Saturday, December 31, 2011

राशि 2012: साढ़ेसाती का प्रभाव


वर्ष 2012 में शनि तुला यानी तराजू की राशि से अपनी यात्रा आरंभ करेगा। 9 फरवरी को यह वक्री यानी उल्टी चाल से चलने लगेगा। लगातार मार्च अप्रैल और मई तक वक्री चलते हुए 17 मई को यह कन्या राशि में उल्टा प्रवेश करेगा 25 जून को यह कन्या राशि में मार्गी होगा उसके उपरान्त 5 अगस्त को यह पुनः तुला राशि में प्रवेश कर जाएगा।

वर्ष 2012 के आरंभ में शनि चित्रा नक्षत्र के उत्तरार्ध और तुला राशि से अपना भ्रमण आरंभ करेगा। इसके अनुसार कन्या राशि को उतरती साढ़ेसाती रहेगी। तुला राशि को भोग में मध्य साढ़ेसाती रहेगी जबकि वृश्चिक राशि को सिर पर चढ़ती साढ़ेसाती रहेगी। साढ़ेसाती के दौरान कन्या, तुला औस वृश्चिक राशिवालों को शारीरिक मानसिक तथा आर्थिक परेशानियों के अलावा शत्रु आदि का भय भी रहेगा। गुप्त चिन्ताएं रहेंगी। हर महत्वपूर्ण कार्य में विलम्ब और बाधा आएगी। दिमाग पर हमेशा निराशा का बोझ रहेगा। मान सम्मान की हानि तथा समाज और सरकार में बदनामी या लज्जित हो सकते हैं। आरोप लांछन भी लग सकते हैं। भोग विलास और अवांछित कार्यो से पीछा नहीं छूट पाएगा। सट्टेबाजी या दुर्बुद्धि के कारण संचित धन का नुकसान होगा। इसके अलावा कर्म के अनुसार शनि की साढ़साती में इसके अच्छे और बुरे फल भोगने को तैयार रहना पड़ेगा। यह भी कहते है कि शनि अपनी गोवर साढ़ेसाती के दौरान हर पिछले अच्छे और बुरे कर्मो का हिसाब लेता है। सत्कर्मी को बख्श देता है और कुकर्मी को सजा देता है ! हर तीस साल में प्रत्येक जातक को शनि महाराज के आगे हाजिर होना पड्रता है।

ऐसा नही कि शनि कि साढ़ेसाती आलसी और निकम्मे लोगो को ही पेलती है। शुद्ध और पवित्र आचरण से जीवनयापन करने वाले चरित्रवान लोगों पर भी शनि का कुछ दुष्प्रभाव जरूर होता है लेकिन समयानुसार उन्हें अपने कष्ट से मुक्ति भी मिल जाएगी। जिन महानुभावों का जन्मजात शनि उनकी जन्मकुंडली में योगकारक और अच्छा है उनके लिए यह साढ़ेसाती बहुत ही लाभप्रद सफलतादायक और राजयोग कारक भी होगी। फिर भी शनि की गोचर स्थिति कम या ज्यादा सभी को ही थोडा-थोडा सुख और दुख का स्वाद देने वाली जरुर होती है।

सभी राशियों के लिए शनि का गोचर फल इस प्रकार रहेगा :

मेष( Aries ) : इस वर्ष आपको शनि का तांबे का पाया रहेगा। सप्तम भाव का शनि आमदनी में तो वृद्धि करेगा लेकिन खर्च भी बढ़ाएगा। मध्यम वर्गीय और निम्न वर्गीय लोगों को धन का अभाव राजकीय और सामाजिक जीवन में परेशानी महत्वपूर्ण कार्यो में अवरोध ओर प्रियजनों से विच्छेद या बिछोह का दुख रहेगा। व्यापारि और कारोबारी लोगों को धनहानि और बढ़ते खर्च के चलते पूंजी में क्षय तथा कानूनी विवाद और रोग व्याधि होंगे। अनावश्यक खर्च बढ़ने की आशंका रहेगी।

वृष (Taurus): इस साल शनिदेव आपकी राशि पर चांदी के पाये से विराजमान रहेंगे। छटा शनि उद्योग व्यापार और आजीविका में लाभदायी होगा। लेकिन पारिवारिक सम्बन्धों और मित्रों में तनाव पैदा करेगा। नौकरी पेशा लोगों के लिए समय कुछ कष्टसाध्य रहेगा। तकनीकी और अर्द्धतकनीकी कार्य क्षेत्र से जुड़े लोगों के लिए प्रगति के अवसर रहेंगे। जिन जातकों के मंगलकार्य रुके हुए हैं उन्हें इस वर्ष मई-जून के उपरान्त मनोवांछित शुभकार्य होने से हर्ष प्राप्त होगा। प्रौढ़ और वृद्ध जातकों को शरीर कष्ट तथा हड्डी और मांसपेशियों के दर्द की शिकायत रहेगी।

मिथुन (Gemini): इस वर्ष शनि का गोचर सोने के पाये से रहेगा। पंचम शनि चारों तरफ विरोध और अपकीर्ति फैलाता है। किसी से ज्यादा मिलना-जुलना, बातचीत और विपरीत योनि से अधिक प्रगाढ़ता नुकसान और विवाद का कारण बन सकती है। यद्यपि लाभमार्ग ठीकठाक रहेगा फिर भी खर्च भी बढ़चढ़कर होंगे। सन्तान पक्ष से चिन्ता बढ़ेगी। युवा और प्रौढ़ जातकों के लिए समय काफी भागदौड़ वाला भी होगा। किसी नए कारोबार में प्रवेश करने की इच्छा होगी परन्तु पूंजी के संयोजन में धोखाधड़ी की भी आशंका रहेगी।

कर्क (Cancer): इस वर्ष शनि लोहे के पाये से आपकी राशि को पीड़ित करेगा। चैथा शनि आजीविका और कारोबार मे उतार चढ़ाव पैदा करता है। महत्वाकांक्षा बढ़ जाने से अलाभकारी उपक्रमों में फंस जाने की आशंका रहेगी। जमीन-जायदाद की खरीद-फरोख्त कर सकते हैं लेकिन काफी सोच समझकर और कानूनी मुद्दों को अच्छी तरह जांच परखकर। नौकरी और आजीविका के लिए स्थान परिवर्तन हो सकता है। घर के बुजुर्ग सदस्यों का स्वास्थ्य चिन्ता का विषय बन सकता है। चैथा शनि वाहन आदि के लिए शुभ है। अतः धार्मिक यात्राओं के साथ साल का कुछ समय आपके लिए सांत्वनाप्रद होगा।

सिंह (Leo): इस वर्ष आपकी राशि को शनि सोने के पाये से अपना असर डालेगा। सबकुछ ठीकठाक रहते हुए भी अप्रत्याषित हानि और भय की आशंका रहेगी। गोचर में तीसरा शनि लाभकारक तो काफी होता है लेकिन भाग्यस्थान में कुदृष्टि होने से कभी कभी महतवपूर्ण कार्यो में बाधा भी आ सकती है। सन्तान पक्ष से अच्छी खबर मिल सकती है। घर में शादी विवाह आदि मंगल कार्य सम्पन्न होंगे। विदेश यात्रा भी हो सकती है और कारोबार में प्रगति के भी पूर्ण संभावना रहेगी। पिछले कई वर्षों से जो साढ़ेसाती की पीड़ा आपकी राशि ने भोगी है अब उसमें पूर्ण रूप से राहत मिलेगी। धन जमा होगा और निवेश करने में रुचि रहेगी। शेयर बाजार तथा अन्य प्रकार की सट्टेबाजी में सावधानी बरतें तो बेहतर रहेगा।

कन्या (Virgo) : इस वर्ष आपकी राशि को शनि तांबे के पाये से रहेगा। इस वर्ष उतरती साढ़ेसाती रहेगी और शनि धन तथा कुटुम्बभाव में विचरण करेगा। आर्थिक और शारीरिक कष्ट के साथ-साथ चोर, अग्नि, वाहन आदि से कष्ट हो सकते हैं। मित्रों और सगे सम्बन्धियों से विश्वासघात हो सकता है। अकारण शत्रु बढ़ सकते हैं। चल अचल सम्पत्ति के लेन देन में बाधा उत्पन्न होगी। मई-जून के उपरान्त कुछ छोटे मोटे लाभ होंगे। युवा वर्ग को परीक्षा प्रतियोगिता या नौकरी आदि में प्राथमिकता मिल सकती है। प्रौढ़ और वृद्धि जातकों को पारिवारिक सुख सम्मान तथा इच्छित कार्यो में सफलता मिल सकती है।

तुला ( Libra): इस वर्ष आपकी राशि को शनि चांदी के पाये से रहेगा। साढ़ेसाती की दूसरी ढैया रहेगी। राशि पर चल रहा शनि शरीर में रोग और कामकाज में थकान तथा नीरसता पैदा करेगा। सामाजिक जीवन में विरोधी और शत्रु पैदा होने से कभी-कभी अपमानजनक स्थितियां पैदा हो सकती हैं। घर के लोगों से व्यवस्था सम्बन्धी चूक होने से धनहानि के आसार रहेंगे। कारोबार में भी शनि की साढ़ेसाती कभी फायदेमन्द तो कभी नुकसानदेह साबित होगी। साल की शुरुआत में कुछ अच्छी खबरें भी मिलेंगी। दाम्पत्य जीवन तथा साझेदारी में सहयोग मिलने की आशा रहेगी।

वृश्चिक ( Scorpio): इस वर्ष शनि आपकी राशि में चढ़ती साढ़ेसाती लोहे के पाये से रहेगी। बारहवां शनि अभी साढ़ेसाती की शुरुआत कर रहा है। हर काम में उलट फेर की आशंका रहेगी। घर के सदस्य और सन्तान पक्ष द्वारा मनमाने काम करने से आश्चर्य होगा और आपके अस्तित्व को एक चुनौती मिल सकती है। संचित धन गैर मामूली कार्यो में खर्च होगा। वाद-विवाद और रोग बीमारी को टालने में भी धन की हानि हो सकती है। साढ़ेसाती की शुरुआत तभी अच्छी हो सकती है जब आप समय की धारा को देखते हुए अपना काम करें। स्वार्थ और लालच के चक्कर में और भी संकट पूर्ण स्थिति आ सकती है। बेहतर यही होगा कि जैसा चल रहा है उसे स्वीकार कर लें।

धनु ( Sagittarius): धनु राशि पर शनि तांबे के पाये से असर करेगा। फिलहाल शनि अगले ढाई साल के लिए एकादश यानी लाभ स्थान में रहेगा। कुछ नये काम शुरु करने की प्रेरणा मिलेगी लेकिन बृहस्पति के अनुकूल नहीं होने से नये नये संकट भी सामने आएंगे। यदि पूर्व में कोई नैतिक भूलचूक की है अथवा गलती हुई है तो उसका दुष्परिणाम इस दौरान भोगना पड़ सकता है। सन्तान पक्ष से चिन्ता बनी रहेगी। दाम्पत्य जीवन में भी उतार-चढ़ाव आयेंगे। किसी भारी खर्च से भी आप बच नहीं सकते हैं। स्वभाव और व्यवहार में चिड़चिड़ापन आ सकता है। शनि अभी आपकी राशि को देख रहा है अतः सिर में दर्द, हड्डियों और घुटनों में दर्द तथा घर में चोर ओर उचक्कों का भय बना रहेगा। कुछ अकल्पनीय फायदे भी इस बीच हो सकते है।

