Saturday, November 12, 2011

वास्तु एवं पुरुषार्थ


अनादिकाल से ऋषि-मुनियों, आचार्यों, सरस्वती पुत्र एवं श्रेष्ठी जनों का बराबर सम्मान होता रहा है वर्तमान समय में दूरदर्शन एवं समाचार पत्रों ने वास्तु, न्यूमरोलॉजी, ज्योतिष, योगा व मेडीटेशन इत्यादि शास्रों की जानकारी जन-जन तक पहुंचा दी है। उपरोक्त सफलता पाने के लिए पूर्व जन्म का संस्कार वर्तमान समय के पुरुषार्थ एवं लगन ही हमें मंजिल पर पहुंचा सकती है। वर्तमान समय में हर तरफ शास्रों की गूंज हो रही है। श्रेष्ठी वर्ग अपने व्यापार एवं व्यवसाय में असफल होने लगता है, उन्हें अपने आफिस, फैक्टरी, निवास में त्रुटियां महसूस होने लगती है। क्या असफलता का उत्तरदायित्व वास्तु पर ही है। निम्नलिखित बातों को अपने जीवन में उतारें। सफलता क्यों न हमारे कदम चूमेगी। विश्व धर्म में भावनाओं का महत्त्व माना गया है। भावना भव नाशिनी भावना भव वंदिनी। मानव के मन में भावना की उत्पत्ति अच्छी (पोजेटिव) और बुरी (निगेटिव) कैसे होती है। भावनाएं ऊर्जाओं पर निर्भर करती है। सकारात्मक ऊर्जाओं को बुलाने के लिए वास्तु शास्र का सहयोग हम लेते हैं। मन में उत्साह लाने में अन्य कई शास्रोें का भी सहयोग लेते हैं।  सोच बदलो संसार बदल जाएगा। भावना बदलो भाव बदल जाएंगे। वास्तु शास्र आपको मार्ग दर्शन देता है। अच्छे सोच का वातावरण आपके सम्मुख लाता है।  वातावरण को ग्रहण करना और मार्ग पर चलना आपको पड़ेगा। सबको साथ लेते हुए भी पुरुषार्थ में कमजोर हैं, तो कुछ भी बदलने वाला नहीं। शास्र अनुकूल बनाए गए आवास, व्यापारिक प्रतिष्ठान पर सकारात्मक ऊर्जा देने के स्रोत हैं। सकारात्मक ऊर्जाओं के आगमन के मार्ग ः-
सकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न करने में सहायक
1. ईशान कोण में अंडरग्राउंड टैंक, डीप बोरिंग, कुआं, देवस्थान, भूखंड का नीचा होना, स्थान खाली होना इत्यादि।
2. अग्नि कोण में किचन, इलेक्ट्रिक रूम व जेनरेटर इत्यादि।
3. नेऋत्य कोण में मुख्यकर्ता का शयनकक्ष, भूखंड का ऊंचा होना, शस्रगृह, तिजोरीकक्ष (मतांतर उत्तर में) इत्यादि।
4. वायव्य कोण में सेप्टीक टैंक, सीढि़यां, गेस्टरूम, लड़कियों का कमरा, शौचालय, किचन (मतांतर द्वितीय अग्निकोण) इत्यादि।
सम्पत केएस सेठी, विवेक विहार, हावड़ा

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