Sunday, February 28, 2021

गायत्री मंत्र के शुद्ध उच्चारण में हैं कई असाध्य रोगों का समाधान!

आधुनिक समाज में तनावपूर्ण जीवन के चलते मानव उच्च रक्तचाप, हृदयरोग और कैंसर आदि जानलेवा बीमारियों की चपेट में आ रहा है। जीवनशैली में सुधार से बहुत से रोग यूं ही काफूर हो जाते हैं। साथ-साथ एक और आसान उपाय है, जिसमें कोई पैसा नहीं लगता और जिसके कोई साइड इफेक्ट नहीं होते। बस नियमपूर्वक नित्य करने की जरूरत भर है। यह आसान उपाय है गायत्री मंत्र, जो सदियों से आजमाया हुआ है। और आजकल इसे विज्ञान की कसौटी पर भी कसा जा चुका है।


जबलपुर चिकित्सा महाविद्यालय में कार्डियोलाजी विभाग के रीडर हैं डा.रविशंकर शर्मा, इन्होंने अपने 18 वर्ष के चिकीत्सकीय जीवन में देखा कि जो युवा हृदयरोगी उनके पास इलाज के लिए आए उनके साथ आने वाले सहयोगी 60-70 की उम्र के बावजूद काफी स्वस्थ थे। बातचीत से पता चला कि वे निरामिष भोजन के अलावा गायत्री मंत्र का नियमित पाठ करते हैं। इस सूत्र को लेकर डा.शर्मा ने 20 परिवारों का अध्ययन किया। हर परिवार से दो व्यक्ति लिए एक वह जो नियमित गायत्री मंत्र का पाठ करता था और दूसरा वह जो पाठ नहीं करता था। डा.शर्मा ने पाया कि नियमित पाठ करने वाले को उच्च रक्तचाप और हृदयरोग अध्ययन के प्रारंभ में भी नहीं के बराबर थे। तीन वर्ष के अंतराल के बाद भी ये रोग उत्पन्न नहीं हुए। मंत्र न पढ़ने वालों में ये रोग ज्यादा संख्या में हुए। मृत्युदर भी मंत्र न पढ़ने वालों में ज्यादा मिली।


अध्ययन के नतीजों से उत्साहित होकर डा.शर्मा ने उच्च रक्तचाप के 50 रोगियों में से आधे मरीजों को हर दो घंटे में पांच मिनट यह मंत्र पाठ करने की विधि सिखाई। बचे हुए आधे मरीजों को एक दवा रहित गोली(प्लेसिबो) खाने को दी गई। एक हफ्ते बाद इन समूहों को परखा गया तो पता चला कि जो व्यक्ति मंत्र पढ़ रहे थे वे उच्च रक्तचाप के कम होने से लाभांवित हुए और प्लेसिबो टेबलेट खाने वालों को लाभ नहीं हुआ। हृदय गति की अनियमितता और तेज हृदयगति के रोगियों को भी इस मंत्र से लाभ हुआ। अगर ओम शब्द को लंबे समय तक ओ और म को खींचकर पढ़ा जाए तो हृदय गति तुरंत कम हो जाती है। इसीजी से मानिटर करने पर भी इसकी पुष्टि हुई। कोई भी ऐसी सुरक्षित दवा नहीं है जो हृदय गति को इतनी जल्दी तथा सुरक्षित तरीके से कम कर दे।


1.   यह मंत्र किसी भी अवस्था में अर्थात बैठ कर लेट कर या खड़े होकर पढ़ा जाए तो समान लाभ मिलता है।


2.    मंत्र ओम शब्द से शुरू होता है- ओम शब्द को जितना लंबा खींचा जा सके, बिना सांस लिए उतना खींचिये। ओ और म शब्द को अलग-अलग लंबा खींचिए।


3.    इसके बाद शेष मंत्र को सही उच्चारण के साथ जितना तेज गति से पढ़ या बोल सकें बोलें। ओम की प्रक्रिया हर बार दोहराएं। पांच मिनट तक लगातार ओम और मंत्र दोहराते रहें।


4.    यह प्रक्रिया एक माह तक हर दो घंटे में करें। इस प्रकार सामान्य व्यक्ति के जाग्रत 16 घंटे में 8 बार करें। 24 घंटों में कुल 40 मिनट का समय देना हैं।


5.    एक माह बाद इस प्रक्रिया का लाभदायक असर अवश्य दिखाई देगा। अब इस प्रक्रिया को 24 घंटे में चार बार करते हुए जारी रखें।