मकर (Capricorn): मकर राशिपर शनि सोने के पाये से असर करेगा। दशमभाव में शनि विचरण कर रहा है। कामकाज और व्यापार में तरक्की हो सकती है। खर्च भी कुछ बढ़ जायेंगे। घर के बुजुर्गों का स्वास्थ्य चिन्ता का विषय बनेगा। सामाजिक और राजकीय स्तर पर आपका मान सम्मान बढ़ सकता है। यदि नौकरी में हैं तो पदोन्नति एवं अच्छे स्थान पर नियुक्ति हो सकती है। युवा और विद्यार्थी वर्ग को परीक्षा आदि में अच्छी सफलता मिल सकती है। रोजगार और देश देशान्तर की यात्रा का अवसर भी मिलेगा। शुभ शनि आपकी राशि का स्वामी है अतः अच्छे समय का सदुपयोग करना जरूरी है।

कुंभ ( Aquarius): कुंभ राशिपर शनि चांदी के पाये से रहेगा। भाग्यस्थान का शनि बौद्धिक और आर्थिक विकास के लिए उत्तम है। नौकरी या व्यवसाय में तरक्की के अवसर मिलेंगे। नई प्रॉपर्टी की खरीद हो सकती है। जमा पूंजी का लाभदायक निवेश भी होगा। घर परिवार में रुके हुए मांगलिक कार्य सम्पन्न होंगे। किसी अच्छे सहयोगी या मित्र के द्वारा कोई बड़ा फायदे का सौदा भी हाथ में आ सकता है। अनेक प्रकार के शुभफलों के साथ-साथ इस साल आपको कई प्रकार की चिन्ताओं और वाद विवादों से भी मुक्ति मिल सकती है। कोर्ट कचहरी आदि में विजय हो सकती है।

मीन (Pisces): मीन राशि पर शनि लोहे के पाये से रहेगा। अष्टम शनि कार्यक्षेत्र में अधिक तनाव तो देगा लेकिन देर सबेर आपकी उन्नति और प्रोन्नति भी होती रहेगी। पूंजी निवेश और जमीन-जायदाद की खरीद कर सकते हैं। देश या विदेश की लम्बी यात्रा हो सकती है। सरकार से या संस्थओं से लाभ हो सकता है। आपके अधिकार और कार्यक्षेत्र में मनोवांछित बदलाव आ सकता है। कुछ सावधानी भी जरूरी है जैसे कि यात्रा के दौरान स्वास्थ्य का ध्यान रखें और जमा पूंजी को सही ढंग से रखें। अष्टम शनि छल और धोखे से भी धन हानि करवाता है अतः किसी प्रकार की लेन देन वाली समस्या को विचार पूर्वक ही हल करें। कुल मिलाकर साल अच्छा है।

शनि का प्रभाव कैसे होता है
शनि के चार पाये यानी पाद लोह , ताम्र , स्वर्ण , और रजत होते हैं। गोचर में जिन राषियों पर शनि सोना या स्वर्ण और लोहपाद से चल रहा है उनके लिए शनि का प्रभाव अच्छा नहीं माना जाता। जिन पर शनि चांदी या तांबे के पाये से चल रहा है उनको फल कुछ अच्छे और कुछ मिश्रित रूप से मिलते हैं।

शनि अपना प्रभाव 3 चरणों में दिखाता है जो साढ़े सात शुरु के साढ़े सात सप्ताह से आरंभ होकर साढ़े सात वर्ष तक लगातार जारी रहता है।
पहले चरण में : जातक का मानसिक संतुलन बिगड़ जाता है तथा वह अपनी उद्देश्य से भटक कर चंचल वृति धारण कर लेता है उसके अन्दर स्थिरता का अभाव अपनी गहरी पैठ बना लेता है। पहले चरण की अवधि लगभग ढाई वर्ष तक होती है।
दूसरे चरण में : मानसिक के साथ साथ शारीरिक कष्ट भी उसको घेरने लगते हैं उसके सारे प्रयास असफल होते जाते हैं। तन,मन, धन से वह निरीह और दयनीय अवस्था में अपने को महसूस करता है। इस दौरान अपने और परायों की परख भी हो जाती है। अगर उसने अच्छे कर्म किए हों तो इस दौरान इसके कष्ट भी धीरे धीरे कम होने लगते हैं। यदि दूषित कर्म किए हैं और गलत विचारधारा से जीवनयापन किया है तो साढ़ेसाती का दूसरा चरण घोर कष्टप्रद होता है। इसकी अवधि भी ढाई साल होती है।
तीसरे चरण में : तीसरे चरण के प्रभाव से ग्रस्त जातक अपने संतुलन को पूर्ण रूप से खो चुका होता है और उसमें क्रोध की मात्रा अत्यधिक बढ़ जाती है। परिणाम स्वरूप हर कार्य का उल्टा ही परिणाम सामने आता है और उसके शत्रुओं की वृद्धि होती जाती है। मतिभ्रम और गलत निर्णय लेने से फायदे के काम भी हानिप्रद हो जाते हैं। स्वजनों और परिजनों से विरोध बढ़ता है। आम लोगों में छवि खराब होने लगती है अतः जिन राशियों पर साढ़े साती तथा ढैया का प्रभाव है उन्हें शनि की शन्ति के उपचार करने पर अशुभ फलों की कमी होने लगती है और धीरे-धीरे वे संकट से निकलने के रास्ते प्राप्त कर सकते हैं।

शनि शान्ति के उपाय और उपचार :-
1. प्रतिदिन घर मे गुग्गल धूप जलायें और सायंकाल के समय लोबान युक्त बत्ती सरसों तेल के दीये में डालकर तुलसी या पीपल की जड़ में दीपक जलाएं। 2. शनिवार को कच्चे सूत को सात बार पीपल के पेड़ में लपेटे।
3. बन्दरों को गुड़ चना, भैसे को उर्द के आटे की रोटी तथा दूध से आटा माड़ कर रोटी बनाकर मोरों को चुगाएं।
4. जटायुक्त कच्चे नारियल सिर के ऊपर से 11 बार उतार कर 11 नारियल बहते जल में प्रवाहित करें।
5. काले वस्त्र कम्बल सतनाजे से तुलादान एवं छाया पात्र दान करें।
6. माफिक आये तो 7 रत्ती का शुद्व नीलम रत्न धारण करे।
8. आर्थिक हानि अथवा रोग बिमारी से बचने के लिए शनियंत्र युक्त बाधामुक्ति ताबीज और घर में अभिमंत्रित शनियंत्र रखकर उसपर तिल और सरसो के तेल का नित्य अभिषेक करे।
9.. महामृत्युंजय का जप, हनुमान चालीसा का पाठ भी शनि बाधा को शान्त करता है। 

पं . केवल आनंद जोशी
(kajoshi46@gmail.com ) 

Tuesday, November 22, 2011

सही वास्तु दिलाएगा धन-समृद्धि...


यूं तो किसी को किस्मत से ज्यादा नहीं मिलता लेकिन कई बार अनेक बाधाओं के कारण किस्मत में लिखी धन-समृद्धि भी प्राप्त नहीं होती। वास्तु को मानने वाले अगर इसके मुताबिक काम करें तो उन्हें वो मिल सकता है जो अब तक नहीं मिला है।

पूर्व दिशा : यहां घर की संपत्ति और तिजोरी रखना बहुत शुभ होता है और उसमें बढ़ोतरी होती रहती है।

पश्चिम दिशा : यहां धन-संपत्ति और आभूषण रखे जाएं तो साधारण ही शुभता का लाभ मिलता है। परंतु घर का मुखिया अपने स्त्री-पुरुष मित्रों का सहयोग होने के बाद भी बड़ी कठिनाई के साथ धन कमा पाता है।

उत्तर दिशा : घर की इस दिशा में कैश व आभूषण जिस अलमारी में रखते हैं, वह अलमारी भवन की उत्तर दिशा के कमरे में दक्षिण की दीवार से लगाकर रखना चाहिए। इस प्रकार रखने से अलमारी उत्तर दिशा की ओर खुलेगी, उसमें रखे गए पैसे और आभूषण में हमेशा वृद्धि होती रहेगी।

लक्ष्मी प्राप्ति उपाय
ND
दक्षिण दिशा : इस दिशा में धन, सोना, चाँदी और आभूषण रखने से नुकसान तो नहीं होता परंतु बढ़ोत्तरी भी विशेष नहीं होती है।

ईशान कोण : यहां पैसा, धन और आभूषण रखे जाएं तो यह दर्शाता है कि घर का मुखिया बुद्धिमान है और यदि यह उत्तर ईशान में रखे हों तो घर की एक कन्या संतान और यदि पूर्व ईशान में रखे हों तो एक पुत्र संतान बहुत बुद्धिमान और प्रसिद्ध होता है।

आग्नेय कोण : यहां धन रखने से धन घटता है, क्योंकि घर के मुखिया की आमदनी घर के खर्चे से कम होने के कारण कर्ज की स्थिति बनी रहती है।

नैऋत्य कोण : यहां धन, महंगा सामान और आभूषण रखे जाएं तो वह टिकते जरूर है, किंतु एक बात अवश्य रहती है कि यह धन और सामान गलत ढंग से कमाया हुआ होता है।

वायव्य कोण : यहां धन रखा हो तो खर्च जितनी आमदनी जुटा पाना मुश्किल होता है। ऐसे व्यक्ति का बजट हमेशा गड़बड़ाया रहता है और कर्जदारों से सताया जाता है।

सीढ़ियों के नीचे तिजोरी रखना शुभ नहीं होता है। सीढ़ियों या टायलेट के सामने भी तिजोरी नहीं रखना चाहिए। तिजोरी वाले कमरे में कबाड़ या मकड़ी के जाले होने से नकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न होती है।

घर की तिजोरी के पल्ले पर बैठी हुई लक्ष्मीजी की तस्वीर जिसमें दो हाथी सूंड उठाए नजर आते हैं, लगाना बड़ा शुभ होता है। तिजोरी वाले कमरे का रंग क्रीम या ऑफ व्हाइट रखना चाहिए।

Saturday, November 12, 2011

हरी सब्जियों के लाभ!


