Monday, September 16, 2013

ओणम पर्व पर सजेंगी रंगोलियां

केरल का खास पर्व ओणम
ओणम मलयाली कैलेण्डर कोलावर्षम के पहले महीने छिंगम यानी अगस्त-सितंबर के बीच मनाने की परंपरा चली आ रही है। ओणम के पहले दिन को अथम कहते हैं। इस दिन से ही घर-घर में ओणम की तैयारियां प्रारंभ हो चुकी हैं।


घर-घर में कहीं फूलों से बनी रंगोली, तो कहीं नारियल के दूध में बनी खीर। इतना ही नहीं गीत-संगीत और खेलकूद के उत्साह से भरा माहौल। यह सब कुछ हो रहा है मलयाली समाज में। जहां महान राजा बलि के घर आने की खुशी में ओणम पर्व मनाया जा रहा है। ओणम के दिन हम सभी महिलाएं अपने पारंपरिक अंदाज में ही तैयार होती हैं।
जिस प्रकार ओणम में नए कपड़ों की घरों की साज-सज्जा का महत्व है, उसी प्रकार ओणम में कुछ पारंपरिक रीति-रिवाज भी हैं जिनका प्राचीनकाल से आज तक निरंतर पालन किया जा रहा है। जैसे अथम से ही घरों में फूलों की रंगोली बनाने का सिलसिला शुरू हो जाता है। महिलाएं तैयार होकर फूलों की रंगोली जिसे ओणमपुक्कलम कहते हैं, बनाती हैं।


ओणमपुक्कलम विशेष रूप से थिरुओनम के दिन राजा बलि के स्वागत के लिए बनाने की परंपरा है।


फूलों की रंगोली को दीये की रोशनी के साथ सजाया जाता है। जिसे त्रिकाककरयप्पउ कहते हैं। इसके साथ इसके साथ ही ओणम में आऊप्रथमन यानी की खीर भी विशेष है।


ओणम के दिन खास तौर पर नारियल के दूध व गुड़ से पायसम और चावल के आटे को भाप में पकाकर और कई प्रकार की सब्जियां मिलाकर अवियल और केले का हलवा, नारियल की चटनी के साथ चौसठ प्रकार के पकवान बनाए जाते हैं।


पारंपरिक भोज को ओनसद्या कहा जाता है, सद्या को केले के पत्ते पर परोसना शुभ होता है। इसके साथ ही ओणम में केरल के पारंपरिक लोकनृत्य जैसे- शेर नृत्य, कुचीपुड़ी, गजनृत्य, कुमट्टी कली, पुलीकली, कथकली आदि प्रमुख हैं।

इस दस दिनी उत्सव का समापन अंतिम दिन थिरुओनम को होगा। मान्यता है कि थिरुओनम के दिन ही राजा बलि अपनी प्रजा से मिलने के लिए आते हैं।

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