6.    सुबह उठने के समय और रात सोने के समय इस मंत्र का पांच-पांच मिनट उच्चारण आवश्यक है। इसके बाद सिर्फ दो बार कोई निश्चित समय तय कर इस मंत्र का नियमित पाठ करते रहें।


7.    इस विधि के साथ अपने डाक्टर द्वारा सुझाई दवाएं जारी रख सकते हैं।


8.     इस विधि से कोई हानि नहीं होती और न कोई साइड इफेक्टस होते हैं।

गायत्री मंत्र

 हिंदू धर्म में मां गायत्री को वेदमाता कहा जाता है अर्थात सभी वेदों की उत्पत्ति इन्हीं से हुई है। गायत्री को भारतीय संस्कृति की जननी भी कहा जाता है। धर्म शास्त्रों के अनुसार ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी को मां गायत्री का अवतरण माना जाता है। इस दिन को हम गायत्री जयंती के रूप में मनाते है। मां गायत्री को हमारे वेद शास्त्रों में वेदमाता कहा गया है।


धर्म ग्रंथों में यह भी लिखा है कि गायत्री उपासना करने वाले की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं तथा उसे कभी किसी वस्तु की कमी नहीं होती। गायत्री से आयु, प्राण, प्रजा, पशु, कीर्ति, धन एवं ब्रह्मवर्चस के सात प्रतिफल अथर्ववेद में बताए गए हैं, जो विधिपूर्वक उपासना करने वाले हर साधक को निश्चित ही प्राप्त होते हैं। विधिपूर्वक की गयी उपासना साधक के चारों ओर एक रक्षा कवच का निर्माण करती है व विपत्तियों के समय उसकी रक्षा करती है।


मां गायत्री को पंचमुखी माना गया है


हिंदू धर्म में मां गायत्री को पंचमुखी माना गया है जिसका अर्थ है यह संपूर्ण ब्रह्माण्ड जल, वायु, पृथ्वी, तेज और आकाश के पांच तत्वों से बना है। संसार में जितने भी प्राणी हैं, उनका शरीर भी इन्हीं पांच तत्वों से बना है। इस पृथ्वी पर प्रत्येक जीव के भीतर गायत्री प्राण-शक्ति के रूप में विद्यमान है। यही कारण है गायत्री को सभी शक्तियों का आधार माना गया है इसीलिए भारतीय संस्कृति में आस्था रखने वाले हर प्राणी को प्रतिदिन गायत्री उपासना अवश्य करनी चाहिए।


विद्या और तप


गायत्री साधक के रूप में सामान्य जन को अमृत, पारस, कल्पवृक्ष रूपी लाभ सुनिश्चित रूप से आज भी मिल सकते है, पर उसके लिए पहले ब्राह्मण बनना होगा। गुरुवर के शब्दों में ' ब्राह्मण की पूँजी है- विद्या और तप। अपरिग्रही ही वास्तव में सच्चा ब्राह्मण बनकर गायत्री की समस्त सिद्धियों का स्वामी बन सकता है, जिसे ब्रह्मवर्चस के रूप में प्रतिपादित किया गया है।'


गायत्री उपासना से लाभ


युगऋषि ने लिखा है कि परब्रह्म निराकार, अव्यक्त है। अपनी जिस अलौकिक शक्ति से वह स्वयं को विराट रूप में व्यक्त करता है, वह गायत्री है। इसी शक्ति के सहारे जीव मायाग्रस्त होकर विचरण करता है और इसी के सहारे माया से मुक्त होकर पुनः परमात्मा तक पहुँचता है।


सरल और फलदायी मंत्र


गायत्री मंत्र को जगत की आत्मा माने गए साक्षात देवता सूर्य की उपासना के लिए सबसे सरल और फलदायी मंत्र माना गया है. यह मंत्र निरोगी जीवन के साथ-साथ यश, प्रसिद्धि, धन व ऐश्वर्य देने वाली होती है। लेकिन इस मंत्र के साथ कई युक्तियां भी जुड़ी है. अगर आपको गायत्री मंत्र का अधिक लाभ चाहिए तो इसके लिए गायत्री मंत्र की साधना विधि विधान और मन, वचन, कर्म की पवित्रता के साथ जरूरी माना गया है।