गोभी, आलू, बीन्स आदि शरीर के विविध भागों, तत्वों, मात्राओं को प्रभावित करते हैं।
*अदरक, धनिया, पुदीना, हरी मिर्च सब्जियों के तत्वों एवं स्वाद को बढ़ाने में मदद करते हैं।
* लहसुन खून का थक्का जमने नहीं देता अतः हृदय रोग में लाभकारी है।
* करेला पेट के कृमि नष्ट करता है और रक्त शोधन कर, अग्नाशय को सक्रिय करता है।
* टमाटर शरीर में रक्त की मात्रा बढ़ाता है और त्वचा निखारता है।
*नींबू शरीर के पाचक रसों को बढ़ाता है।
*पालक हड्डियों को कैल्शियम से सुदृढ़ करता है।
*भिंडी वीर्य में गाढ़ापन लाती है और शुक्राणु बढ़ाती है।
* लौकी शीघ्र पाचक, रक्तवर्द्धक है। यह शीतलता प्रदान करती है।
*खीरा रक्त कणों का शोधन कर शरीर में रक्त का प्रवाह बढ़ाता है।
* परवल शरीर को ऊर्जा देता है।
*पत्तेदार सब्जी लौह तत्व से भरपूर होती है अतः इन सबका उचित रूप से सलाद में प्रयोग करें या हल्की भाप पर थोड़ी देर पकाकर कम मसाले के साथ सेवन करें।
*सब्जी को काटने से पूर्व अच्छी तरह धो लें। काटने के बाद धोने से सब्जी के तत्व नष्ट होते हैं।
* सब्जी पकाते समय ज्यादा तेल का उपयोग न करें।
* स्वाद के लालच में सब्जियों को ज्यादा देर तक आग पर न रखें। इससे उनकी पौष्टिकता नष्ट हो जाती है।
* खाने में अधिक मिर्च-मसाले का प्रयोग सब्जी के प्राकृतिक स्वाद व ऊर्जा को कम करते हैं।
*बासी, फ्रिज में रखी सब्जियों को बार-बार गरम न करें।
* हमेशा ताजी सब्जियां ही प्रयोग में लाएं।

वास्तु एवं पुरुषार्थ


अनादिकाल से ऋषि-मुनियों, आचार्यों, सरस्वती पुत्र एवं श्रेष्ठी जनों का बराबर सम्मान होता रहा है वर्तमान समय में दूरदर्शन एवं समाचार पत्रों ने वास्तु, न्यूमरोलॉजी, ज्योतिष, योगा व मेडीटेशन इत्यादि शास्रों की जानकारी जन-जन तक पहुंचा दी है। उपरोक्त सफलता पाने के लिए पूर्व जन्म का संस्कार वर्तमान समय के पुरुषार्थ एवं लगन ही हमें मंजिल पर पहुंचा सकती है। वर्तमान समय में हर तरफ शास्रों की गूंज हो रही है। श्रेष्ठी वर्ग अपने व्यापार एवं व्यवसाय में असफल होने लगता है, उन्हें अपने आफिस, फैक्टरी, निवास में त्रुटियां महसूस होने लगती है। क्या असफलता का उत्तरदायित्व वास्तु पर ही है। निम्नलिखित बातों को अपने जीवन में उतारें। सफलता क्यों न हमारे कदम चूमेगी। विश्व धर्म में भावनाओं का महत्त्व माना गया है। भावना भव नाशिनी भावना भव वंदिनी। मानव के मन में भावना की उत्पत्ति अच्छी (पोजेटिव) और बुरी (निगेटिव) कैसे होती है। भावनाएं ऊर्जाओं पर निर्भर करती है। सकारात्मक ऊर्जाओं को बुलाने के लिए वास्तु शास्र का सहयोग हम लेते हैं। मन में उत्साह लाने में अन्य कई शास्रोें का भी सहयोग लेते हैं।  सोच बदलो संसार बदल जाएगा। भावना बदलो भाव बदल जाएंगे। वास्तु शास्र आपको मार्ग दर्शन देता है। अच्छे सोच का वातावरण आपके सम्मुख लाता है।  वातावरण को ग्रहण करना और मार्ग पर चलना आपको पड़ेगा। सबको साथ लेते हुए भी पुरुषार्थ में कमजोर हैं, तो कुछ भी बदलने वाला नहीं। शास्र अनुकूल बनाए गए आवास, व्यापारिक प्रतिष्ठान पर सकारात्मक ऊर्जा देने के स्रोत हैं। सकारात्मक ऊर्जाओं के आगमन के मार्ग ः-
सकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न करने में सहायक
1. ईशान कोण में अंडरग्राउंड टैंक, डीप बोरिंग, कुआं, देवस्थान, भूखंड का नीचा होना, स्थान खाली होना इत्यादि।
2. अग्नि कोण में किचन, इलेक्ट्रिक रूम व जेनरेटर इत्यादि।
3. नेऋत्य कोण में मुख्यकर्ता का शयनकक्ष, भूखंड का ऊंचा होना, शस्रगृह, तिजोरीकक्ष (मतांतर उत्तर में) इत्यादि।
4. वायव्य कोण में सेप्टीक टैंक, सीढि़यां, गेस्टरूम, लड़कियों का कमरा, शौचालय, किचन (मतांतर द्वितीय अग्निकोण) इत्यादि।
सम्पत केएस सेठी, विवेक विहार, हावड़ा

Saturday, May 21, 2011

बुद्ध कल्पना


किसी भी समय दिन में एक बार तो करो ही। अच्छा होगा कि इस विधि को खाली पेट करो।  जब पेट खाली होता है तो तुम्हारे पास अधिक ऊर्जा होती है। भूखा नहीं रहना, बस पेट ज्यादा भरा हो। अगर तुम खाना खा चुके हो तो उसके दो-तीन घंटे बाद इस विधि को करो। इसको करने से पहले तुम चाय ले सकते हो। बौद्ध परंपरा में लंबे समय तक चाय का प्रयोग होता रहा है। चाय पीने को उन्होंने ध्यान की एक विधि बना लिया है। चाय सहयोगी होती है और तुम्हें अधिक जोश से भर देती है। तो अच्छा होगा कि तुम एक कप चाय का ले लो। पर और कुछ मत लो। जब तुम उस विधि को करो तब सुबह-सुबह या रात को पेट खाली हो।

पूरे आराम से बैठ जाओ। फर्श पर बैठ सकते हो तो अच्छा रहेगा। बस अपने नीचे एक तकिया रख लो।
पूरे शरीर को शांत हो जाने दो और अपने ध्यान को अपनी छाती के ठीक बीच पर ले जाओ। उस बिंदु पर ध्यान दो जहां तुम्हारे फेफड़े और पेट मिलता है। आंखें बंद किए ऐसे सोचो कि वहां एक छोटी सी बुद्ध की प्रतिमा है। केवल दो इंच की बुद्ध प्रतिमा। भाव की प्रतिमा प्रकाश से बनी हुई है और उससे किरणें निकल रही हैं। उसमें पूरी तरह समा जाओ। यदि तुम जमीन पर बुद्ध की तरह पद्मासन में बैठ सको तो ज्यादा अच्छा होगा।

फिर किरणें शरीर से बाहर निकलने लगती हैं। उन्हें फैलता हुआ महसूस करो जल्द ही किरणें छत को, दीवारों को छूने लगेंगी, फिर इस तरह दस मिनट में किरणें ब्रह्मांड में फैलने लगेंगी। फिर अचानक इस सबको विलीन हो जाने दो- इस प्रक्रिया की सबसे महत्त्वपूर्ण बात है कि किरणों को अचानक विलीन हो जाने दो। अचानक सब कुछ बच जाए और पीछे एक नेगेटिव प्रतिमा बच जाए। कुछ क्षण पहले तक बुद्ध की प्रतिमा थी- प्रकाश से भरी हुई। अचानक उसे विदा हो जाने दो। इस शून्यता को, इस स्थिति को पांच और दस मिनट सम्हाल कर रखो। पहले चरण में किरणें जब पूरे ब्रह्मांड में फैल रही थीं तब तुम ऐसी गहन शांति का अनुभव करोगे जैसा तुमने पहले कभी नहीं किया होगा। साथ ही तुम्हें विस्तार का अनुभव होगा। लगेगा पूरा ब्रह्मांड तुममें समा गया है।

दूसरे चरण में तुम्हें शांति का नहीं आनंद का अनुभव होगा। जब बुद्ध की प्रतिमा एक नेगेटिव बन गई थी, सब प्रकाश विदा हो गया और केवल अंधकार व मौन बचा रहा तब एक विराट आनंद का अनुभव हुआ। इस पूरी प्रक्रिया में पैंतालीस से साठ मिनट  ज्यादा समय नहीं लगना चाहिए और बहुत उपयोगी है यह विधि। यदि कभी-कभी तुम डाइनमिक भी कर सको तो दोनों विधियां एक साथ मिलकर बहुत शक्तिशाली हो जाएंगी। डाइनमिक रेचन के लिए अच्छा है और यह विधि मौन को अनुभव करने के लिए। और अगर दोनों विधियों को न कर सको तो इस विधि को करो।

इसे तुम रात सोने से पहले अपने विस्तर पर कर सकते हो, वह सबसे अच्छा समय है इस विधि के लिए। यह प्रयोग करो और फिर सो जाओ जिससे यह प्रक्रिया पूरी रात चलती रहे। कई बार तुम्हारे सपनों में वह प्रतिमा आएगी, कभी तुम्हें सपनों में किरणों का अनुभव होगा। तुम्हें सुबह लगेगा कि तुम्हारी नींद की गुणवत्ता ही कुछ और थी। वह केवल नींद नहीं थी कुछ बहुत ज्यादा सकारात्मक तुम्हारे अनुभव से गुजर गया। कोई उपस्थिति तुम्हें छू गई। तुम सुबह ज्यादा तरो-ताजा, ज्यादा जोश से भरे उठोगे।  तुम जीवन के प्रति एक सम्मान से भर उठोगे।

अपनी कमजोरी अवश्य पकड़ें


सफलता का श्रेय स्वयं लेना और असफलता का दोष दूसरे पर मढऩा मनुष्य की आदत बन जाता है। क्योंकि श्रेय अहंकार को तृप्त करता है और दूसरों को दोष देने में ईष्र्या वृत्ति को मजा आता है, लेकिन याद रखें कुछ समय बाद दोनों के ही परिणाम में मन अप्रसन्न हो जाता है।

इसलिए जब भी हम असफल हों दूसरों में कारण न ढूंढते हुए खुद के भीतर उतरकर अपनी ही कोई कमजोरी अवश्य पकड़ें। असफलता को जितना स्वयं की कमजोरी से जोड़ेंगे अगली बार की सफलता के लिए रास्ता आसान बना देंगे और जितना दूसरों से जोड़ेंगे पुन: असफल होने की तैयारी कर रहे होंगे।

जैसे अच्छा स्वास्थ्य और बीमारी दोनों को ही संक्रमण माना गया है। यानी यह दोनों ही अपने साथ वालों में जल्दी से प्रवेश कर जाते हैं।

संक्रमण का अर्थ है अज्ञात आक्रमण। असफल होने पर यदि आप स्वयं में कारण ढूंढ रहे होते हैं तो आप दु:ख की तरंगों से मुक्त रहते हैं क्योंकि भीतर आपको एक एकांत मिलता है और वह एकांत आपकी सांसों में भी शांति का स्वाद भर देता है। आपसे मिलने वाला व्यक्ति उसी सांस को बाहर से महसूस करता है और काफी हद तक पी भी लेता है।

यदि हमारी सांस में अहंकार का स्वाद है, अशांति का झोंका है तो हमसे मिलने वाले लोग इसी को चखेंगे और हो सकता है वे हमसे दूर जाने का प्रयास करें। इसे कहते हैं व्यक्तित्व की तरंग। किसी के भीतर से निकल रही तरंग हमको तरोताजा बना देती है और किसी के पास लौटने पर लगता है हमें पूरा निचोड़ लिया गया है। अत: सफलता और असफलता पर अपने भीतर से जुड़कर बाहर की तरंगों को इतना स्वस्थ रखें कि हमसे मिलने वाला हर व्यक्ति यह कहे कि इनके पास बैठकर अच्छा ही लगता है, हालात चाहे जैसे भी हों।


Monday, May 16, 2011

नियमित सत्संग


रमेश भाई ओझा।। 

ईश्वर की भक्ति में एक समय ऐसा आता है, जब साधक साधना की इतनी ऊंचाई पर पहुंच जाता है कि वह विदेह हो जाता है। उसे अपनी अवस्था का अहसास नहीं रहता। वह जिस हाल में होता है, उसी में प्रभु का स्मरण करता रहता है। 


