Saturday, May 21, 2011

बुद्ध कल्पना


किसी भी समय दिन में एक बार तो करो ही। अच्छा होगा कि इस विधि को खाली पेट करो।  जब पेट खाली होता है तो तुम्हारे पास अधिक ऊर्जा होती है। भूखा नहीं रहना, बस पेट ज्यादा भरा हो। अगर तुम खाना खा चुके हो तो उसके दो-तीन घंटे बाद इस विधि को करो। इसको करने से पहले तुम चाय ले सकते हो। बौद्ध परंपरा में लंबे समय तक चाय का प्रयोग होता रहा है। चाय पीने को उन्होंने ध्यान की एक विधि बना लिया है। चाय सहयोगी होती है और तुम्हें अधिक जोश से भर देती है। तो अच्छा होगा कि तुम एक कप चाय का ले लो। पर और कुछ मत लो। जब तुम उस विधि को करो तब सुबह-सुबह या रात को पेट खाली हो।

पूरे आराम से बैठ जाओ। फर्श पर बैठ सकते हो तो अच्छा रहेगा। बस अपने नीचे एक तकिया रख लो।
पूरे शरीर को शांत हो जाने दो और अपने ध्यान को अपनी छाती के ठीक बीच पर ले जाओ। उस बिंदु पर ध्यान दो जहां तुम्हारे फेफड़े और पेट मिलता है। आंखें बंद किए ऐसे सोचो कि वहां एक छोटी सी बुद्ध की प्रतिमा है। केवल दो इंच की बुद्ध प्रतिमा। भाव की प्रतिमा प्रकाश से बनी हुई है और उससे किरणें निकल रही हैं। उसमें पूरी तरह समा जाओ। यदि तुम जमीन पर बुद्ध की तरह पद्मासन में बैठ सको तो ज्यादा अच्छा होगा।

फिर किरणें शरीर से बाहर निकलने लगती हैं। उन्हें फैलता हुआ महसूस करो जल्द ही किरणें छत को, दीवारों को छूने लगेंगी, फिर इस तरह दस मिनट में किरणें ब्रह्मांड में फैलने लगेंगी। फिर अचानक इस सबको विलीन हो जाने दो- इस प्रक्रिया की सबसे महत्त्वपूर्ण बात है कि किरणों को अचानक विलीन हो जाने दो। अचानक सब कुछ बच जाए और पीछे एक नेगेटिव प्रतिमा बच जाए। कुछ क्षण पहले तक बुद्ध की प्रतिमा थी- प्रकाश से भरी हुई। अचानक उसे विदा हो जाने दो। इस शून्यता को, इस स्थिति को पांच और दस मिनट सम्हाल कर रखो। पहले चरण में किरणें जब पूरे ब्रह्मांड में फैल रही थीं तब तुम ऐसी गहन शांति का अनुभव करोगे जैसा तुमने पहले कभी नहीं किया होगा। साथ ही तुम्हें विस्तार का अनुभव होगा। लगेगा पूरा ब्रह्मांड तुममें समा गया है।

दूसरे चरण में तुम्हें शांति का नहीं आनंद का अनुभव होगा। जब बुद्ध की प्रतिमा एक नेगेटिव बन गई थी, सब प्रकाश विदा हो गया और केवल अंधकार व मौन बचा रहा तब एक विराट आनंद का अनुभव हुआ। इस पूरी प्रक्रिया में पैंतालीस से साठ मिनट  ज्यादा समय नहीं लगना चाहिए और बहुत उपयोगी है यह विधि। यदि कभी-कभी तुम डाइनमिक भी कर सको तो दोनों विधियां एक साथ मिलकर बहुत शक्तिशाली हो जाएंगी। डाइनमिक रेचन के लिए अच्छा है और यह विधि मौन को अनुभव करने के लिए। और अगर दोनों विधियों को न कर सको तो इस विधि को करो।

इसे तुम रात सोने से पहले अपने विस्तर पर कर सकते हो, वह सबसे अच्छा समय है इस विधि के लिए। यह प्रयोग करो और फिर सो जाओ जिससे यह प्रक्रिया पूरी रात चलती रहे। कई बार तुम्हारे सपनों में वह प्रतिमा आएगी, कभी तुम्हें सपनों में किरणों का अनुभव होगा। तुम्हें सुबह लगेगा कि तुम्हारी नींद की गुणवत्ता ही कुछ और थी। वह केवल नींद नहीं थी कुछ बहुत ज्यादा सकारात्मक तुम्हारे अनुभव से गुजर गया। कोई उपस्थिति तुम्हें छू गई। तुम सुबह ज्यादा तरो-ताजा, ज्यादा जोश से भरे उठोगे।  तुम जीवन के प्रति एक सम्मान से भर उठोगे।

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