सुख, सफलता व शांति की चाहत


वेदमाता मां गायत्री की उपासना 24 देवशक्तियों की भक्ति का फल व कृपा देने वाली भी मानी गई है। इससे सांसारिक जीवन में सुख, सफलता व शांति की चाहत पूरी होती है। खासतौर पर हर सुबह सूर्योदय या ब्रह्ममुहूर्त में गायत्री मंत्र का जप ऐसी ही कामनाओं को पूरा करने में बहुत शुभ व असरदार माना गया है।


मंत्र: ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।


अर्थात् 'सृष्टिकर्ता प्रकाशमान परमात्मा के प्रसिद्ध वरण करने योग्य तेज़ का (हम) ध्यान करते हैं, वे परमात्मा हमारी बुद्धि को (सत् की ओर) प्रेरित करें।


गायत्री मंत्र जप से जुड़ी खास बातें

गायत्री मंत्र जप किसी गुरु के मार्गदर्शन में करना चाहिए।

गायत्री मंत्र जप के लिए सुबह का समय श्रेष्ठ होता है। किंतु यह शाम को भी किए जा सकते हैं।

गायत्री मंत्र के लिए स्नान के साथ मन और आचरण पवित्र रखें। किंतु सेहत ठीक न होने या अन्य किसी वजह से स्नान करना संभव न हो तो किसी गीले वस्त्रों से तन पोंछ लें।

साफ और सूती वस्त्र पहनें।

कुश या चटाई का आसन बिछाएं। पशु की खाल का आसन निषेध है।

तुलसी या चन्दन की माला का उपयोग करें।

ब्रह्ममूहुर्त में यानी सुबह होने के लगभग 2 घंटे पहले पूर्व दिशा की ओर मुख करके गायत्री मंत्र जप करें। शाम के समय सूर्यास्त के घंटे भर के अंदर जप पूरे करें। शाम को पश्चिम दिशा में मुख रखें।


इस मंत्र का मानसिक जप किसी भी समय किया जा सकता है।

शौच या किसी आकस्मिक काम के कारण जप में बाधा आने पर हाथ-पैर धोकर फिर से जप करें। बाकी मंत्र जप की संख्या को थोड़ी-थोड़ी पूरी करें। साथ ही अधिक माला कर जप बाधा दोष का शमन करें।

गायत्री मंत्र जप करने वाले का खान-पान शुद्ध और पवित्र होना चाहिए। किंतु जिन लोगों का सात्विक खान-पान नहीं है, वह भी गायत्री मंत्र जप कर सकते हैं। क्योंकि ऐसा माना जाता है कि इस मंत्र के असर से ऐसा व्यक्ति भी शुद्ध और सद्गुणी बन जाता है।


कैसे करें गायत्री उपासना...?


गायत्री की उपासना तीनों कालों में की जाती है, प्रात: मध्याह्न और सायं। तीनों कालों के लिये इनका पृथक्-पृथक् ध्यान है। प्रात:काल ये सूर्यमण्डल के मध्य में विराजमान रहती है। उस समय इनके शरीर का रंग लाल रहता है। ये अपने दो हाथों में क्रमश: अक्षसूत्र और कमण्डलु धारण करती हैं। इनका वाहन हंस है तथा इनकी कुमारी अवस्था है। इनका यही स्वरूप ब्रह्मशक्ति गायत्री के नाम से प्रसिद्ध है। इसका वर्णन ऋग्वेद में प्राप्त होता है।


मध्याह्न काल में इनका युवा स्वरूप है। इनकी चार भुजाएँ और तीन नेत्र हैं। इनके चारों हाथों में क्रमश: शंख, चक्र, गदा और पद्म शोभा पाते हैं। इनका वाहन गरूड है। गायत्री का यह स्वरूप वैष्णवी शक्ति का परिचायक है। इस स्वरूप को सावित्री भी कहते हैं। इसका वर्णन यजुर्वेद में मिलता है। 


सायं काल में गायत्री की अवस्था वृद्धा मानी गयी है। इनका वाहन वृषभ है तथा शरीर का वर्ण शुक्ल है। ये अपने चारों हाथों में क्रमश: त्रिशूल, डमरू, पाश और पात्र धारण करती हैं। यह रुद्र शक्ति की परिचायिका हैं इसका वर्णन सामवेद में प्राप्त होता है।