पर साधक की साधना में उसे विदेह करने वाला क्षण कैसे आता है? वह आता है नियमित सत्संग से। इस बात को सदैव ध्यान रखना कि जहां सत्संग है, वहां सुमति है। और जहां सुमति है वहां संपत्ति है। सुमति सत्संग से ही मिलेगी। सत्संग से ही हम जान पाते हैं कि यज्ञ के अतिरिक्त अन्य कर्म मनुष्य को बांधते हैं। जब फलासक्ति को छोड़कर भगवान के लिए कर्म करते हैं और उन्हें ईश्वर को ही अर्पित करते हैं, तब हम में सुमति जगती है। ये तीनों बातें ईश्वर के प्रति प्रेम रखने के कारण जीव में प्रकट होती हैं। 

केवट ने भगवान राम को दंडवत प्रणाम किया और अपनी नाव से उन्हें नदी के पार ले गए। नदी पार कराने के बाद केवट ने उनसे अपने श्रम की कीमत नहीं ली। बल्कि शीश नवाकर कहा, नाथ! आज मैं काहू न पावा। यानी केवट को इसके बदले में कुछ नहीं चाहिए। 

जीव जिससे प्रेम करता है, उसकी सिर्फ प्रसन्नता चाहता है। अगर प्रेम नहीं है तो कोई भी कर्म मजदूरी माना जाएगा और उसका मूल्य मांगा जाएगा। भक्ति और प्रेम में कर्म मजदूरी नहीं होता। बल्कि इस भाव से जो कर्म किया जाता है और उससे दूसरों को जो सुख मिलता है, उसमें तुम सुखी होते हो। 

इसलिए शास्त्रों में कहा गया है कि शास्त्र और विधि के अनुसार कर्म करो। रामकथा मुख्यत: विधिरूप कर्म सिखाती है। रामायण असल में एक तरह का प्रयोगशास्त्र है। उससे स्पष्ट होता है कि राम ने धर्म को जीया। जीवन भर वही किया जो शास्त्रों के अनुसार सही होता है। इसलिए वही कर्म करो जो शास्त्र कहते हैं। ऐसा करेंगे तो सत्संग हमारी मति(बुद्धि) को सुमति बनाएगा। और जब सुमति से प्रेरित होकर कोई व्यक्ति अच्छे कार्य करेगा यानी सत्कर्म रूपी हल चलाएगा तो भक्ति रूपी सीता प्रकट होंगी। 

जब सीता प्रकट हुईं तो क्या हुआ था? तब भगवान स्वयं आए, उन्होंने शिव का धनुष भंग किया और सीता ने उन्हें वर लिया। ऐसी कथा है कि सीताजी ने एक बार दाएं हाथ से शिव का धनुष उठाया और उसके नीचे की जमीन बाएं हाथ से लीप दी। राजा जनक को बड़ा आश्चर्य हुआ कि यह कैसे हुआ? उन्होंने सोचा कि सीता के रूप में मेरे घर में कोई शक्ति प्रकट हुई है। वह धनुष तो और कोई नहीं उठा सकता। राजा जनक ने समझ लिया कि यह तो परम शक्ति हैं, उन्हें उनके योग्य वर को सौंपना होगा। ऐसा सोचकर उन्होंने घोषणा की कि जो यह धनुष उठाकर उस पर प्रत्यंचा चढ़ाएगा, सीता उसी का वरण करेंगी। राम ने धनुष तोड़ा तो उससे यह साबित हुआ कि वही उस शक्ति के स्वामी हैं। ऐसा जानकर सीता ने राम के गले में वरमाला डाल दी। 

सीता तो भक्ति हैं। वह सदैव श्रीराम की सेवा में रहना चाहती हैं। वह वन में भी राम के संग चलीं। सब दुख सहे लेकिन राम का संग नहीं छोड़ा। यह है भक्ति। भक्त की भी यही भूमिका है कि वह भगवान से कुछ नहीं चाहता, वह सिर्फ भगवान को चाहता है। 

राम के पूर्व भी रावण को परास्त करने वाली शक्तियां थीं। सहसार्जुन ने रावण को परास्त किया था। बाली छह महीने तक रावण को कांख में दबाकर घूमते रहे थे। तो राम क्या रावण का ही केवल वध करने के लिए इस धरती पर आए थे? नहीं, वह तो जन कल्याण के लिए आए थे। जिसके केवल भृकुटि विलास में अनेक ब्रह्मांड जन्मते और नष्ट होते हैं, उसके लिए रावण को मारना क्या कठिन था? भगवान केवल संतों और संत स्वभाव वाले लोगों की रक्षा के लिए आए थे। महाकवि तुलसी ने कहा है- विप्र, धेनु, सुर, संतहित। लीन्ह मनुज अवतार। 


प्रस्तुति : सुभाष चंद शर्मा 

'मन को स्थिर रखना ही सबसे बड़ी साधना है।


नगर सेठ का पुत्र था मेघ । बुद्ध के प्रवचनों से प्रभावित होकर उसने भी प्रवज्या ग्रहण करने का फैसला किया। बुद्ध ने उसे अपने निर्णय पर ठीक से सोच लेने को कहा, लेकिन वह अपने फैसले पर दृढ़ रहा। वह बौद्ध विहार में रहने लगा। वह अपने साथ सुख-सुविधाओं की चीजंे लेता आया था। बुद्ध ने एक दिन विहार के वरिष्ठ भिक्षु को मेघ की सुख- सुविधाएं कम करने को कहा। मेघ को अब मोटा भोजन और मोटा बिस्तर दिया जाने लगा। उसे सेवा के कड़े काम भी दिए गए। धीरे-धीरे मेघ की प्रसन्नता को ग्रहण लगने लगा। वह खिन्न सा रहने लगा। 

उसने इससे पहले कभी रूखा-सूखा अन्न नहीं खाया था। वह हमेशा आरामदेह बिस्तर पर सोता था। जब से वह इन सुविधाओं से वंचित हुआ, उसका उत्साह कम होने लगा। उसे लगा कि उसकी शांति छिन गई है। उसके मन में विचार उठना लगा कि कहीं मैंने गलत मार्ग का चुनाव तो नहीं कर लिया। ऐसा तो नहीं कि बाद में मुझे पछताना पड़ेगा। उसने बुद्ध के पास जाकर कहा, 'भगवन, मेरे मन में भौतिक इच्छाएं फिर से पैदा हो रही हैं, आप मुझे विशेष साधना बताएं।' इस पर बुद्ध ने कहा, 'मन को स्थिर रखना ही सबसे बड़ी साधना है। बेहतर यही है कि तुम अपने चित्त को वश में करने का प्रयत्न करो। यह स्थिरता आराम की स्थिति में उपलब्ध होने वाली जड़ता नहीं है। इसमें जीवन का प्रवाह है। हर परिस्थिति के साथ सामंजस्य बनाने की क्षमता है।' बुद्ध की बात सुनकर मेघ उनके समक्ष नतमस्तक हो गया। 

संकलन: लखविन्दर सिंह  

Friday, May 13, 2011

धन प्राप्ति योग


आकस्मिक धन प्राप्ति से तात्पर्य है कि इनाम, भेंट, वसीयत, रेस-लॉटरी, भू-गर्भ धन, स्कॉलरशिप आदि से प्राप्त धन है। कुंडली में पंचम स्थान से इनाम, लॉटरी,  स्कॉलरशिप आदि का निर्देश मिलता है, जबकि अष्टम भाव गुप्त भू-गर्भ, वसीयत, अनसोचा या अकल्पित धन दर्शाता है। धन संपत्ति प्रारब्ध में होती है, तब ही मनुष्य उसे प्राप्त कर सकता है। भाग्यशाली लोगों को ही बिना परिश्रम के अचानक धन प्राप्त होता है, इसलिए कुंडली में नवम भाग्य भाव त्रिकोण का भी विशेष्ा महत्व है। 

इस प्रकार अचानक आकस्मिक धन-संपत्ति प्राप्ति के लिए कुंडली में द्वितीय धनभाव, एकादश लाभभाव, पंचम प्रारब्ध एवं लक्ष्मी भाव, अष्टम गुप्तधन भाव तथा नवम भाग्य भाव एवं इनके अघिपति तथा इन भावों में स्थित ग्रहों के बलाबल के आधार पर संभव है। निम्न  योगों में से अघिकतम योग वाली कुंडली आकस्मिक धन प्राप्त कराने में समर्थ पाई जाती है।

1.  धनेश अष्टम भाव में तथा अष्टमेश धन भाव में अकस्मात धन दिलाता है।

2.  लग्नेश धनभाव में तथा धनेश लग्न भाव में भी अचानक धन देता है।

3.  द्वितीय भाव का अघिपति लाभ स्थान में और लग्नेश द्वितीय भाव में होता है, तो अकस्मात धन लाभ कराता है।
4.  लाभ भाव में चंद्रम+मंगल युति व बुध पंचम भाव में स्थित होने पर अकस्मात धन लाभ होता है।

5.  अष्टम भाव में शुक्र तथा चंद्र + मंगल कुंडली के किसी भी भाव में एक साथ होते हैं, तो जातक अकस्मात धन प्राप्त करता है।

6.  भाग्यकारक गुरू यदि नवमेश होकर अष्टम भाव में है, तो जातक अकस्मात धनी बनता है।

7.  द्वितीय एवं पंचम स्थान या इनके स्वामी युति, दृष्टि या परिवर्तन योग से यदि शुभ संबंध बनाते हैं, तो लॉटरी खुलती है।

8.  कुंडली में धनभाव, पंचम भाव, एकादश भाव, नवम भाग्य भाव का किसी भी प्रकार से संबंध होता है, तो अकस्मात धन प्राप्त कराता है।

9.  पंचम, नवम या एकादश भाव में राहु-केतु होते हैं, तो लॉटरी खुलती है, क्योंकि राहु अकल्पित और अचानक फल देता है।

10.  ष्ाष्टम-अष्टम, अष्टम-नवम, एकादश-द्वादश स्थान के परिवर्तन योग आकस्मिक धन प्राप्त कराते हैं। दशा-अंतरदशा में अचानक धन प्राप्त कराते हैं।

11. अष्टम भाव स्थित धनेश जातक को जमीन में दबा हुआ, गुप्त धन प्राप्त कराता है या वसीयत द्वारा धन प्राप्त कराता है।

12.  लग्नेश-धनेश के संबंध से पैतृक संपत्ति मिलती है।

13.  लग्नेश-चतुर्थेश के संबंध से माता से संपत्ति प्राप्त होती है।

14.  लग्नेश शुभग्रह होकर यदि धनभाव में स्थित हो, तो जातक खजाना प्राप्त कर सकता है।

15.  अष्टम स्थान स्थित लाभेश अचानक धन दिलाता है।

16.  कर्क या धनु राशि का गुरू नवम भाव गत होता है और मकर का मंगल यदि कुंडली में चंद्रमा के साथ दशम भाव में होता है, तो अकस्मात धन दिलाते हैं।

17.  चंद्र-मंगल, पंचम भाव में हो और शुक्र की पंचम भाव पर दृष्टि होती है, तो जातक अचानक धन पाता है।

