Monday, July 9, 2012

गुरु पूर्णिमा


हम इस जगत में अपनी माता द्वारा आते हैं और वह हमारी प्रथम जन्म दात्री बनती है। लेकिन हमारा दूसरा जन्म गुरु द्वारा होता है -गुरु जो हमें ज्ञान और कौशल प्रदान करते हैं। आचार्य ज्ञान देते हैं, गुरु जागृत करता है। जब आध्यात्मिक ज्ञान इतना संपूर्ण हो कर प्रकट हो कि तुम रात और दिन, आठों पहर सचेतन महसूस करने लगो, तो उसे सदगुरु कहते हैं। गुरु एक तत्व है, तुम्हारे भीतर पड़ा एक गुण। वह कोई बाहर खड़ा दूसरा व्यक्ति या महापुरुष नहीं है। वह इस शरीर और रूप तक सीमित नहीं है। वह प्रतिकार करने और द्रोह करने पर भी तुम्हारे जीवन में चला आता है।

जीवन में यह गुरु सिद्धांत बहुत महत्वपूर्ण है। गुरु तत्व प्रत्येक व्यक्ति में है। हमें हरेक के भीतर इस ज्ञान का आह्वान करना है, इसे जागृत करना है। हमारी चेतना में ज्ञान तभी जीवित होता है, जब गुरु तत्व जीवित होता है। जब हम में अपनी कोई इच्छाएं नहीं रह जातीं, तब हमारे जीवन में गुरु तत्व का उदय होता है। जागो और देखो, जीवन हर क्षण कैसे बदल रहा है।

उस क्षण में तुम्हें जो भी मिला है, उसके लिए कृतज्ञ महसूस करो। अपने मन का सब कूड़ा-करकट गुरु को दे दो और मुक्त हो जाओ। गुरु एक खिड़की की तरह है, जो तुम्हारे जीवन में अधिक आनंद, अधिक सतर्कता, अधिक जागरूकता लाता है।

गुरु वह नहीं हैं जो तुम्हारे ऊपर प्रभुत्व जताते हैं। वह नहीं हैं जो तुम पर हुक्म चलाते हैं। बल्कि गुरु तुम्हें अपने आप से जुड़ने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। वे तुम्हें वर्तमान क्षण में रहने की याद दिलाते हैं, तुम्हारा अपराध भाव, आवेश, दुख और मनोव्यथा हर लेते हैं। गुरु का सही अर्थ यही है। गुरु की खुशामद करने की प्रथा सदियों से चली आ रही है। कोई क्यंू किसी और की पूजा करता है? कालेजों में रॉक स्टारों, फिल्म स्टारों और खिलाडि़यों को भला क्यों इतने श्रद्धा भाव से देखा जाता है। यह खुशामद मानव स्वभाव का अंग है। तुम्हारी भीतरी गहराई में अच्छे गुणों को सराहना और उनका आदर बसा हुआ है।

पहलेदेशों में लोग अपने गुरु पर गर्व करते थे, बहुत सम्मान हुआ करता था। लेकिन आज के विद्यार्थियों में वो बात नहीं है। भारत में अक्टूबर महीने में एक त्योहार मनाया जाता है, जिस में लोग मोटर, कार और स्कूटर से ले कर सब वस्तुओं की पूजा करते हैं। सभी चीजें पूजी जाती हैं। क्योंकि हरेक परमाणु में ईश्वर का वास है।
जब भी तुम किसी व्यक्ति या किसी चीज की प्रशंसा करते हो, तो वह प्रशंसा ईश्वर को जाती है और तुम्हारी चेतना विकसित होती है। यदि तुम गुरु की प्रशंसा करते हो, तो वह प्रशंसा ईश्वर को पहुंचती है। इसीलिए हम गुरु पूर्णिमा का उत्सव मनाते हैं। गुरु पूर्णिमा वह दिन है, जब शिष्य के भीतर एक भक्त अपनी संपूर्ण कृतज्ञता में उदित होता है।

यह उस महान ज्ञान के लिए कृतज्ञ होने का दिन है, जो तुम्हें गुरु से प्राप्त हुआ है। यह पुनरावलोकन करने का समय है कि तुमने अपने जीवन में कितना ज्ञान अपनी गहराई तक पहुंचाया है और ज्ञान में तुम कितने विकसित हुए हो। इससे तुम्हारी उन्नति में और कितना अवकाश है, उसकी समझ आएगी और इससे तुम में नम्रता आएगी।
इसलिए इस ज्ञान ने तुम्हें जिस प्रकार से रूपांतरित किया है, उसके लिए कृतज्ञ बनो। जरा सोचो, इसके बिना तुम कैसे होते। कृतज्ञता और विनम्रता से तुम्हारे भीतर विशुद्ध प्रार्थना खिलती है! गुरु पूर्णिमा के दिन भूतकाल के सभी गुरुओं का स्मरण करो। जब तुम्हारे जीवन में संपूर्णता होती है, तभी तुम में कृतज्ञता की भावना उठती है।
फिर तुम गुरु से आरंभ करते हो और अंत में जीवन की सभी वस्तुओं का आदर सत्कार करने लगते हो। गुरु पूर्णिमा के दिन भक्त संपूर्ण कृतज्ञता में जागृत होता है। भक्त अपने आप बहने वाला एक सागर बन जाता है। गुरु पूर्णिमा भक्ति और कृतज्ञता में उदित होने का उत्सव मनाने का समय है।
श्री श्री रवि शंकर

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