गायत्री मंत्र में 24 अक्षर

हम नित्य गायत्री मंत्र का जाप करते हैं। लेकिन उसका पूरा अर्थ नहीं जानते। गायत्री मंत्र की महिमा अपार हैं। गायत्री, संहिता के अनुसार, गायत्री मंत्र में कुल 24 अक्षर हैं। ये चौबीस अक्षर इस प्रकार हैं- 1। तत् 2.स 3। वि 4। तु 5। र्व 6। रे 7। णि 8। यं 9। भ 10। गौं 11। दे 12। व 13। स्य 14। धी 15। म 16। हि 17। धि 18। यो 19। यो 20। न: 21। प्र 22। चो 23। द 24। यात् वृहदारण्यक के अनुसार हम उक्त शब्दावली का भाव इस प्रकार समझते हैं।


तत्सवितुर्वरेण्यं: अर्थात् मधुर वायु चलें, नदी और समुद्र रसमय होकर रहें। औषधियां हमारे लिए मंगलमय हों। भूलोक हमें सुख प्रदान करें।


भर्गो देवस्य धीमहि:अर्थात् रात्रि और दिन हमारे लिए सुखकारण हों। पृथ्वी की रज हमारे लिए मंगलमय हो।


धियो यो न: प्रचोदयात्: अर्थात् वनस्पतियां हमारे लिए रसमयी हों। सूर्य हमारे लिए सुखप्रद हो, उसकी रश्मियां हमारे लिए कल्याणकारी हों। सब हमारे लिए सुखप्रद हों। मैं सबके लिए मधुर बन जाऊं।


गायत्री मंत्र के जप से यह लाभ प्राप्त होते हैं-

उत्साह एवं सकारात्मकता बढ़ती है,

त्वचा में चमक आती है, 

तामसिकता से घृणा होती है, 

परमार्थ में रूचि जागती है, 

आने वाली घटनाओं का पूर्वाभास होने लगता है, 

आर्शीवाद देने की शक्ति बढ़ती है, 

नेत्रों में तेज आता है, 

स्वप्न सिद्धि प्राप्त होती है, 

क्रोध शांत होता है, 

ज्ञान की वृद्धि होती है।


विद्यार्थीयों के लिए----


गायत्री मंत्र का जप सभी के लिए उपयोगी है किंतु विद्यार्थियों के लिए तो यह मंत्र बहुत लाभदायक है। रोजाना इस मंत्र का एक सौ आठ बार जप करने से विद्यार्थी को सभी प्रकार की विद्या प्राप्त करने में आसानी होती है। विद्यार्थियों को पढऩे में मन नहीं लगना, याद किया हुआ भूल जाना, शीघ्रता से याद न होना आदि समस्याओं से निजात मिल जाती है।


दरिद्रता के नाश के लिए


यदि किसी व्यक्ति के व्यापार, नौकरी में हानि हो रही है या कार्य में सफलता नहीं मिलती, आमदनी कम है तथा व्यय अधिक है तो उन्हें गायत्री मंत्र का जप काफी फायदा पहुंचाता है। शुक्रवार को पीले वस्त्र पहनकर हाथी पर विराजमान गायत्री माता का ध्यान कर गायत्री मंत्र के आगे और पीछे श्रीं सम्पुट लगाकर जप करने से दरिद्र का नाश होता है। इसके साथ ही रविवार को व्रत किया जाए तो ज्यादा लाभ होता है।


संतान संबंधी परेशानियां दूर करने के लिए


किसी दंपत्ति को संतान प्राप्त करने में कठिनाई आ रही हो या संतान से दुखी हो अथवा संतान रोगग्रस्त हो तो प्रात: पति-पत्नी एक साथ सफेद वस्त्र धारण कर यौं बीज मंत्र का सम्पुट लगाकर गायत्री मंत्र का जप करें। संतान संबंधी किसी भी समस्या से शीघ्र मुक्ति मिलती है।


शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने के लिए


यदि कोई व्यक्ति शत्रुओं के कारण परेशानियां झेल रहा हो तो उसे प्रतिदिन या विशेषकर मंगलवार, अमावस्या अथवा रविवार को लाल वस्त्र पहनकर माता दुर्गा का ध्यान करते हुए गायत्री मंत्र के आगे एवं पीछे क्लीं बीज मंत्र का तीन बार सम्पुट लगाकार एक सौ आठ बार जाप करने से शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है। मित्रों में सद्भाव, परिवार में एकता होती है तथा न्यायालयों आदि कार्यों में भी विजय प्राप्त होती है।


विवाह कार्य में देरी हो रही हो तो


यदि किसी भी जातक के विवाह में अनावश्यक देरी हो रही हो तो सोमवार को सुबह के समय पीले वस्त्र धारण कर माता पार्वती का ध्यान करते हुए ह्रीं बीज मंत्र का सम्पुट लगाकर एक सौ आठ बार जाप करने से विवाह कार्य में आने वाली समस्त बाधाएं दूर होती हैं। यह साधना स्त्री पुरुष दोनों कर सकते हैं।