18.  गुरू-चंद्र की युति कर्क राशि में द्वितीय, चतुर्थ, पंचम, नवम या एकादश भाव में से किसी भी भाव में होती है, तो जातक अकस्मात धन पाता है। चंद्र से तृतीय, पंचम, दशम एवं एकादश भाव में शुभ ग्रह धन योग की रचना करते हैं।

19.  धन-संपत्ति पूर्वार्जित सतकर्मो का स्थान पंचम भाव है तथा विगत जन्म के संचित कर्मो के अनुसार ही स्त्री-पुरूष्ा, पुत्र, परिवार, धन-संपत्ति के रूप में आकर मिल जाते हैं और प्रारब्ध का निर्माण होता है।

शांता गुप्ता

Wednesday, May 11, 2011

सृष्टि का कौन है कर्ता

सृष्टि से पहले सत नहीं था
असत भी नहीं, अंतरिक्ष भी नहीं, आकाश भी नहीं था असत भी नहीं, अंतरिक्ष भी नहीं, आकाश भी नहीं था
छिपा था क्या, कहाँ किसने ढका था छिपा था क्या, कहाँ किसने ढका था
उस पल तो अगम अतल जल भी कहां था | पल तो अगम अतल जल भी कहां था | उस

सृष्टि का कौन है कर्ता? सृष्टि का कौन है कर्ता? कर्ता है या है विकर्ता? कर्ता है या है विकर्ता?
ऊँचे आकाश में रहता, सदा अध्यक्ष बना रहता ऊँचे आकाश में रहता, सदा अध्यक्ष बना रहता
वही सचमुच में जानता, या नहीं भी जानता वही सचमुच में जानता, या नहीं भी जानता
है किसी को नही पता, नही पता है किसी को नही पता, नही पता
नही है पता... नही है पता ...
नही है पता... नही है पता ...
वो था हिरण्य गर्भ सृष्टि से पहले विद्यमान, वही तो सारे भूत जाति का स्वामी महान
जो है अस्तित्वमान धरती आसमान धारण कर, जो है अस्तित्वमान धरती आसमान धारण कर,
ऐसे किस देवता की उपासना करें हम हवि देकर ऐसे किस देवता की उपासना करें हम हवि देकर

जिस के बल पर तेजोमय है अंबर, पृथ्वी हरी भरी स्थापित स्थिर जिस के बल पर तेजोमय है अंबर, पृथ्वी हरी भरी स्थापित स्थिर
स्वर्ग और सूरज भी स्थिर,ऐसे किस देवता की उपासना करें हम हवि देकर स्वर्ग और सूरज भी स्थिर, ऐसे किस देवता की उपासना करें हम हवि देकर

गर्भ में अपने अग्नि धारण कर पैदा कर,व्यापा था जल इधर उधर नीचे ऊपर गर्भ में अपने अग्नि धारण कर पैदा कर, व्यापा था जल इधर उधर नीचे ऊपर
जगा चुके व एकमेव प्राण बनकर,
ऐसे किस देवता की उपासना करें हम हवि देकर जगा चुके व एकमेव प्राण बनकर, 
ऐसे किस देवता की उपासना करें हम हवि देकर

ऊँ!सृष्टि निर्माता,स्वर्ग रचयिता पूर्वज रक्षा कर,
ऊँ सृष्टि! निर्माता, स्वर्ग रचयिता पूर्वज रक्षा कर,
सत्य धर्म पालक अतुल जल नियामक रक्षा कर सत्य धर्म पालक अतुल जल नियामक रक्षा कर
फैली हैं दिशायें बाहु जैसी उसकी सब में सब पर, फैली हैं दिशायें बाहु जैसी उसकी सब में सब पर,
ऐसे ही देवता की उपासना करें हम हवि देकर ऐसे ही देवता की उपासना करें हम हवि देकर
ऐसे ही देवता की उपासना करें हम हवि देकर ऐसे ही देवता की उपासना करें हम हवि देकर


सृष्टि से पहले सत नहीं था, असत भी नहीं
अन्तरिक्ष भी नहीं, आकाश भी नहीं था
छिपा था क्या, कहाँ, किसने देखा था
उस पल तो अगम, अतल जल भी कहाँ था

सृष्टि का कौन है कर्ता
कर्ता है वा अकर्ता
ऊँचे आकाश में रहता
सदाअ अध्यक्ष बना रहता
वही तो सच\-मुच में जानता, या नहीं भी जानता
है किसी को नहीं पता
नहीं पता

वह था हिरण्यगर्भ सृष्टि से पहले विद्यमान
वही तो सारे भूत\-जात का स्वामी महान
जो है अस्तित्वमान धरती\-आसमान धारण कर
ऐसे किस देवता की उपासना करें हम हवि देकर



जिस के बल पर तेजोमय है अम्बर
पृथ्वी हरी\-भरी स्थापित स्थिर
स्वर्ग और सूरज भी स्थिर
ऐसे किस देवता की उपासना करें हम हवि देकर

गर्भ में अपने अग्नि धारण कर पैदा कर
व्यापा था जल इधर\-उधर नीचे\-ऊपर
जगा चुके वो कई एकमेव प्राण बनकर
ऐसे किस देवता की उपासना करें हम हवि देकर

ॐ! सृष्टि\-निर्माता स्वर्ग\-रचयिता पूर्वज, रक्षा कर
सत्यधर्म\-पालक अतुल जल नियामक, रक्षा कर
फैली हैं दिशायें बाहु जैसी उसकी, सब में, सब पर
ऐसे ही देवता की उपासना करें हम हवि देकर
ऐसे ही देवता की उपासना करें हम हवि देकर

Sunday, May 8, 2011

हा हा, ही ही


क्या आपको याद है कि आप आखिरी बार दिल खोलकर कब हंसे थे? ऐसी जोरदार हंसी कि हंसते-हंसते लोटपोट हो गए, कि मुंह थक गया, कि आंखों से आंसू बह निकले, कि पेट में बल पड़ गए... याद नहीं आया न! आजकल के तनाव के इस दौर में हंसी वाकई महंगी हो गई है। लोगों के पास सब चीजों के लिए वक्त है, हंसने-हंसाने के लिए नहीं, जबकि हंसी के फायदों की फेहरिस्त काफी लंबी है। एक्सपर्ट्स से बात करके आज वर्ल्ड लाफ्टर डे के मौके पर हंसी के फायदों के बारे में बता रही हैं प्रियंका सिंह

हंसी से बड़ी कोई दवा नहीं. . . इस बात को हम हमेशा से सुनते आए हैं, लेकिन मानते शायद कम ही हैं क्योंकि बिना किसी खर्च के इलाज की बात आसानी से हजम नहीं होती। वैसे भी, जिंदगी की आपाधापी और तनाव ने लोगों को हंसना भुला दिया है। रिसर्च बताती हैं कि पहले लोग रोजाना करीब 18 मिनट रोजाना हंसते थे, अब 6 मिनट ही हंसते हैं जबकि हंसना बेहद फायदेमंद है। दिल खोलकर हंसनेवाले लोग बीमारी से दूर रहते हैं और जो बीमार हैं, वे जल्दी ठीक होते हैं। हंसी न सिर्फ हंसनेवाले, बल्कि उसके आसपास के लोगों पर भी पॉजिटिव असर डालती है इसलिए रोजाना हंसें, खूब हंसें, जोरदार हंसें, दिल खोलकर हंसें। 

हंसी के फायदे तमाम 

- हंसी से टेंशन और डिप्रेशन कम होता है। 

- यह नेचरल पेनकिलर का काम करती है। 

- हंसी शरीर में ऑक्सिजन की मात्रा बढ़ाती है। 

- हंसी ब्लड सर्कुलेशन को कंट्रोल करती है। 

- जोरदार हंसी कसरत का भी काम करती है। 

- शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता में बढ़ोतरी करती है। 

- इससे काम करने की क्षमता बढ़ती है। 

- यह आत्मविश्वास और पॉजिटिव नजरिए में इजाफा करती है। 

- इसे नेचरल कॉस्मेटिक भी कह सकते हैं क्योंकि इससे चेहरा खूबसूरत बनता है। 

- खुशमिजाज लोगों के सोशल और बिजनेस कॉन्टैक्ट भी ज्यादा होते हैं। 

कैसे काम करती है हंसी 

- हमारे शरीर में कुछ स्ट्रेस हॉर्मोन होते हैं, जैसे कि कॉर्टिसोल, एड्रेनलिन आदि। जब कभी हम तनाव में होते हैं तो ये हॉर्मोन शरीर में सक्रिय हो जाते हैं। इनका लेवल बढ़ने पर घबराहट होती है। ज्यादा घबराहट होने पर सिर दर्द, सर्वाइकल, माइग्रेन, कब्ज हो सकती है और शुगर लेवल बढ़ सकता है। हंसने से कॉर्टिसोल व एड्रेनलिन कम होते हैं और एंडॉर्फिन, फिरॉटिनिन जैसे फील गुड हॉमोर्न बढ़ जाते हैं। इससे मन उल्लास और उमंग से भर जाता है। इससे दर्द और एंग्जाइटी कम होती है। इम्युन सिस्टम मजबूत होता है और बुढ़ापे की प्रक्रिया धीमी होती है। 

- जितनी देर हम जोर-जोर से हंसते हैं, उतनी देर हम एक तरह से लगातार प्राणायाम करते हैं क्योंकि हंसते हुए हमारा पेट अंदर की तरफ चला जाता है। साथ ही हम लगातार सांस छोड़ते रहते हैं, यानी शरीर से कार्बनडाइऑक्साइड बाहर निकलती रहती है। इससे पेट में ऑक्सिजन के लिए ज्यादा जगह बनती है। दिमाग को ढंग से काम करने के लिए 20 फीसदी ज्यादा ऑक्सिजन की जरूरत होती है। खांसी, नजला, जुकाम, स्किन प्रॉब्लम जैसी एलर्जी ऑक्सिजन की कमी से बढ़ जाती हैं। हंसी इन बीमारियों को कंट्रोल करने में मदद करती है। साथ ही, शुगर, बीपी, माइग्रेन, जैसी बीमारियां (जिनके पीछे स्ट्रेस बड़ी वजह होती है) होने की आशंका भी कम होती है क्योंकि करीब 60-70 फीसदी बीमारियों की वजह तनाव ही होता है। हंसी पैनिक को कंट्रोल करती है, जिसकी बदौलत रिकवरी तेज होती है। 

- जब हम जोर-जोर से हंसते हैं तो झटके से सांस छोड़ते हैं। इससे फेफड़ों में फंसी हवा बाहर निकल आती है और फेफड़े ज्यादा साफ हो जाते हैं। 

- हंसने से शरीर के अंदरूनी हिस्सों को मसाज मिलती है। इसे इंटरनल जॉगिंग भी कहा जाता है। हंसी कार्डियो एक्सरसाइज है। हंसने पर चेहरे, हाथ, पैर, और पेट की मसल्स व गले, रेस्पिरेटरी सिस्टम की हल्की-फुल्की कसरत हो जाती है। 10 मिनट की जोरदार हंसी इतनी ही देर के हल्की कसरत के बराबर असर करती है। इससे ब्लड सर्कुलेशन बढ़ता है और मसल्स रिलैक्स होती हैं। 

- जब हम हंसते हैं तो कोई भी तकलीफ या बीमारी कम महसूस होती है क्योंकि जिस तरह के विचार मन में आते हैं, हमारा शरीर वैसे ही रिएक्ट करता है। हंसने से हम लगभग शून्य की स्थिति में आ जाते हैं यानी सब भूल जाते हैं। 

