मुहूर्त के क्षणिक सुख के बदले भविष्य में होने वाले अक्षय सुख का मार्ग बताता है।

📖 अखण्ड ज्योति -सितम्बर 1942

No comments:

Post a Comment