यदि किसी रोग के कारण परेशानियां हो तो


यदि किसी रोग से परेशान है और रोग से मुक्ति जल्दी चाहते हैं तो किसी भी शुभ मुहूर्त में एक कांसे के पात्र में स्वच्छ जल भरकर रख लें एवं उसके सामने लाल आसन पर बैठकर गायत्री मंत्र के साथ ऐं ह्रीं क्लीं का संपुट लगाकर गायत्री मंत्र का जप करें। जप के पश्चात जल से भरे पात्र का सेवन करने से गंभीर से गंभीर रोग का नाश होता है। यही जल किसी अन्य रोगी को पीने देने से उसके भी रोग का नाश होता हैं।

Friday, February 5, 2021

दुःख के सुअवसर



दुःख की कल्पना मात्र से कंपकपी होने लगती है। इसके अहसास से मन विकल, विह्वल, बेचैन हो जाता है। ऐसे में दुःख से होने वाले दर्द की कौन कहे? यही वजह है कि दुःख से सभी भागना चाहते हैं। और अपने जीवन से दुःख को भगाना चाहते हैं। दुःख से भागने और दुःख को भगाने की बात आम है। जो सामान्य जनों और सर्वसाधारण के लिए है। लेकिन इसकी एक खास बात भी है। जो सत्यान्वेषियों के लिए, साधकों के लिए और भगवद्भक्तों के लिए है। यह अनुभूति विरले लोग पाते हैं। ऐसे लोग दुःख से भागते नहीं, बल्कि दुःख में जागते हैं।



दुःख उनके लिए रोने, कलपने का साधन नहीं बल्कि परमात्मा द्वारा प्रेरित और उन्हीं के द्वारा प्रदत्त जागरण का अवसर बनता है। दुःख के क्षणों में उनकी अन्तर्चेतना में संकल्प, साहस, संवेदना, पुरुषार्थ की प्रखरता और प्रज्ञा की पवित्रता जागती है। उनकी आत्मचेतना में अनुभूतियों के नए गवाक्ष खुलते हैं, उपलब्धियों के नए अवसर आते हैं। इसीलिए तपस्वियों ने दुःख को देवों के हाथ का हथौड़ा कहा है। जो चेतना में उन्नयन के नए सोपान सृष्ट करता है। विकास और परिष्कार के नए द्वार खोलता है।



तभी तो सन्तों ने, साधुओं, दरवेशों और फकीरों ने भगवान् से हमेशा दुःख के वरदान मांगे हैं। सुख की चाहत तो बस आलसी, विलासी करते हैं। जो सुखों के बीच पले, बढ़े हैं, उनकी चेतना सदा-सदा से सुषुप्ति की ओर अग्रसर होती है। उनके जीवन में भला परिष्कार व पवित्रता का दुर्लभ सौभाग्य कहाँ? यह तो बस केवल उन्हीं को मिलता है, जो पीड़ाओं में पलते हैं और दुःख के दरिया में प्रसन्नतापूर्वक बहते हैं। जो बदनामी के क्षणों में प्रभु भक्ति में जीना और गुमनामी के अँधेरों में प्रभु चिन्तन करते हुए मरना जानते हैं। उन्हें ही परमात्म मिलन का अनन्त सौभाग्य मिलता है।


✍🏻 डॉ. प्रणव पण्ड्या

📖 जीवन पथ के प्रदीप से पृष्ठ २०८

Friday, January 29, 2021

आध्यात्मिक विकास

 किसी मनुष्य को जो होना चाहिए और वह जो है, उसके बीच में सदा फर्क रहा है। मनुष्य 'जैसा है' को 'जैसा होना चाहिए' के नजदीक लाने का जो प्रयास करता है वही उसका आध्यात्मिक विकास है।

अतः पहला सवाल यह है कि मनुष्य को कैसा होना चाहिए? इसके साथ जुड़ा सवाल यह है कि धरती पर मनुष्य के जीवन का मूल उद्देश्य क्या है? इस उद्देश्य के अनुरूप ही मनुष्य का जीवन होना चाहिए। 