- जिंदगी में दिन और रात की तरह सुख और दुख लगे रहते हैं। इनसे बचा नहीं जा सकता लेकिन अगर हम लगातार बुरा और नेगेटिव सोचते हैं तो दिमाग सही फैसला नहीं कर पाता और परेशानियां बढ़ जाएंगी। हंसने पर दिमाग पूरा काम करता है और हम सही फैसला ले पाते हैं। 

क्या कहती हैं रिसर्च 

अमेरिका के फिजियॉलजिस्ट और लाफ्टर रिसर्चर विलियम फ्राइ के मुताबिक जोरदार हंसी दूसरे इमोशंस के मुकाबले ज्यादा फिजिकल एक्सरसाइज साबित होती है। इससे मसल्स एक्टिवेट होते हैं, हार्ट बीट बढ़ती है और ज्यादा ऑक्सिजन मिलने से रेस्पिरेटरी सिस्टम बेहतर बनता है। ये फायदे जॉगिंग आदि से मिलते-जुलते हैं। जरनल ऑफ अमेरिकन मेडिकल असोसिएशन के मुताबिक, लाफ्टर थेरपी से लंबी बीमारी के मरीजों को काफी फायदा होता है इसलिए अमेरिका, यूरोप और खुद हमारे देश में भी कई अस्पतालों से लेकर जेलों तक में लाफ्टर थेरपी या हास्य योग कराया जाता है। 

हास्य योग 

लोगों को हंसना सिखाने में हास्य योग काफी पॉप्युलर हो रहा है। हास्य और योग को मिलाकर बना है हास्य योग, जिसमें प्राणायाम (लंबी-लंबी सांसें लेते) के साथ हंसी के अलग-अलग कसरत करना सिखाया जाता है। हास्य योग के तहत जोर-जोर से ठहाके मारकर, बिना किसी वजह के बेबाक हंसने की प्रैक्टिस की जाती है। इसमें शरीर के आंतरिक हास्य को बाहर निकालना सिखाया जाता है, जिससे शरीर सेहतमंद होता है। शुरुआत में नकली हंसी के साथ शुरू होनेवाली यह क्रिया धीरे-धीरे हमारे व्यक्तित्व का हिस्सा बन जाती है और हम बिना किसी कोशिश के हंसने लगते हैं। हास्य योग इस वैज्ञानिक आधार पर काम करता है कि शरीर नकली और असली हंसी के बीच फर्क नहीं कर पाता, इसलिए दोनों से ही एक जैसे फायदे होते हैं। 

हास्य योग के छह चरण होते हैं। 

आचमन : इस दौरान अच्छे विचार करें। सोचें कि मुझे अच्छा बनना है। मैं अच्छा बन गया हूं। मुझे अच्छे काम करने हैं और खुश रहना है। ठान लें कि हमें पॉजिटिव सोचना है, पॉजिटिव देखना है और पॉजिटिव ही बोलना है। 

आचरण : इसमें जो चीज हमने आचमन में की है, उसे अपने आचरण में लाना होता है। मतलब, वे चीजें हमारे बर्ताव में आएं और दूसरे लोगों को नजर आएं। 

हास्यासन : इसमें वे क्रियाएं आती हैं, जो हम पार्क में करते हैं। इन क्रियाओं को लगातार करने से हंसमुख रहना हमारी आदत बन जाती है। 

संवर्द्धन : योग करने का लाभ करनेवाले को मिलता है, लेकिन हास्य योग का फायदा उसे भी मिलता है, जो इसे देखता है। अगर कोई हंस रहा है तो वहां से गुजरने वाले को भी बरबस हंसी या मुस्कान आ जाती है। 

ध्यान : हास्य योग की क्रियाओं को करने से शरीर के अंदर जो ऊर्जा आई है, ध्यान के जरिए उसे कंट्रोल किया जाता है। 

मौन : मौन के चरण में हंसी को हम अंदर-ही-अंदर महसूस करते हैं। 

हास्यासन में नीचे लिखी क्रियाओं को किया जाता है : 

हास्य कपालभाति : जब लोग कपालभाति करते हैं तो उनके मन में तनाव होता है कि अगर हमने ऐसा नहीं किया तो हमारी बीमारी ठीक नहीं होगी। दुखी या तनावग्रस्त मन से किया गया कपालभाति उतना फायदेमंद नहीं होता। हास्य कपालभाति करने के लिए वज्रासन में बैठ जाएं। सीधा हाथ पेट पर रखें और हल्के से हां बोलें। ऐसा करने से सांस नाक और मुंह दोनों जगहों से बाहर आएगी और पेट अंदर जाएगा। आम कपालभाति में सांस सिर्फ नाक से बाहर जाती है, वहीं हास्य कपालभाति में सांस नाक और मुंह, दोनों जगहों से बाहर जाती है। 

मौन हास्य : किसी भी आसन में बैठ जाएं। लंबा गहरा सांस लें। रोकें और फिर हंसते हुए छोड़ें। ध्यान रखें, बिना आवाज किए हंसना है। इसी क्रिया को बार-बार दोहराएं। 

बाल मचलन : जैसे बच्चा मचलता है, कमर के बल रोलिंग करता है, उसी तरह इसमें हंसने की कोशिश की जाती है। पूरे मन को उमंग मिलती है। 

ताली हास्य : बाएं हाथ की हथेली खोलें। सीधे हाथ की एक उंगली से पांच बार ताली बजाएं। फिर दो उंगली से पांच बार ताली बजाएं। इसी तरह तीन, चार और फिर पांचों उंगलियों से पांच-पांच बार ताली बजाते हुए जोरदार तरीके से हंसें। ताली बजाने से हाथ के एक्युप्रेशर पॉइंट्स पर प्रेशर पड़ता है और वे एक्टिवेट हो जाते हैं। 

बेहद आसान है हास्य योग 

अगर ऊपर बताए गए स्टेप्स मुश्किल लगते हैं तो सीधे-सीधे हास्य के व्यायाम कर सकते हैं। इनमें प्रमुख हैं नमस्ते हास्य (एक-दूसरे की आंखों में आंखें डालकर हंसते जाएं), तू-तू, मैं-मैं हास्य (एक-दूसरे की ओर उंगली से लड़ने का भाव बनाते हुए हंसते जाएं), प्रशंसा हास्य (अंगूठे और उंगली को मिलाकर एक-दूसरे की तारीफ का भाव रखते हुए हंसते जाएं), मोबाइल फोन हास्य (मोबाइल की तरह कान पर हाथ लगाकर हंसते जाएं), लस्सी हास्य (हे... की आवाज निकालते हुए ऐसे करें मानो लस्सी के दो गिलास मिलाए और पी लिए। इसके बाद हंसते जाएं) आदि। बीच-बीच में लंबी सांसें लेते जाएं। इन तमाम अभ्यासों को करना काफी आसान है। यही वजह है कि हास्य योग इतना पॉप्युलर हुआ है। 

कैसे सीखें : जो लोग हास्य योग सीखना चाहते हैं, वे जगह-जगह पार्कों में लगनेवाले शिविरों से सीख सकते हैं। ये शिविर फ्री होते हैं। इसके बाद रोजाना घर पर प्रैक्टिस की जा सकती है। एक सेशन में करीब 15 से 40 मिनट का वक्त लगता है। 

रखें ध्यान 

पार्क में खाली ठहाके लगाने से कुछ नहीं होता। वहां तो ठहाके लगा लिए और बाहर आए तो फिर से टेंशन ले ली तो सब किया बेकार हो जाता है। जरूरी है कि हम हंसी को अपनी जिंदगी और अपनी पर्सनैलिटी का हिस्सा बनाएं। शुरुआत में यह मुश्किल लगता है लेकिन अभ्यास से ऐसा किया जा सकता है। जिस चीज का बार-बार अभ्यास किया जाता है, वह धीरे-धीरे नेचरल बन जाती हूं। शुरुआत में नकली लगनेवाली जोरदार ठहाके वाली हंसी धीरे-धीरे हमारी आदत में शुमार हो जाती है। 

खुद भी सीख सकते हैं हंसना 

जो लोग पार्क आदि में जाकर दूसरों के साथ हंसना नहीं सीख सकते, वे अकेले में घर के अंदर भी हंसी की प्रैक्टिस कर सकते हैं। वे रोजाना 15 मिनट के लिए शीशे के सामने खड़े हो जाएं और बिना वजह जोर-जोर से हंसें। हंसी का असली फायदा तभी है, जब आप कुछ देर तक लगातार हंसें। इसके अलावा, बच्चों और दोस्तों के साथ वक्त गुजारना भी हंसने का अच्छा बहाना हो सकता है। कई बार डॉक्टर भी अपने मरीजों को लाफ्टर थेरपी की सलाह देते हैं। इसमें सबसे पहले खुद के चेहरे पर मुस्कान लाने को कहा जाता है। कार्टून शो, कॉमिडी शो या जोक्स आदि भी देख-सुन सकते हैं। हालांकि यह हंसी कंडिशनल होती है और सिर्फ एंटरटेनमेंट और रिलैक्सेशन के लिए होती है। इसका सेहत पर कोई असर नहीं पड़ता। असली फायदा लंबी और बिना शर्त की हंसी से ही होता है। लोगों और खुद से परफेक्शन की उम्मीद न रखें, वरना हंसी के लिए जगह नहीं बन पाएगी। खुद को अपने करीबी लोगों की शरारतों और छेड़खानियों के लिए तैयार रखें। 

कौन बरतें सावधानी 

हार्निया, पाइल्स, छाती में दर्द, आंखों की बीमारियों और हाल में बड़ी सर्जरी कराने वाले लोगों को हास्य योग या हास्य थेरपी नहीं करनी चाहिए। प्रेग्नेंट महिलाओं को भी इसकी सलाह नहीं दी जाती। टीबी और ब्रोंकाइटिस के मरीजों को भी ख्याल रखना चाहिए कि उनकी हंसी से दूसरों में इन्फेक्शन न फैले। 

अच्छी हंसी और खराब हंसी 

अच्छी हंसी वह है, जो दूसरों के साथ हंसी जाए और खराब हंसी वह है, जो दूसरों पर हंसी जाए यानी उनका मजाक उड़ाकर हंसें। जब हम बेबाक, बिंदास, बिना तर्क, बिना शर्त और बिना वजह बच्चों की तरह हंसते हैं तो वह बेहद असरदार होती है। पांच साल से छोटे बच्चे दिन में 300-400 बार हंसते हैं और बड़े लोग बमुश्किल 10-15 बार ही हंसते हैं, इसलिए बच्चों की तरह बिना शर्त हंसें। रावण की तरह हंसना यानी दुनिया को दिखाने के लिए हंसना सही नहीं है। हंसना खुद के लिए चाहिए। इसी तरह अकेले हंसने का कोई मतलब नहीं है। हमारे आसपास के लोगों का हंसना भी जरूरी है। आजकल ज्यादातर लोग नकली हंसी हंसते हैं, जिसके पीछे अक्सर कोई स्वार्थ होता है, मसलन ऑफिस में बॉस को खुश करने वाली हंसी। ऐसी हंसी का शरीर को कोई फायदा नहीं है। इसी तरह जब हम दूसरों का मजाक उड़ाते हुए हंसते हैं तो हंसी के जरिए अपनी फ्रस्टेशन निकालते हैं। यह सही नहीं है। ज्यादातर कॉमिडी शो और चुटकुलों के जरिए ऐसी ही हंसी को बढ़ावा मिलता है। शुरुआत में निश्छल हंसी हंसना मुश्किल है। ऐसा दो ही स्थिति में मुमकिन है। पहला : हमारी सोच बेहद पॉजिटिव हो और हम बेहद खुशमिजाज हों। दूसरा : हास्य योग के जरिए हम अच्छी हंसी सीख लें। 

