Wednesday, March 6, 2013

काल और कर्म का संयोग है जीवन



आदिशक्ति की लीलाकथा की कडि़यां कर्म के रहस्य का बोध कराती हैं। जीवन की सही पहचान परिचय व परिभाषा इन्हीं दो शब्दों में निहित है- काल व कर्म। हम सबकों जो जीवन मिला है, वह काल का सुनिश्चित खंड है। इसी कालखंड में हमें कर्म करने व भोगने हैं। काल का जो वर्तमान खंड है, उसमें हम अपने मनचाहे कर्म कर सकते हैं। इस अवधि में हम जो भी कर्म करते हैं वे केवल वर्तमान तक सीमित नहीं रहते हैं। इनका प्रभाव हमारे भूतकाल मे हो चुके कर्मों पर पड़ता हैं और भविष्यकाल के कर्मों पर भी। यदि भूतकाल में पुराने अतीत मे हमसे कुछ गलतियां बन पड़ी हैं, कुछ अपराध हो चुके हैं तो वर्तमान के शुभ कर्मों से उनका परिमार्जन, पक्षालन व प्रायश्चित किया जा सकता है। इतना ही नहीं वर्तमान के ये शुभ कर्म हमारे समुज्ज्वल भविष्य का निर्माण करने में भी समर्थ हैं।


जो जीवन के इस सच से सुपरिचित हैं, वे अपने जीवन के प्रत्येक क्षण का सदुपयोग करते हैं और प्रतिक्षण प्रतिपल शुभ कर्मों के संपादन में संलग्न रहते हैं। वे जानते हैं कि जीवन वासना, तृष्णा व अहंता की पूर्ति का साधन नहीं है, बल्कि यह शुभ कर्मों को करने का एक माध्यम हैं। इसके विपरीत जो इस सच से अपरिचित हैं, वे भिन्न-भिन्न भ्रांतियों में भटकते-बहकते रहते हैं। कभी उन्हें मोह बांधता है, तो कभी वासना खींचती है और कभी ऐसे लोग अहंता के उन्माद में अकरणीय करते रहते हैं। कर्म अपने वर्तमानकाल में बहुत कुछ मनचाहा कर सकते हैं, परंतु उचित समय पर जब ये कर्म काल के गर्भ में परिपक्व हो जाते हैं तो इनके परिणाम को भोगने के लिए हमें विवश होना पड़ता है। इसलिए जो जीवन के सच को, इसके मर्म को समझते हैं वे जानते हैं कि जीवन न तो केवल काल है और न ही केवल कर्म। यह तो इन दोनों का सुखद संयोग है, जो सदा शुभ कर्म करते हैं। उनके लिए काल का प्रत्येक क्षण सर्वदा श्ुभ होता है, परंतु जो भ्रांति, भटकन, लालसा या फिर उन्माद में अशुभ कर्म करने लगते हैं उनके लिए काल का प्रत्येक क्षण अशुभ ही होता है। इसलिए अशुभ कर्म, अशुभ भाव एवं अशुभ विचार से जितना बचा जाए, उतना ही अच्छा है। आदिशक्ति जगन्माता काल व कर्म की नियंता होने के कारण महाकाली कहलाती है। वही जब शुभ कर्मों का सत्परिणाम देती हैं तो महालक्ष्मी कही जाती हैं। भ्रांतियों भटकन को दूर भगाते समय वही महासरस्वती का स्वरूप धारण करती हैं। लेकिन जो अशुभ कर्मों की डगर पर चल पड़ता है, उसके लिए आदिशक्ति से महाकाली स्वरूप में विनाश प्रकट हो जाता है। महालक्ष्मी बन कर समृद्धि देने के बजाय जेष्ठा बनकर संपूर्ण समृद्धि का हरण कर लेती हैं। यही नहीं वह अशुभ परिणाम देने कोआप संस्थिता हो जाती हैं। जीवन में जब भी ऐसा समय आता है तो वह बड़ा कष्टकारक व विषम होता है। ऐसे कष्टकारी, क्लेशकारी समय का एक ही समाधान है, भगवती के श्री चरणों में शरणागति। इस शरणागति के पथ को जो सुझाता है, बताता है वही महर्षि मेधा की भांति सच्चा सदगुरु हो जाता है।

No comments:

Post a Comment