पृथ्वी पर लाखों किस्म के जीव हैं। जीवन लाखों रूप में धरती पर प्रकट हुआ है। पर इन लाखों जीवन रूपों में मनुष्य ही एकमात्र ऐसा जीव है जो नियोजित ढंग से अन्य जीवों की रक्षा के उपाय करने में सक्षम है। इस क्षमता से ही मनुष्य का धरती पर मूल लक्ष्य निर्धारित होता है। 


मनुष्य का मूल उद्देश्य सभी मनुष्यों सहित अन्य सभी जीवों की रक्षा करना है व दुख-दर्द कम करना है। इस तरह मनुष्य की मूल भूमिका रक्षक की है। आज की ही नहीं, आने वाली पीढ़ियों के जीवन की रक्षा के बारे में उसे सोचना है और उसमें यह सामर्थ्य भी है, यह योग्यता भी है। अतः मनुष्य को मूलतः एक रक्षक का जीवन जीना चाहिए। 

क्या ही अच्छा होता यदि इस भूमिका के अनुकूल स्वभाव प्राकृतिक रूप से सभी मनुष्यों को मिल जाता है। यदि ऐसा होता तो सभी मनुष्य रक्षक की भूमिका निभाते और एक दूसरे के दुख-दर्द के सच्चे हितैषी होते। 


इस स्थिति में पृथ्वी पर सभी जीवों को पनपने का भरपूर अवसर मिलता। पर्यावरण की पूरी रक्षा होती व भावी पीढ़ियों के मनुष्यों और अन्य जीवों की जरूरतों का भी पूरा ध्यान रखा जाता। पर अफसोस कि मनुष्य को उसके अनुकूल स्वभाव प्राकृतिक रूप से नहीं मिलता है। यह उसे धीरे-धीरे विकसित करना पड़ता है। अतः अपने जीवन को मनुष्य के मूल उद्देश्य के नजदीक ले जाने का प्रयास करते रहना ही आध्यात्मिक विकास है। 


चाहे यह सफर धीरे-धीरे ही तय हो, चाहे भटकाव के मौके भी आए, चाहे सफलता कम मिले, पर जब तक कोई व्यक्ति सच्ची भावना से मनुष्य के वास्तविक लक्ष्य की ओर बढ़ने का प्रयास कर रहा है तो वह आध्यात्मिक विकास पर अग्रसर है। 


मनुष्य को अपनी जरूरतों के अनुकूल विश्व से ग्रहण करना चाहिए व इससे आगे कोई लालसा नहीं करना चाहिए। यही सादगी का जीवन है। इस सादगी को अपनाए बिना मनुष्य रक्षक की भूमिका नहीं निभा सकता है। 


जब तक उसकी लालसा अपने लिए निरंतर अधिक प्राप्त करने की बनी रहती है, तब तक वह अन्य मनुष्यों व अन्य जीवों का हितैषी नहीं बन सकता क्योंकि वह उसके हिस्सा भी छीनना चाहता है। पर जैसे ही वह सादगी अपनाकर अपनी आवश्यकताओं को समेट लेता है, वैसे ही उसके लिए रक्षक की मूल भूमिका निभाना संभव हो जाता है। इस प्रकार यह प्रयास ही आध्यात्मिक विकास है।


Tuesday, January 19, 2021

खुश रहना है तो जितना है उतने में ही संतोष करो

एक बार की बात है। एक गाँव में एक महान संत रहते थे। वे अपना स्वयं का आश्रम बनाना चाहते थे जिसके लिए वे कई लोगो से मुलाकात करते थे। और उन्हें एक जगह से दूसरी जगह यात्रा के लिए जाना पड़ता था। इसी यात्रा के दौरान एक दिन उनकी मुलाकात एक साधारण सी कन्या विदुषी से हुई। विदुषी ने उनका बड़े हर्ष से स्वागत किया और संत से कुछ समय कुटिया में रुक कर विश्राम करने की याचना की। संत उसके व्यवहार से प्रसन्न हुए और उन्होंने उसका आग्रह स्वीकार किया।


विदुषी ने संत को अपने हाथो से स्वादिष्ट भोज कराया। और उनके विश्राम के लिए खटिया पर एक दरी बिछा दी। और खुद धरती पर टाट बिछा कर सो गई। विदुषी को सोते ही नींद आ गई। उसके चेहरे के भाव से पता चल रहा था कि विदुषी चैन की सुखद नींद ले रही हैं। उधर संत को खटिया पर नींद नहीं आ रही थी। उन्हें मोटे नरम गद्दे की आदत थी जो उन्हें दान में मिला था। वो रात भर चैन की नींद नहीं सो सके और विदुषी के बारे में ही सोचते रहे सोच रहे थे कि वो कैसे इस कठोर जमीन पर इतने चैन से सो सकती हैं।