खुशी के लिए हंसी जरूरी 

अक्सर लोग कहते हैं कि जिंदगी में इतने तनाव हैं, तो खुश कैसे रहें और खुश नहीं हैं तो हंसें कैसे? लेकिन सही तरीका यह नहीं है कि हम खुश हैं, इसलिए हंसें, बल्कि हमें इस फॉर्म्युले पर काम करना चाहिए कि हम हंसते हैं, इसलिए खुश रहते हैं क्योंकि हंसने से बहुत-सी तकलीफें अपने आप खत्म हो जाती हैं। कह सकते हैं कि हंसी के लिए खुशी जरूरी नहीं है लेकिन खुशी के लिए हंसी जरूरी है। कई लोग बड़े खुशमिजाज होते हैं लेकिन साथ ही बड़े संवेदनशील भी होते हैं और अक्सर छोटी-छोटी बातों तो लेकर टेंशन ले लेते हैं। ऐसे लोग या तो दोहरी शख्सियत वाले होते हैं, मसलन होते कुछ हैं और दिखते कुछ और। वे सिर्फ खुशमिजाज दिखते हैं, होते नहीं हैं। या फिर ऐसे लोगों का रिएक्शन काफी तेज होता है। वे अक्सर बिना सोचे-समझे अच्छी और बुरी, दोनों स्थिति पर रिएक्ट कर देते हैं। दूसरी कैटिगरी के लोगों को हास्य योग से काफी फायदा होता है। उन्हें माइंड को कंट्रोल करना सिखाया जाता है। 

- रोते गए मरे की खबर लाए यानी दुखी मन से करेंगे तो काम खराब ही होगा। 

- घर से मस्जिद है बहुत दूर, चलों यूं कर लें किसी रोते हुए बच्चे को हंसाया जाए - निदा फाजली 

- हंसी छूत की बीमारी है। एक को देख, दूसरे को आसानी से लग जाती है। 

एक्सपर्ट्स पैनल 
डॉ. मदन कटारिया, फाउंडर, लाफ्टर योग क्लब्स मूवमेंट 
जितेन कोही, हास्य योग गुरु 
डॉ. रवि तुली, एक्सपर्ट, होलेस्टिक मेडिसिन 

Tuesday, April 26, 2011

मौन



योग कहता है कि मौन ध्यान की ऊर्जा और सत्य का द्वार है। मौन से जहाँ मन की मौत हो जाती है वहीं मौन से मन की ‍शक्ति भी बढ़ती है। जिसे मोक्ष के मार्ग पर जाना है वह मन की मौत में विश्वास रखता है और जिसे मन का भरपूर व सही उपयोग करना है वह मन की शक्ति पर विश्वास करेगा। जब तक मन है तब तक सांसारिक उपद्रव है और मन गया कि संसार खत्म और संन्यास शुरू। मौन से कुछ भी घटित हो सकता है। योग में किसी भी क्रिया को करते वक्त मौन का महत्व माना जाता रहा है।


क्यों रहें मौन- हो सकता है कि पिछले 15-20 वर्षों से तुम व्यर्थ की बहस करते रहे हों। वही बातें बार-बार सोचते और दोहराता रहते हो जो कई वर्षों के क्रम में सोचते और दोहराते रहे। क्या मिला उन बहसों से और सोच के अंतहिन दोहराव से? मानसिक ताप, चिंता और ब्लड प्रेशर की शिकायत या डॉयबिटीज का डाँवाडोल होना। योगीजन कहते हैं कि जरा सोचे आपने अपने ‍जीवन में कितना मौन अर्जित किया और कितनी व्यर्थ की बातें।

मौन रहने का तरीका- ऑफिस में काम कर रहे हैं या सड़क पर चल रहे हैं। कहीं भी एक कप चाय पी रहे हैं या अकेले बैठे हैं। किसी का इंतजार कर रहे हैं या किसी के लिए कहीं जा रहे हैं। सभी स्थितियों में व्यक्ति के मन में विचारों की अनवरत श्रृंखला चलती रहती है और विचार भी कोई नए नहीं होते। रोज वहीं विचार और वही बातें जो पिछले कई वर्षों से चलती रही है। 


आप चुपचाप रहने का अभ्यास करें और व्यर्थ की बातों से स्वयं को अलग कर लें। सिर्फ श्वासों के आवागमन पर ही अपना ध्यान लगाए रखें और सामने जो भी दिखाई या सुनाई दे रहा है उसे उसी तरह देंखे जैसे कोई शेर सिंहावलोकन करता है। सोचे बिल्कुल नहीं और कहें कुछ भी नहीं, बल्कि ज्यादा से ज्यादा चुप रहने का अभ्यास करें। साक्षी भाव में रहें अर्था किसी भी रूप में इन्वॉल्व ना हों।



यदि आप ध्यान कर रहे हैं तो आप अपनी श्वासों की आवाज सुनते रहें और उचित होगा कि आसपास का वातावण भी ऐसा हो कि जो आपकी श्वासों की आवाज को सुनने दें। पूर्णत: शांत स्थान पर मौन का मजा लेने वाले जानते हैं कि उस दौरान वे कुछ भी सोचते या समझते नहीं हैं बल्कि सिर्फ हरीभरी प्रकृति को निहारते हैं और स्वयं के अस्तित्व को टटोलते हैं।


अवधि- वैसे तो मौन रहने का समय नियुक्ति नहीं किया जा सकता कहीं भी कभी भी और कितनी भी देर तक मौन रहकर मौन का लाभ पाया जा सकता है। किंतु फिर भी किसी भी नियुक्त समय और स्थान पर रहकर हर दिन ध्यान या मौन 20 मिनट से लेकर 1 घंटे तक किया जा सकता है।

क्या करें मौन में- मौन में सबसे पहले जुबान चुप होती है, लेकिन आप धीरे-धीरे मन को भी चुप करने का प्रयास करें। मन में चुप्पी जब गहराएगी तो आँखें, चेहरा और पूरा शरीर चुप और शांत होने लगेगा। तब इस संसार को नए सिरे से देखना शुरू करें। जैसे एक 2 साल का बच्चा देखता है। जरूरी है कि मौन रहने के दौरान सिर्फ श्वासों के आवागमन को ही महसूस करते हुए उसका आनंद लें।

मौन के लाभ- मौन से मन की शक्ति बढ़ती है। शक्तिशाली मन में किसी भी प्रकार का भय, क्रोध, चिंता और व्यग्रता नहीं रहती। मौन का अभ्यास करने से सभी प्रकार के मानसिक विकार समाप्त हो जाते हैं। रात में नींद अच्छी आती है।


यदि मौन के साथ ध्यान का भी प्रयोग किया जा रहा है तो व्यक्ति निर्मनी दशा अर्थात बगैर मन के जीने वाला बन सकता है इसे ही 'मन की मौत' कहा जाता है जो आध्यात्मिक लाभ के लिए जरूरी है। मन को शां‍त करने के लिए मौन से अच्छा और कोई दूसरा रास्ता नहीं। मन से जागरूकता (होश) का विकास होता है।



मौन से सकारात्मक सोच का विकास होता है। सकारात्मक सोच हमारे अंदर की शक्ति को और मजबूत करती है। ध्यान योग और मौन का निरंतर अभ्यास करने से शरीर की बीमारियों से लड़ने की क्षमता बढ़ती है।

अस्तेय और अपरिग्रह योग


ND
योग के प्रथम अंग ‍यम के तीसरे और पांचवें उपांग अस्तेय और अपरिग्रह का जीवन में अत्यधिक महत्व है। दोनों को ही साधने से व्यक्ति के व्यक्तित्व में निखार आ जाता है साथ ही वह शारीरिक और मानसिक रोग से स्वत: ही छूट जाता है।

वैज्ञानिक कहते हैं कि 70 प्रतिशत से अधिक रोग व्यक्ति की खराब मानसिकता के कारण होते हैं। योग भी मानता है कि रोगों की उत्पत्ति की शुरुआत मन और मस्तिष्क में ही होती है। यही जानकर योग सर्वप्रथम यम और नियम द्वारा व्यक्ति के मन और मस्तिष्क को ठीक करने की सलाह देता है।

(1) अस्तेय : इसे अचौर्य भी कहते हैं अर्थात चोरी की भावना नहीं रखना, न ही मन में चुराने का विचार लाना। किसी भी व्यक्ति की वस्तु या विचार को चोर कर स्वयं का बनाने या मानने से आपकी खुद की आइडेंटी समाप्त होती है और आप स्वयं अपुरुष कहलाते हैं।

धन, भूमि, संपत्ति, नारी, विद्या, विचार आदि किसी भी ऐसी वस्तु जिसे अपने पुरुषार्थ से अर्जित नहीं किया या किसी ने हमें भेंट या पुरस्कार में नहीं दिया, को लेने के विचार मात्र से ही अस्तेय खंडित होता है। इस भावना से चित्त में जो असर होता है उससे मानसिक प्रगति में बाधा उत्पन्न होती है और मन रोगग्रस्त हो जाता है जिसका हमें पता भी नहीं चलता।

(2) अपरिग्रह : इसे अनासक्ति भी कहते हैं अर्थात किसी भी विचार, वस्तु और व्यक्ति के प्रति मोह न रखना ही अपरिग्रह है। कुछ लोगों में संग्रह करने की प्रवृत्ति होती है, जिससे मन में भी व्यर्थ की बातें या चीजें संग्रहित होने लगती हैं। इससे मन में संकुचन पैदा होता है। इससे कृपणता या कंजूसी का जन्म होता है। आसक्ति से ही आदतों का जन्म भी होता है। मन, वचन और कर्म से इस प्रवृत्ति को त्यागना ही अपरिग्रही होना है।

दोनों के लाभ : यदि आपमें चोरी की भावना नहीं है तो आप स्वयं के विचार अर्जित करेंगे और स्वयं द्वारा अर्जित वस्तु को प्राप्त कर सच्चा संतोष और सुख पाएंगे। यह भाव कि सब कुछ मेरे कर्म द्वारा ही अर्जित है- आपमें आत्मविश्वास का विकास करता है। यह आत्मविश्वास अपको मानसिक रूप से सुदृढ़ बनाता है। मानसिक सुदृढ़ता ही अच्‍छी सेहत और सफलता का आधार है।

किसी भी विचार और वस्तु का संग्रह करने की प्रवृत्ति छोड़ने से व्यक्ति के शरीर से संकुचन हट जाता है जिसके कारण शरीर शांति को महसूस करता है। इससे मन खुला और शांत बनता है। छोड़ने और त्यागने की प्रवृत्ति के चलते मृत्युकाल में शरीर के किसी भी प्रकार के कष्ट नहीं होते। कितनी ही महान वस्तु हो या कितना ही महान विचार हो, लेकिन आपकी आत्मा से महान कुछ भी नहीं।

शौच से सकारात्मक सोच


शौच को अंग्रेजी में Purity कह सकते हैं। अष्टांग योग के दूसरे अंग 'नियम' के उपांगों के अंतर्गत प्रथम 'शौच' का जीवन में बहुत महत्व है। शौच अर्थात शुचिता, शुद्धता, शुद्धि, विशुद्धता, पवित्रता और निर्मलता। शौच का अर्थ शरीर और मन की बाहरी और आंतरिक पवित्रता से है।