दूसरे दिन सवेरा होते ही संत ने विदुषी से पूछा कि – तुम कैसे इस कठोर जमीन पर इतने चैन से सो रही थी। तब विदुषी ने बड़ी ही सरलता से उत्तर दिया – हे गुरु देव! मेरे लिए मेरी ये छोटी सी कुटिया एक महल के समान ही भव्य हैं| इसमें मेरे श्रम की महक हैं। अगर मुझे एक समय भी भोजन मिलता हैं तो मैं खुद को भाग्यशाली मानती हूँ। जब दिन भर के कार्यों के बाद मैं इस धरा पर सोती हूँ तो मुझे माँ की गोद का आत्मीय अहसास होता हैं। मैं दिन भर के अपने सत्कर्मो का विचार करते हुए चैन की नींद सो जाती हूँ। मुझे अहसास भी नहीं होता कि मैं इस कठोर धरा पर हूँ।


यह सब सुनकर संत जाने लगे। तब विदुषी ने पूछा – हे गुरुवर! क्या मैं भी आपके साथ आश्रम के लिए धन एकत्र करने चल सकती हूँ ? तब संत ने विनम्रता से उत्तर दिया – बालिका! तुमने जो मुझे आज ज्ञान दिया हैं उससे मुझे पता चला कि मन का सच्चा का सुख कहाँ हैं। अब मुझे किसी आश्रम की इच्छा नहीं रह गई।


यह कहकर संत वापस अपने गाँव लौट गये और एकत्र किया धन उन्होंने गरीबो में बाँट दिया और स्वयं एक कुटिया बनाकर रहने लगे।


जिसके मन में संतोष नहीं है सब्र नहीं हैं वह लाखों करोड़ों की दौलत होते हुए भी खुश नहीं रह सकता। बड़े बड़े महलों, बंगलों में मखमल के गद्दों पर भी उसे चैन की नींद नहीं आ सकती। उसे हमेशा और ज्यादा पाने का मोह लगा रहता है। इसके विपरीत जो अपने पास जितना है उसी में संतुष्ट है, जिसे और ज्यादा पाने का मोह नहीं है वह कम संसाधनों में भी ख़ुशी से रह सकता है।

Wednesday, November 18, 2020

दुनिया रंग बिरंगी

 *एक फोटोग्राफ़र ने दुकान के बाहर बोर्ड लगा रखा था।*

*20 रु. में - आप जैसे हैं, वैसा ही फोटो खिंचवाएँ।*

*30 रु.में - आप जैसा सोचते हैं, वैसा फोटो खिंचवाएँ।*

*50 रु. में - आप जैसा लोगों को दिखाना चाहें,  वैसा फोटो खिंचवाएँ।*


*बाद में उस फोटोग्राफर ने  अपने संस्मरण में लिखा,*

 

*मैंने जीवनभर फोटो खींचे, लेकिन किसी ने भी 20 रु.वाला फोटो नहीं खिंचवाया, सभी ने 50 रु. वाले ही खिंचवाए....*


*दोस्तो, बस कुछ ऐसी ही हक़ीक़त है- ज़िंदगी की...*


*हम  हमेशा दिखावे के लिए ही जीते रहे है, हमने कभी अपनी वो 20 रुपये वाली जिंदगी जी ही नही!!!*


दोस्तों, ये दुनिया भी कितनी निराली है!


*जिसकी आँखों में नींद है ….

उसके पास अच्छा बिस्तर नहीं …

जिसके पास अच्छा बिस्तर है …….

उसकी आँखों में नींद नहीं …*


*जिसके मन में दया है ….

उसके पास किसी को देने के लिए धन नहीं* ….

*और जिसके पास धन है उसके मन में दया नहीं …*


*जिन्हे कद्र है रिश्तों की …

उन से कोई रिश्ता रखना नही चाहता....*

*जिनसे रिश्ता रखना चाहते हैं ….

उन्हें  रिश्तों की कद्र नहीं* 


*जिसको भूख है उसके पास खाने के लिए भोजन नहीं….

* और जिसके पास खाने के लिए भोजन है ………

उसको भूख नहीं…*


*कोई अपनों के लिए….

रोटी छोड़ देता है…तो कोई रोटी के लिए…..