शौच का अर्थ मलिनता को बाहर निकालना भी है। शौच के दो प्रकार हैं- बाह्य और आभ्यन्तर। बाह्य का अर्थ बाहरी शुद्धि से है और आभ्यन्तर का अर्थ आंतरिक अर्थात मन वचन और कर्म की शुद्धि से है। जब व्यक्ति शरीर, मन, वचन और कर्म से शुद्ध रहता है तब उसे स्वास्थ्‍य और सकारात्मक ऊर्जा का लाभ मिलना शुरू हो जाता है।

*बाहरी शुद्धि- हमेशा दातुन कर स्नान करना एवं पवित्रता बनाए रखना बाह्य शौच है। कितने भी बीमार हों तो भी मिट्टी, साबुन, पानी से थोड़ी मात्रा में ही सही लेकिन बाहरी पवित्रता अवश्य बनाए रखनी चाहिए। आप चाहे तो शरीर के जो छिद्र हैं उन्हें ही जल से साफ और पवित्र बनाएँ रख सकते हैं। बाहरी शुद्धता के लिए अच्छा और पवित्र जल-भोजन करना भी जरूरी है। अपवित्र या तामसिक खानपान से बाहरी शु‍द्धता भंग होती है।

*आंतरिक शुद्धि- आभ्यन्तर शौच उसे कहते हैं जिसमें हृदय से रोग-द्वेष तथा मन के सभी खोटे कर्म को दूर किया जाता है। जैसे क्रोध से मस्तिष्क और स्नायुतंत्र क्षतिग्रस्त होता है। लालच, ईर्ष्या, कंजूसी आदि से मन में संकुचन पैदा होता है जो शरीर की ग्रंथियों को भी संकुचित कर देता है। यह सभी हमारी सेहत को प्रभावित करते हैं। मन, वचन और कर्म से पवित्र रहना ही आंतरिक शुद्धता के अंतर्गत आता है अर्थात अच्छा सोचे, बोले और करें।

शौच के लाभ- ईर्ष्या, द्वेष, तृष्णा, अभिमान, कुविचार और पंच क्लेश को छोड़ने से दया, क्षमा, नम्रता, स्नेह, मधुर भाषण तथा त्याग का जन्म होता है। इससे मन और शरीर में जाग्रति का जन्म होता है। विचारों में सकारात्मकता बढ़कर उसके असर की क्षमता बढ़ती है। रोग और शौक से छुटकारा मिलता है। शरीर स्वस्थ और सेहतमंद अनुभव करता है। निराशा, हताशा और नकारात्मकता दूर होकर व्यक्ति की कार्यक्षमता बढ़ती है।

  अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'

जपयोग का चमत्कार


शास्त्र अनुसार 'ज' का अर्थ जन्म का रुक जाना और 'प' का अर्थ पाप का नष्ट हो जाना। किसी शब्द या मंत्र को बार-बार उच्चारित करना या मन ही मन दोहराना जपयोग कहलाता है।

इसे मंत्रयोग भी कहते हैं। मंत्र का अर्थ होता है मन को एक तंत्र में बाँधना। जब मन एक तंत्र में बंध जाता है तो व्यक्ति मानसिक रूप से शक्तिशाली बन जाता है। जपयोग सबसे प्राचीनतम योग है और सभी धर्म इस योग का अनुसरण करते हैं। यह एक चमत्कारिक योग है। इसका असर व्यक्ति के मन और मस्तिष्क पर जबरदस्त पड़ता है। जपयोग हर तरह के रोग और शोक को मिटाने की क्षमता रखता है।

जपयोग के तीन प्रकार हैं:- वाचिक, उपांशु और मानस। वाचिक का अर्थ मुँह से स्पष्ट उच्चारण के साथ किया जाने वाला जप। उपांशु का अर्थ मंद स्वर से मुँह के अंदर ही किया जाने वाला जप और मानस अर्थात मन ही मन किए जाने वाला जप।

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कैसे मिटते हैं शोक : जब व्यक्ति बहुत व्यग्र या चिंतित रहता है तो तरह-तरह कनकारात्मक विचारों से घिर जाता है और पहले की अपेक्षा परिस्थितियों को और संकटपूर्ण बना लेता है। ढेर सारे विचारों से बचने के लिए किसी भी मंत्र का जप करते रहने से मन में विश्वास और सकारात्मक ऊर्जा का विकास होता है। इससे शोक और संताप मिट जाता है। यह व्यक्ति को मानसिक रूप से शांत कर देता है।

मानसिक शक्ति बढ़ाता है : अच्छे विचार, मंत्र और भगवान का बार-बार जप करने या ध्यान करते रहने से व्यक्ति की मानसिक शक्ति बढ़ती जाती है। मानसिक शक्ति के बल पर ही व्यक्ति सफल, स्वस्थ और शक्तिशाली महसूस कर सकता है।

ईश्वर और ईथर से जोड़ता जप : अपने ईष्ट या किसी शक्तिशाली मंत्र का निरंतर जप करने से व्यक्ति ईधर माध्यम की सकारात्मक ऊर्जा और शक्तियों से जुड़ जाता है। जपयोग व्यक्ति के अवचेतन को जाग्रत कर उसे दिव्य दृष्टि प्रदान करता है। ऐसा व्यक्ति स्वयं को किसी भी रूप में स्थापित करने में सक्षम हो जाता है। इससे व्यक्ति टेलीपैथिक और परा मनोविज्ञान में पारंगत हो सकता है।

जपयोग के चमत्कार के संबंध में सभी धर्मों के शास्त्रों में ढेर सारे उल्ले‍ख मिलते हैं। वेदों में विभिन्न प्रकार के मंत्रों का प्रयोग किया गया है। इनमें प्रयोग किए जाने वाले मंत्रों में अत्यंत शक्ति होती है, क्योंकि इन मंत्रों को पढ़ने से जो ध्वनि तरंग उत्पन्न होती है, उससे शरीर के स्थूल व सूक्ष्म अंग तक कंपित होते हैं।

अनेक परिक्षणों से यह सिद्ध हो गया है कि मंत्रों में प्रयोग होने वाले शब्दों में भी शक्ति होती है। मंत्रों में प्रयोग होने वाले कुछ ऐसे शब्द हैं, जिन्हे 'अल्फा वेव्स' कहते हैं। मंत्र का यह शब्द 8 से 13 साइकल प्रति सैंकेंड में होता है और यह ध्वनि तरंग व्यक्ति की एकाग्रता में भी उत्पन्न होती है। इन शब्दों से जो बनता है, उसे मंत्र कहते हें। मंत्रों के जप करने से व्यक्ति के भीतर जो ध्वनि तरंग वाली शक्ति उत्पन्न होती है, उसे ही जप योग या मंत्र योग कहते हैं।

मन के पार एक मन

सम्मोहन विद्या भारतवर्ष की प्राचीनतम विद्या है। इसे योग में 'प्राण विद्या' या 'त्रिकालविद्या' के नाम से जाना जाता रहा है। अंग्रेजी में इसे हिप्नटिज़म कहते हैं। विश्वभर में हिप्नटिज़म के जरिए बहुत से असाध्य रोगों का इलाज भी किया जाता रहा है। आज भी सम्मोहन सिखाने या इस विद्या के माध्यम से इलाज करने के लिए बहुत सारे केंद्र प्रमुख शहरों में संचालित हो रहे हैं।

मन को सम्मोहित करना : मन के कई स्तर होते हैं। उनमें से एक है आदिम आत्म चेतन मन। आदिम आत्म चेतन मन न तो विचार करता है और न ही निर्णय लेता है। उक्त मन का संबंध हमारे सूक्ष्म शरीर से होता है। यह मन हमें आने वाले खतरे या उक्त खतरों से बचने के तरीके बताता है। यह छटी इंद्री जैसा है या समझे की यह सूक्ष शरीर ही है। गहरी नींद में इसका आभास होता हैं।

यह मन लगातार हमारी रक्षा करता रहता है। हमें होने वाली बीमारी की यह मन छह माह पूर्व ही सूचना दे देता है और यदि हम बीमार हैं तो यह हमें स्वस्थ रखने का प्रयास करता है। बौद्धिकता और अहंकार के चलते हम उक्त मन की सुनी-अनसुनी कर देते हैं। उक्त मन को साधना ही सम्मोहन है या उक्त मन में जाग जाना ही सम्मोहन है।

मन के पार एक मन : जब आप गहरी नींद में सो जाते हैं तो यह मन सक्रिय हो जाता है। चेतन मन अर्थात जागी हुई अवस्था में सोचने और विचार करने वाला मन जब सो जाता है तब अचेतन मन जाग्रत हो जाता हैं, जिसके माध्यम से व्यक्ति या तो सपने देखता है या गहरी नींद का मजा लेता है, लेकिन व्यक्ति जब सोते हुए भी उक्त मन में जाग जाए अर्थात होशपूर्ण रहे तो यह मन के पार चेतना का दूसरे मन में प्रवेश कर जाना है, जहाँ रहकर व्यक्ति अपार शक्ति का अनुभव करता है।

यह संभव है अभ्यास से। यह बहुत सरल है, जबकि आप यह महसूस करो कि आपका शरीर सो रहा है, लेकिन आप जाग रहे हैं। इसका मतलब यह कि आप स्थूल शरीर से सूक्ष्म शरीर में प्रवेश कर गए हैं तो आपकी जिम्मेदारी बढ़ जाती है क्योंकि इसके खतरे भी है।

मन को साधने का असर : सम्मोहन द्वारा मन की एकाग्रता, वाणी का प्रभाव व दृष्टि मात्र से उपासक अपने संकल्प को पूर्ण कर लेता है। इससे विचारों का संप्रेषण (टेलीपैथिक), दूसरे के मनोभावों को ज्ञात करना, अदृश्य वस्तु या आत्मा को देखना और दूरस्थ दृश्यों को जाना जा सकता है। इसके सधने से व्यक्ति को बीमारी या रोग के होने का पूर्वाभास हो जाता है।

कैसे साधें इस मन को : प्राणायम से साधे प्रत्याहार को और प्रत्याहार से धारणा को। इसको साधने के लिए त्राटक भी कर सकते हैं त्राटक भी कई प्रकार से किया जाता है। ध्यान, प्राणायाम और नेत्र त्राटक द्वारा सम्मोहन की शक्ति को जगाया जा सकता है। त्राटक उपासना को हठयोग में दिव्य साधना से संबोधित किया गया है। उक्त मन को सहज रूप से भी साधा जा सकता है। इसके लिए आप प्रतिदिन सुबह और शाम को प्राणायाम के साथ ध्यान करें।

अन्य तरीके : कुछ लोग अँगूठे को आँखों की सीध में रखकर तो, कुछ लोग स्पाइरल (सम्मोहन चक्र), कुछ लोग घड़ी के पेंडुलम को हिलाते हुए, कुछ लोग लाल बल्ब को एकटक देखते हुए और कुछ लोग मोमबत्ती को एकटक देखते हुए भी उक्त साधना को करते हैं, लेकिन यह कितना सही है यह हम नहीं जानते।

आप उक्त साधना के बारे में जानकारी प्राप्त कर किसी योग्य गुरु के सान्निध्य में ही साधना करें।

- अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'