अपनों को….*


*है ना ये दुनिया निराली !!*


         

Monday, November 9, 2020

सबसे बड़ी समस्या


बहुत समय पहले की बात है एक महाज्ञानी पंडित हिमालय की पहाड़ियों में कहीं रहते थे . लोगों के बीच रह कर वह थक चुके थे और अब ईश्वर भक्ति करते हुए एक सादा जीवन व्यतीत करना चाहते थे . लेकिन उनकी प्रसिद्धि इतनी थी की


लोग दुर्गम  पहाड़ियों , सकरे रास्तों , नदी-झरनो को पार कर के भी उससे मिलना चाहते थे , उनका मानना था कि यह विद्वान उनकी हर समस्या का समाधान कर सकता है .


इस बार भी कुछ लोग ढूंढते हुए उसकी कुटिया तक आ पहुंचे . पंडित जी ने उन्हें इंतज़ार करने के लिए कहा .


तीन दिन बीत गए , अब और भी कई लोग वहां पहुँच गए , जब लोगों के लिए जगह कम पड़ने लगी तब पंडित जी बोले ,” आज मैं आप सभी के प्रश्नो का उत्तर दूंगा , पर आपको वचन देना होगा कि यहाँ से जाने के बाद आप किसी और से इस स्थान के  बारे में  नहीं बताएँगे , ताकि आज के बाद मैं एकांत में रह कर अपनी साधना कर सकूँ …..चलिए अपनी -अपनी समस्याएं बताइये “

यह सुनते ही किसी ने अपनी परेशानी बतानी शुरू की , लेकिन वह अभी कुछ शब्द ही बोल पाया था कि बीच में किसी और ने अपनी  बात कहनी शुरू कर दी . सभी जानते थे कि आज के बाद उन्हें कभी पंडित जी से बात करने का मौका नहीं मिलेगा ; इसलिए वे सब जल्दी से जल्दी अपनी बात रखना चाहते थे . कुछ ही देर में वहां का दृश्य मछली -बाज़ार जैसा हो गया और अंततः पंडित जी को चीख कर बोलना पड़ा ,” कृपया शांत हो जाइये ! अपनी -अपनी समस्या एक पर्चे पे लिखकर मुझे दीजिये . “


सभी ने अपनी -अपनी समस्याएं लिखकर आगे बढ़ा दी . पंडित जी ने सारे पर्चे लिए और उन्हें एक टोकरी में डाल कर मिला दिया और बोले , ” इस टोकरी को एक-दूसरे को पास कीजिये , हर व्यक्ति एक पर्ची उठाएगा और उसे पढ़ेगा . उसके बाद उसे निर्णय लेना होगा कि क्या वो अपनी समस्या को इस समस्या से बदलना चाहता है ?”


हर व्यक्ति एक पर्चा उठाता , उसे पढता और सहम सा जाता . एक -एक कर के सभी ने पर्चियां देख ली पर कोई भी अपनी समस्या के बदले किसी और की समस्या लेने को तैयार नहीं हुआ; सबका यही सोचना था कि उनकी अपनी समस्या चाहे कितनी ही बड़ी क्यों न हो बाकी लोगों की समस्या जितनी गंभीर नहीं है . दो घंटे बाद सभी अपनी-अपनी पर्ची हाथ में लिए लौटने लगे , वे खुश थे कि उनकी समस्या उतनी बड़ी भी नहीं है जितना कि वे सोचते थे .


मित्रों, ऐसा कौन होगा जिसके जीवन में एक भी समस्या न हो ? हम सभी के जीवन में समस्याएं हैं , कोई अपनी तबियत से परेशान है तो कोई दूसरों को मिल रही सुख संपत्ति से …हमें इस बात को स्वीकार करना चाहिए कि जीवन है तो छोटी -बड़ी समस्याएं आती ही रहेंगी , ऐसे में दुखी हो कर उसी के बारे में सोचने से अच्छा है कि हम अपना ध्यान उसके निवारण में लगाएं … और अगर उसका कोई समाधान ही न हो तो अन्य उत्पादित चीजों पर प्रकाश डालें… हमें लगता है कि सबसे बड़ी समस्या हमारी ही है पर विश्वास जानिए इस दुनिया में लोगों के पास इतनी बड़ी -बड़ी समस्याएं हैं कि हमारी तो उनके सामने कुछ भी नहीं … इसलिए ईश्वर ने जो भी दिया है उसके लिए ईश्वर के सदैव आभारी रहिये और एक खुशहाल जीवन जीने का प्रयास करिये .


   🌹🙏🏻🚩 *जय सियाराम* 🚩🙏🏻🌹